पत्रकारों को पत्रकारिता करने से रोकना, कोई नई बात नहीं। उन्हें झूठे इल्ज़ामों में फंसाना और प्रताड़ित करना, मानों नियम–सा बन गया हो । मिडिया, चौथे खंभे के रूप में अब नाम से ज़यादा और कुछ नहीं। समय–समय पर सरकार द्वारा उसे तोड़ने की पुरज़ोर कोशिश की गयी। लेकिन कुछ ऐसे भी डीठ और अड़ियल पत्रकार हैं, जो हर झूठे हमले को झेलने के लिए पूरी तरह से तैयार रहें। यही वजह हैं कि वह या तो जेलों के अंदर हैं या उन्हें झूठे मुद्दों में फंसा कर उन पर कई एफआईआर दर्ज़ की गयी है और साथ ही कई मिडिया कार्यालयों पर छापेमारी भी की गयी। इतनी मेहनत सिर्फ पत्रकार को पत्रकारिता करने से रोकने के लिए। यह कैसा डर है ? मैं आपसे कुछ ऐसे ही मामलों से सांझा कराना चाहती हूँ जहाँ सिर्फ इल्ज़ाम थे पर सबूत के नाम पर सिर्फ डर ही नज़र आ रहा था।
रविवार को ईडी ने खत्म की छापेमारी
रविवार 14 फरवरी की सुबह तकरीबन 1:30 बजे प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी पांच दिन चली लम्बी छापेमारी को खत्म कर दिया। तकरीबन 80 से भी ज़्यादा घंटों तक ईडी की जांच चली। जानकारी के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मंगलवार से ही ऑनलाइन न्यूज़ प्लेटफार्म न्यूज़क्लिक के एडिटर प्रबीर पुरकायस्थ और लेखिका गीता हरिहरन के घर पर छानबीन की जा रही थी। हरिहरन, प्रबीर के साथ मीडिया प्लेटफार्म की शेयरहोल्डर हैं। इस दौरान दोनों को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा घर में ही नज़रबंद कर दिया गया था। जानकारी के अनुसार, ईडी ( प्रवर्तन निदेशालय ) न्यूज़क्लिक के घर पर छापेमारी के दौरान कुछ आर्थिक अपराधों के सबूतों को खोजने का प्रयास कर रही थी। ईडी ने छापेमारी की वजह मनी लॉन्डरिंग और एजेंसी को विदेशों की कुछ संदिग्ध कंपनियों से पैसे मिलने को बताया।
ईडी ने कहा कि उनकी छानबीन कुछ दिनों में ही खत्म हो जाती। लेकिन वह इसलिए ज़ारी रही क्यूंकि उन्हें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में से खत्म किये हुए डाटा को फिर से निकालने में दिक्क्तें आ रही थीं। ईडी का कहना था कि प्रबीर और हरिहरन को घर में इसलिए बंद रखा गया क्यूंकि खोज के दौरान उनकी उपस्थिति ज़रूरी थी।
इंडियन एक्सप्रेस की 14 फरवरी की रिपोर्ट के अनुसार ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ” वे (प्रबीर और हरिहरन) नहीं चाहते थे कि हम उनके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लेकर जाए। इसलिए उनके घर पर, उनकी मौजूदगी में डाटा निकालने के आलावा उनके पास और कोई विकल्प नहीं था। उनकी ईमेल आईडी बैकअप ( बैकअप यानी जहां चीज़ें सुरक्षित होती हैं) होने में बहुत समय लगा रही थी। इसके अलावा घर पर छापेमारी काफ़ी समय पहले ही खत्म कर दी गयी थी। “
ईडी द्वारा न्यूज़क्लिक के 10 परिसरों पर मारा गया छापा
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 9 फरवरी, मंगलवार से न्यूज़क्लिक के ऑफिस, उसके पत्रकारों और निर्देशकों के बारे में जांच–पड़ताल करना शुरु की गयी थी। ईडी द्वारा टीम बनाकर न्यूज़क्लिक के दिल्ली और यूपी के गाज़ियाबाद के ऑफिस के 10 परिसरों पर छापा मारा गया। ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल के दक्षिणी दिल्ली के सोलाजाब कार्यालय में खोजबीन की गयी। इसके साथ ही पीपीके न्यूज़क्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित कंपनियों और शेयरधारकों के कार्यालय में भी छापा मारा गया।
