बुन्देलखण्ड के बांदा और चित्रकूट ज़िले के सबसे पिछड़े पहाड़ी और जंगली इलाके को सूखे से बचाने के लिए सिंचाई विभाग द्वारा चित्रकूट जिले के अंतर्गत आने वाले रसिन गाँव में लगभग 16 साल पहले चौधरी चरण सिंह सहायक परियोजना के तहत रसिन बाँध के नाम से एक बहुत बड़ा बाँध बनवाया गया था। इस बाँध को बनवाने का उद्देश्य था कि किसानों को सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिल सके और यह क्षेत्र हरियाली से भरा रहेगा। लेकिन इस बाँध के बनने से हजारों किसानों के घर और खेत की जमीन चली जिसका मुआवज़ा उन्हें आजतक नहीं मिला है।
लोगों का कहना है कि उनकी जमीन पीढ़ी दर पीढ़ी की धरोहर थी जिससे वह हर साल लाखों रुपए की फसल पैदा करते थे और साल भर चैन से खाते थे लेकिन बाँध बनने के कारण यह लोग काफी परेशान हैं, इनके खाने-पीने का सहारा छिन गया है और घरों के नाम पर इन्हें बंजर ज़मीन दे दी गई है।
लोगों ने बताया कि जब बाँध बन रहा था तब बहुत कम मुआवजा था और मात्र 20 से ₹25000 प्रति बीघा ज़मीन के लिए थे। परन्तु अब यहाँ की ज़मीन का रेट साढ़े 7 लाख रूपए प्रति बीघा हो चुका है। लागत ज्यादा होने के कारण अब विभाग भी मुआवजा देने में आनाकानी कर रहा है और दलालों द्वारा भी उन्हें परेशान किया जा रहा है। किसानों का कहना है कि वह एक गरीब दलित वर्ग के अनपढ़ किसान हैं उनको इतना ज्यादा ज्ञान नहीं है जिसका फायदा दलाल उठाते हैं और आधा मुआवज़े का पैसा वो लोग ले लेते हैं।
कुछ महीनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहाँ बाँध का उदघाटन करने आए थे और बड़े-बड़े भाषण दे कर गए लेकिन किसानों का दुख किसी ने नहीं सुना, न ही किसी ने किसानों के मुआवजे की बात करी। ऐसे में अब यह किसान मुआवज़े के लिए किसके पास जाएँ?
हमने चित्रकूट के सिंचाई विभाग के अधिकारी से इस बारे में जानकारी लेने के लिए बात करनी चाही, लेकिन उनका फ़ोन न लगने के कारण उनकी जवाबदेही नहीं मिल पाई है। सिंचाई विभाग के सहायक भी इस मामले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
कोविड से जुड़ी जानकारी के लिए ( यहां ) क्लिक करें।