मिलिए मशहूर कवि अयोध्या के राकेश पांडये से
जिला अयोध्या तारून ग्राम मीर का पुरवा तहसील बीकापुर के रहने वाले राकेश पाण्डेय कवि हैं। वह कवि इसलिए बनना चाहते थे क्योंकि वह अपने शहर और अपने देश का नाम रोशन करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया। कुछ लोग आजीविका चलाने के लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं। लेकिन उन्होंने सोचा था कि वह अपनी कविता से जाने जाएंगे।
लेकिन परिस्थितियां और पैसों के अभाव की वजह से वह आगे नहीं बढ़ पाएं। जब वह आठवीं कक्षा में थे तो उन्हें कविता लिखने के साथ-साथ गाना गाने का भी शौक था। उनके दोस्तों को उनका गाना सुनना बेहद पंसद आता था। गाँव के लोग भी उनके गाने की काफी तारीफ करते थे।
इसके बाद राकेश ने सोचा की क्यों न वह मुंबई चला जाये। उस समय राकेश की उम्र सिर्फ 14 साल थी और जेब में 10 रूपये थे। वह ट्रेन में बैठ गया। उसने सोचा की वह लखनऊ के रहने वाले मशहूर कवि नौशाद से मिलेगा। वह उसके टैलेंट को पहचानकर उसे मौका देंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
राकेश द्वारा लिखी कविता
“इस जग का दस्तूर निराला
गधे के गले में डाल दी माला
उसके घर उतना ही उजाला
जितना वो करें जो टोल मटोला”
राकेश की रचनाएं फैजाबाद आकाशवाणी में तीन से चार बार, रोहतक आकाशवाणी में तीन-चार बार, दिल्ली आकाशवाणी से दो बार प्रसारित हुई हैं। इसके अलावा उनकी कविताएं अमर उजाला भिवानी जो हरियाणा जिला में है वहां भी प्रसारित हुई थी। राकेश ने हरियाणा जिले में हिंदी सुधारक के रूप में भी काम किया है। पैसे कम मिलने की वजह से उन्हें काम को छोड़ना पड़ा। पैसे की वजह से वह जो मुकाम चाहते थे वह हासिल नहीं कर पाए।
राकेश ने जितनी भी कविताएं लिखी उन सभी को अटैची में लिखकर बंद करके रख दिया। अभी वह पैसों की वजह से पेंटर का पार्ट टाइम जॉब भी करते हैं। इनका कहना है कि अगर जॉब नहीं करूंगा तो घर का और खुद का खर्चा कैसे निकालूंगा। उन्होंने रचनाएं और कविताएं लिखी है। उनमें से जो उनकी पहली कविता है वह कुछ इस प्रकार है:-
ज्योति ज्वाला – शीर्षक
“इस जग के बुझते दीपों का
मुझको ही लोह दिख लानी है
कभी बनकर काव्य के ज्वाला की
एक अलौकिक छटा जलानी है
प्रभु सिर पर रहा हाथ तेरा तो कुछ जरूर बन पाऊंगा मैं।”
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