जानकारी के अनुसार, मंगलवार के दिन उन कार्यालयों में तलाशी की गयी थी, जिनका संबंध इन चार इकाइयों या संस्थाओं से हैं। वे हैं –पीपीके न्यूजक्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड, पीपी कोनेक्टमेडिया,पीपीके न्यूज़टिक स्टूडियो एलएलपी और जे एंटरप्राइसेज़। छह परिसरों में मंगलवार के दिन छानबीन की गयी थी तथा बाकी के चार परिसरों में अगले दिन यानी बुधवार को तलाशी ली गयी।
30 करोड़ रुपयों के निवेश की करी जा रही है जांच – ईडी
ईडी द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार वे अमेरिका के तीन कंपनियों द्वारा न्यूज़क्लिक को दिए गए 30 करोड़ रुपयों के निवेश की जांच कर रहे थे। वहीं न्यूज़क्लिक का यह कहना था कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और उन्होंने सभी क़ानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया है। शुक्रवार, 12 फरवरी को न्यूज़क्लिक द्वारा एक बयान ज़ारी किया गया था जिसमें यह कहा गया कि उनकी टीम प्रवर्तन निदेशालय के साथ पूरी तरह से सहयोग कर रही है। बयान में यह भी बताया गया कि न्यूज़क्लिक के कार्यालय में लगभग 36 घंटों तक छापा मारा गया और एक समाचार संगठन को चलाने के लिए जिन उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है उसे और निर्देशकों और वरिष्ठ प्रबंधन अधिकारीयों से बातचीत करने के ज़रिये को भी ज़ब्त कर लिया गया। जिसकी वजह से उनके काम करने और मिडिया के सवालों के जवाब देने के साधन सीमित हो गए। उसमें यह भी कहा कि छापेमारी करना बस डराने का एक तरीका है ताकि प्रतिशोध के ज़रिये स्वतंत्र और प्रगतिशील आवाज़ को प्रसारित करने से रोका जा सके।
जानकारी के अनुसार, न्यूज़क्लिक मीडिया पोर्टल ने किसान आंदोलन में बहुत सक्रीय भूमिका निभाई है। उसके द्वारा ज़मीनी तौर पर मामलों का निरक्षण करते हुए रिपोर्टिंग की गयी और वीडियोज़ बनाए गए। जिसे की लगभग मिलियनस लोगों ने देखा। एक बात यह भी गौर करने की है कि किसान आंदोलन के दौरान जिन ऑनलाइन मिडिया पोर्टल ने रिपोर्टिंग की। उन पर या उनके रिपोर्टर्स पर किसी ना किसी तरह के गलत इल्ज़ाम ज़रूर लगाए गए। हालाँकि, छापेमारी के बाद प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कोई भी बयान आधकारिक तौर पर अभी तक नहीं दिया गया। जिसके चलते न्यूज़क्लिक के कार्यालयों पर छापेमारी की जा रही थी।
ईडी द्वारा किये गए छापेमारी की भारत सहित विदेशों के कई प्रेस निकायों द्वारा आलोचना की गयी। प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया (पीसीआई) ने छापेमारी को लेकर कहा कि यह आलोचनात्मक पत्रकारिता को डराने और चुप कराने के लिए एक बेहद भद्दा हमला है।
झूठे इल्ज़ामों में फंसाये गए पत्रकार
हाल ही में 31 जनवरी के दिन फ्रीलान्स पत्रकार मनदीप पुनिया को किसान आंदोलन पर रिपोर्टिंग करने के दौरान सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार कर लिया गया था। उस पर यह इल्ज़ाम डालकर गिरफ्तार किया गया कि वह सार्वजनिक कार्यों में बाधा डाल रहा था और उसने किसी पुलिस कांस्टेबल को धक्का भी दिया था। वहीं मनदीप ने कहा कि उसकी ही तरह अन्य फ्रीलान्स जर्नलसित को भी पुलिस द्वारा रिपोर्टिंग के दौरान गिरफ़्तार किया गया था। लेकिन उन्हें आधी रात तक छोड़ दिया गया था। लेकिन उसे नहीं छोड़ा गया। 2 फरवरी को दिल्ली की अदालत द्वारा उसे ज़मानत दी गयी थी। छूटने के बाद मनदीप ने कहा कि जब उसे पकड़ा गया तो पुलिस उसका नाम जानती थी। ऐसा कैसे हो सकता है कि पुलिस किसी फ्रीलांस जर्नलसित का नाम जानती हो ? यह तो तब ही हो सकता है जब किसी को पहले से ही पकड़ने के लिए योजना बनाई जाए।
