बांदा जिला के तिंदवारी ब्लॉक के तारा गांव के 80 प्रतिशत किसान कुंडा (कद्दू) की खेती करने में रुचि रखते हैं। कैलाश पटेल और प्रभाव का कहना है कि उन्होंने कानपुर शहर से कुंडा की खेती करना सीखा है। वहां के किसान ज्यादातर कुंडा की खेती ही करते हैं। वह भी तीन सालों से यह खेती कर रहे हैं। कुंडा से कई चीज़ जैसे पेठा भी बनता है।
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कुंडा का जूस भी पीया जा सकता है। गर्मियों में इससे सबसे ज़्यादा फायदा होता है। एक बीघे खेत मे उनकी लगभग 1 लाख तक की आमदनी होती है। अन्ना जानवर कुंडा नहीं खाते इसलिए इसकी खेती करना भी आसान होता है।
कुंडा की खेती में ज़्यादा खाद और पानी की ज़रूरत नहीं होती। इससे खाद-पानी का पैसा बच जाता है। चार महीने में कुंडा की फसल तैयार हो जाती है। दूसरी वह गेहूं की खेती भी करते हैं।
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