ध्यप्रदेश का छिंदवाडा और सिवनी इस फल के नाम पर काफी फेमस हैं। इस फल को पहले महिलाएं सुबह होते ही घर का काम करके जंगल तोड़ने के लिए जाती है और फिर बाजार तक पहुंचाती है, लेकिन उन आदिवासियों की दिनभर की मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो रहा है।
लेखन – गीता
मध्यप्रदेश का छिंदवाडा एक ऐसी जगह है जहां सेहत का खजाना कहे जाने वाले सीताफल को आदिवासियों को बाजार तक पहुंचाने का मेहनताना भी नहीं मिल पा रहा है, यही वजह है कि आदिवासी महिलाएं सीताफल बेचने के लिए नेशनल हाईवे और सड़को का सहारा लेती है।
फल एक है नाम अनेक हैं
सीताफल को कई नामों से जाना जाता है, जैसे कस्टर्ड एप्पल, शुगर एप्पल, चेरिमोया, शरीफा जो हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है। क्योंकि यह देश भर के अलग-अलग शहरों में अपनी मिठास बिखेर रहा है और सर्दियों के मौसम में ही इसकी मिठास बढ़ती है अभी तो कच्चा फल आ रहा है,लेकिन मध्यप्रदेश का छिंदवाडा और सिवनी इस फल के नाम पर काफी फेमस हैं। इस फल को पहले महिलाएं सुबह होते ही घर का काम करके जंगल तोड़ने के लिए जाती है और फिर बाजार तक पहुंचाती है, लेकिन उन आदिवासियों की दिनभर की मजदूरी निकलना भी मुश्किल हो रहा है।
सड़क किनारे बिकते हैं सीताफल
सीताफल बेचने के लिए नेशनल हाईवे का बैठी छूहा बो गांव कि महिला सती बताती है कि यहां पर सभी आदिवासी महिलाएं हैं। सुबह 6 बजे लगभग 10 से 15 किलोमीटर की दूरी तय करके जंगल जाती है और वहां से 11 बजे तक सीताफल तोड़कर आती है फिर सड़क किनारे बैठकर बेचती हैं, जैसे वह बेंच रही है। इससे उनका परिवार चलता है। जो सीताफल लोग बड़े शहरों में 150 से 200 रुपए किलो खरीदते हैं, वही सीताफल वह टोकरी के हिसाब से देती है। छोटी टोकरी जिसमें लगभग दो किलो सीताफल होगा वो 70 से 80 के बीच जाती है और बड़ी जिससे लगभग साढ़े तीन या चार किलो होगा वो 150 रुपए की देती हैं। जबकि जंगल जाकर सीधा करने पड़ती है जंगली जानवरों का डर लगता है वन विभाग का डर होता है फिर भी लेकर सड़क किनारे व्यक्ति हैं और ताजे ताजे फल सब लोग कहते हैं तो यह सेहत से भारी बहुत अच्छा होता है।
हाइवे किनारे दिखते हैं टोकरों में सुंदर सीताफल
मैंने देखा हीरावाडी और छिंदवाड़ा से जबलपुर के नेशनल हाईवे पर सैकड़ों की संख्या में सीताफल के टोकरे लेकर बैठें आदिवासी महिलाएं और पुरुषो को देखा हैं, उनको उम्मीद होती है कि कोई रास्ते पर चलने वाले यात्री रुककर सीताफल खरीद लें जिससे कुछ पैसों का जुगाड़ हो सके। इतनी ही नहीं सड़क किनारे रख कर लोग सीताफल खरीदते हुए लेकिन वहां भी लोग बाजार से ज्यादा मूल भाव करते हैं कितना सस्ता मिलने के बावजूद।
बाजार में बेचने पर नहीं मिलता सही रेट
हालांकि शुक्रवार को सांवरी में साप्ताहिक बाजार भी लगती है। जिसमें भी मैंने देखा कि कई शहरों से सीताफल के खरीददार यहां पर पहुंचते हैं और आदिवासियों से कम दामों में सीताफल बोली के तौर पर खरीद कर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, नागपुर और कोलकाता तक लेकर जाते हैं।
सावंरी बाजार में पीली शर्ट पहने और सिर पर साफा बांधे बैठे एक बुजुर्ग ने बताया कि सीताफल के लिए यहां पर कोई मंडी न होने की वजह से वह ग्रामीण आदिवासी इस फल को ऐसे ही छोटी बाजारों में या फिर सड़क के किनारे बैठकर ही बेचते हैं।
वह बताते हैं कि मध्यप्रदेश जंगल और जंगली जानवरों के लिए ही जाना ज्यादा है। पर उनके इस इलाके में जंगल बहुत ज्यादा है और जंगल में ही सीताफल होता है। एक व्यक्ति 2 या 3 टोकरी सीताफल एक दिन में तोड़कर बाजार ला पाता है। एक टोकरे में जो थोड़ा बड़ा है। उसमें लगभग 40 से 50 फल होते हैं जो तौल के अनुसार लगभग 5 किलो होंगे और उस टोकरे कि किमत बाजार में लगभग 100 से 110 रुपये ही मिलती है जो दिन भर की मजदूरी भी नहीं होती है। इस लिए अब सड़क किनारे भी काफी लोग बेचने लगे हैं क्योंकि वहां बाजार से थोड़ा अच्छा रेट मिल जाता है।
डाक्टर भी देते हैं फल खाने की सलाह
बुजुर्गो कि माने तो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए फल और हरी सब्जियां बहुत जरूरी होती हैं। फल में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को स्वस्थ और हेल्दी बनाए रखते हैं। सीताफल भी उन्ही में से एक ऐसा ही फल है, जिसके खाने से हार्ट हेल्दी रहता है और यह डाइजेस्टिव मतलब (पाचन तंत्र) को भी सही रखता है।
यही वजह है कि रोजाना के खाने में भी फल शामिल करने की सलाह कई बार कमजोर या बीमार लोगों को डाक्टर द्वारा दी जाती है। यह फल विटामिन सी, मैग्नीशियम, विटामिन B6 और आयरन आदि से भरपूर होता है। यह फल हार्ट और डायबिटीज मतलब पाचन तंत्र दोनों के लिए फायदेमंद माना जाता है।
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