मनदीप पुनिया के आलावा द स्क्रॉल की पत्रकार सुप्रिया शर्मा, हिंदुस्तान दैनिक समाचार की चीफ एडिटर मृणल पांडे, इण्डिया टुडे के न्यूज़ एंकर राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड के पत्रकार ज़फर आग़ा, द कारवां के पत्रकार विनोद जोस, पत्रकार विनोद दुआ ( एनडीटी और डीडी नेशनल में कार्यरत रह चुके हैं), द वायर की इस्मत आरा और ऐसे ही कई अन्य पत्रकारों को सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया गया क्यूंकि लोगो की नज़रों में वह उनके लिए खतरनाक थे। इन्होंने कोई जुर्म नहीं किया था पर क्यूंकि सच दिखाना जुर्म से कम नहीं है इसलिए उन पर अलग–अलग झूठे आरोपों में डालकर उन्हें फंसाया गया ताकि इनकी हिम्मत को तोड़ा जा सके।
मानव अधिकार संगठन कार्यालय पर छापेमारी का मामला
प्रवर्तन निदेशालय पर आरोप लगाते हुए मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने मंगलवार 29 सितंबर, 2020 को एक घोषणा की थी। जिसमें यह बताया गया कि उन्हें भारत में कर्मचारियों को निकालने के लिए मजबूर किया गया। जिसकी वजह से 150 कर्मचारी प्रभावित हुए। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके बैंक खातों को ज़ब्त कर लिया गया। इससे पहले 25 अक्टूबर 2018 को भी ईडी द्वारा लगभग 10 घंटे तक कार्यालय में छापेमारी की गयी थी। जिसमें संगठन द्वारा पूरा सहयोग दिया जा रहा था। जानकारी के अनुसार, जब संगठन ने 2020 में हुई दिल्ली हिंसा, धारा 370 और जम्मू–कश्मीर के हालात को लेकर सरकार से जवाब मांगा। उसके बाद ही प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संगठन के कार्यालय पर छापेमारी की गयी। तो इसे क्या कहा जाए? इसे तो पूर्वनियोचित योजना ही कहा जा सकता है।
जानिए प्रबीर और गीता हरिहरन के बारे में
प्रबीर पुरकायस्थ न्यूजक्लिक के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हैं। युवावस्था में वह आपातकाल के दौरान जेल भी जा चुके हैं। वहीं लेखिका हरिहरन ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, लघु कथा और निबंध भी लिखे हैं। उन्होंने अपने पहले उपन्यास ‘द थाउज़ेंड‘ के लिए कॉमनवेल्थ राइटर्स पुरस्कार और 1993 में ‘फेस ऑफ नाइट‘ के लिए पुरुस्कार जीता था। साल 1999 में उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक के नियमों के खिलाफ याचिका दायर की थी क्यूंकि बैंक महिलाओं को अभिभावको के रूप मानयता नहीं देता था। उनकी की हुई याचिका के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए महिलाओं को अभिभावकों की ही तरह समान अधिकार प्रदान करने का फैसला सुनाया था।
न्यूज़क्लिक पर सिर्फ इसलिए हमला बोला गया क्यूंकि वह शासन–प्रशासन की बोली नहीं बोल रहा था। सिर्फ यही नहीं, इसके आलावा जिस भी पत्रकार, न्यूज़ पोर्टल, सामाजिक कार्यकर्ता और यहां तक की मानव अधिकार संगठन को भी सरकार द्वारा इसलिए निशाना बनाया गया क्यूंकि वह सब सरकार की जी हुज़ूरी नहीं कर रहे थे। पत्रकारिता में कभी यह तो नहीं कहा गया कि पत्रकारों को सरकार का पिछलग्गू ( पीछे काम करने वाला) बनकर काम करना है। संविधान ने कभी नहीं कहा कि सच दिखाने के लिए पत्रकारों को सरकार की इज़ाज़त लेनी पड़ेगी। फिर सच दिखाने की वजह से उन्हें क्यों पकड़ा जा है? उन्हें क्यों प्रताड़ित किया जा रहा है?
द्वारा लिखित – संध्या