रेलवे स्टेशन का माहौल उस समय तनावपूर्ण हो गया जब ट्रेन से उतारे गए किसानों ने विरोध में अर्धनग्न होकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। तमिल भाषा में लगाए जा रहे नारे पूरे प्लेटफॉर्म पर गूंज रहे थे। विरोध जताने वालों में सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बुजुर्ग किसान भी शामिल थे।
तमिलनाडु में मेगदादु बांध परियोजना को रोकने समेत छह सूत्रीय मांगों को लेकर दिल्ली जा रहे तमिलनाडु के किसानों को एमपी (मध्यप्रदेश) में रोका गया। रोकने के लिए एमपी के सागर सहित कई जिलों का पुलिस बल रेलवे स्टेशन पर तैनात रहा। देर शाम होते-होते पूरा स्टेशन मानो छावनी में बदल गया।
रात करीब 11:23 बजे जीटी एक्सप्रेस (12675) बीना स्टेशन पर पहुंची तो पुलिस ने तुरंत राष्ट्रीय दक्षिण भारतीय नदी संपर्क किसान संगठन के सदस्यों की तलाश शुरू कर दी। लेकिन जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि किसानों को ट्रेन नर्मदापुरम और इटारसी स्टेशन पर ही उतार लिया गया था। इसी वजह से डिब्बों में कोई भी प्रदर्शनकारी नहीं मिला और ट्रेन को 11:34 बजे आगे रवाना कर दिया गया। पूरी स्थिति पर नजर रखने और इंतज़ामों की समीक्षा के लिए डीआईजी, एडिशनल एसपी सहित कई अधिकारी स्वयं स्टेशन पहुंचे थे।
बता दें “राष्ट्रीय दक्षिण भारतीय नदी संपर्क किसान संगठन” (SNSIF) वह संगठन है जिसने तमिलनाडु में कावेरी जल विवाद को लेकर बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया था। यह संगठन दक्षिण भारत के उन किसानों का प्रतिनिधित्व करता है जो नदियों को आपस में जोड़ने वाली राष्ट्रीय परियोजना के पक्ष या विपक्ष में अपनी आवाज उठाते हैं।
अर्धनग्न होकर किया प्रदर्शन
रेलवे स्टेशन का माहौल उस समय तनावपूर्ण हो गया जब ट्रेन से उतारे गए किसानों ने विरोध में अर्धनग्न होकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। तमिल भाषा में लगाए जा रहे नारे पूरे प्लेटफॉर्म पर गूंज रहे थे। विरोध जताने वालों में सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं और बुजुर्ग किसान भी शामिल थे।
ट्रेन से उतारे जाने के बाद प्रशासन ने उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। फिलहाल शहर के एक निजी गार्डन में उनके भोजन और अस्थायी ठहरने की व्यवस्था की गई है।
इस पूरी घटना के बाद एक बड़ा सवाल सामने आता है क्या आम आदमी, किसान, छात्र, शिक्षक या मजदूर अब अपनी बात भी खुलकर नहीं कह सकते? अगर जंतर-मंतर जैसे स्थान लोगों की आवाज़ सुनने और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए निर्धारित हैं तो फिर वहां तक पहुंचने से पहले ही उन्हें क्यों रोक दिया जाता है? क्या लोकतंत्र में अपनी मांगें रखने का अधिकार इतना कठिन होता जा रहा है?
