बुंदेलखंड भले ही अच्छे पर्यावरण के मामले पर बहुत पीछे है लेकिन यहां के किसानों में अपनी मेहनत और तजुर्बे के बल पर गर्म मानसून पर भी ठंडी जलवायु की सब्जी और फल उगाना शुरू कर दिए हैं। सिर्फ बुंदेलखंड ही नहीं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में ये असम्भव काम को किसानों ने आसान कर दिया और अच्छी पैदावार करके लाभ ले रहे हैं। इस पर हमने काफी रिपोर्टिंग की है जिनमें से तीन ऐसे किसान हैं जो अपने साथ साथ और भी किसानों को इस तरह की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
वाराणसी जिले छोटे से गांव बबियांव गांव के रहने वाले पैंतीस वर्षीय शैलेंद्र कुमार रघुवंशी बताते हैं कि उन्होंने थाईलैंड से सेव के पौधे मंगवाए और शुरू कर दी खेती करना। वह तीन साल से सेव की खेती करके खूब मुनाफा कमा रहे हैं।
टीकमगढ़ जिले में ग्राम पंचायत गणेशगंज के रहने वाले एक ऐसे ही युवा राजेंद्र अहिरवार ने बताया है कि उन्होंने एमए तक पढ़ाई की है और जॉब करने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन उन्हें कोई जॉब नहीं मिली। फिर विचार आया कि कुछ अलग खेती कर कमाई करें। उनका कहना है कि उन्होने कृषि विभाग के सहयोग से एक ट्रेनिंग लेकर फिर मशरूम की खेती करना शुरू किया। मशरूम की खेती करने में पूरे 2 माह लगते हैं और खाने में उपयोग होता है और इसमें पोषक आहार भी होता है। स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है।
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राजेन्द्र ने खेती अक्टूबर में शुरू की थी जिसमें से अब थोड़ा-थोड़ा बेचना भी शुरू कर दिया है। एक 2 किलो मशरूम 2 दिन में निकल आते हैं। लगभग अभी तक ₹5000 का मशरूम बिक चुका है। इसको बेचने में कोई दिक्कत नहीं रहती है आर्डर आ जाते हैं तो हम उन्हें के घर पर और ढाई सौ रुपए किलो बिना डिलेवरी चार्ज लिए भिजवा दिया जाता है। इसका बीज ग्वालियर से मंगवाया था। इंदौर में भी मिल जाता है लगभग 20 किलो आ चुका है और अभी कुछ आने वाला है। ₹120 किलो मिलता है। राजेंद्र का कहना है कि हमने इसलिए खेती की है मशरूम की कि इसमें लागत कम रहती है और मुनाफा अच्छा मिलता है और बेचने में भी कोई समस्या नहीं आती है।
हमारी पूरी इसमें तीस हजार की लागत लगी है और कम जगह में हो जाती है इसलिए हम सभी युवाओं से कहना चाहते हैं कि जो युवा पढ़े लिखे हैं और बेरोजगार हैं वह अपने जीवन यापन करने के लिए ऐसे ही कुछ अलग अलग प्रकार की खेती करें जिससे जीवन यापन हो सके और देश में बेरोजगारी कम हो।
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