किसानों की ये मांगे थीं –
किसान संगठन ने जिन मुद्दों को लेकर आंदोलन शुरू किया है उनमें कई महत्वपूर्ण मांगें शामिल हैं। वे चाहते हैं कि कृषि उत्पादों का मूल्य इस तरह तय किया जाए कि उन्हें दोगुना लाभ मिल सके। वहीं व्यक्तिगत किसानों के लिए एक प्रभावी फसल बीमा योजना लागू करने की भी आवश्यकता बताई गई है।
इसके साथ ही किसान राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिए गए सभी कृषि ऋणों को पूरी तरह माफ करने की मांग कर रहे हैं। उनकी एक बड़ी चिंता कर्नाटक की मेगदादु बांध परियोजना को लेकर है जिसे वे तमिलनाडु में संभावित सूखे की आशंका से जोड़ते हुए रोकने की बात कह रहे हैं।
संगठन की अन्य मांगों में 60 वर्ष से अधिक आयु के किसानों को प्रति माह पांच हजार रुपये पेंशन देना और छात्रों के सभी शैक्षणिक ऋणों को समाप्त करना भी शामिल है।
किसानों के लिए बनाया गया जेल
दिल्ली की ओर बढ़ रहे चेन्नई के किसानों को रोकने के लिए बीना स्टेशन पर प्रदेश के विभिन्न जिलों से भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। किसानों को स्टेशन पर ही उतारकर रोकने की तैयारी पहले से कर ली गई थी। इसके लिए आरपीएफ मैदान और रेलवे संस्थान में अस्थायी जेल जैसी व्यवस्था बनाई गई, जहाँ उन्हें रखा जा सके। साथ ही किसानों को इन स्थानों तक पहुँचाने के लिए बसों की व्यवस्था भी की गई थी।
किसानों ने कहा “पीएम (प्रधानमंत्री) अपनी वादा पूरी करें”
किसान संगठन के अध्यक्ष अय्या कन्नू का कहना है कि किसानों को अभी भी वह लाभ नहीं मिल पाया है जिसका आश्वासन प्रधानमंत्री ने पहले दिया था। उनका तर्क है कि यदि धान की कीमत 18 रुपये प्रति किलो तय है तो गेहूं को भी उसी दर पर खरीदा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि किसानों से 54 रुपये प्रति किलो देने का वादा किया गया था जबकि वर्तमान में केवल 24 रुपये ही मिल रहे हैं।
गन्ने के मामले में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है जहां 8,100 रुपये प्रति टन का भरोसा दिया गया था वहां वास्तविक भुगतान केवल 3,160 रुपये तक सीमित है। किसानों की मुख्य मांग यही है कि सरकार अपने पहले किए गए वादों को पूरा करे और उन्हें वास्तविक लाभ पहुंचाए।
किसानों को ट्रेन से उतारकर वापस भेजने की कोशिश कहीं न कहीं यह संकेत देती है कि आवाज़ उठाने वालों के लिए जगह सीमित की जा रही है। यह पहली बार भी नहीं है। पंजाब और हरियाणा के किसान पिछले दो साल से अपनी मांगों को लेकर दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं क्योंकि उन्हें राजधानी में प्रवेश की अनुमति ही नहीं दी गई।
ऐसा ही एक और उदाहरण छत्तीसगढ़ में देखने को मिला जहां हाल ही में यह नियम लागू किया गया है कि बिना अनुमति प्रदर्शन करने पर लोगों को जुर्माना देना पड़ेगा। इससे यह चिंता बढ़ जाती है कि क्या आने वाले समय में आंदोलन करने से पहले भी सरकार से अनुमति लेनी होगी? और क्या बिना अनुमति अपनी बात कहना “अवैध” माना जाने लगेगा?
“यह लोकतंत्र के खिलाफ है”
किसान संगठन के अध्यक्ष अय्या कन्नू के अनुसार आंदोलन में शामिल होने के लिए 600 से अधिक किसान रवाना हुए थे। कुछ किसान तमिलनाडु एक्सप्रेस में सफर कर रहे थे जबकि कई अन्य को पुलिस ने बीच रास्ते में ही हिरासत में ले लिया। कन्नू ने इस कार्रवाई को गंभीर चिंता का विषय बताया। उनका कहना है कि लोकतंत्र में नागरिकों को कहीं भी जाने की पूरी स्वतंत्रता होती है। हमने बाकायदा रेलवे का टिकट खरीदकर यात्रा शुरू की थी लेकिन पुलिस ने ट्रेन रोककर हमें नीचे उतार दिया। उनके मुताबिक यह कदम न केवल संविधान की भावना के खिलाफ है बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।
लोकतंत्र की असली ताकत जनता की आवाज़ में होती है। अगर वही आवाज़ सीमित कर दी जाए तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर लोग अपनी समस्याएं किससे और कैसे कहें?
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