बांस की ख़ासियत यह है कि वह धरती पर प्रकृति के अद्भुत उपहारों में से एक है। धरती पर पौधे के रूप में बांस की सबसे ज़्यादा खपत होती है। भारत में बांस की करीब 136 प्रजातियां पाई जाती हैं।
आज के दौर में बांस (bamboo) के बने उत्पादों ने बाजार में अपने कदम जमा लिए हैं। बांस की खेती के जरिए लकड़ी के उत्पादों पर इंसान की आत्मनिर्भरता को कम करने में मदद मिल रही है। शुरुआत से ही इंसानों ने अपने दैनिक जीवन में लकड़ी के उत्पादों का उपयोग किया है। इसकी खपत बढ़ने पर तेजी से पेड़ों का कटाव हुआ और जंगल नष्ट होने लगे।
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कम मेहनत में ज़्यादा मुनाफा देने वाली फसलों में अब बांस का नाम भी शामिल हो चुका है। पहले तो बांस सिर्फ जंगलों में प्रकृति के स्पर्श से ही उग जाता था। लेकिन बांस के बढ़ते उपयोग के चलते इसकी व्यवसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। हालांकि बांस की खेती में जद्दोजहद करने की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ चार साल फसल का ठीक प्रकार पालन पोषण करें और करीब 40-45 साल तक बांस की फसल आपको मुनाफा देती रहेगी।
जिला वैशाली, भगवानपुर, पंचायत हुसैना के रहने वाले सुशील कुमार लगभग 8 साल से बांस की खेती कर रहे है। इसी से इनका जीविका चल रहा है। इन्होंने बताया कि बांस की खेती कैसे की जाती है। बांस लगभग डेढ़ साल में तैयार हो जाता है। इसकी बिक्री ये आस-पास के गांव में और दूसरे जिले में भी करते है।
इसकी लागत मूल्य बहुत कम है और मुनाफा बहुत है। इसकी खेती के लिए लगभग क्षेत्र देख कर पीस के हिसाब से बांस लगाये जाते है। उसके बाद अपने आप इसकी संख्या बढ़ते जाती है व इसकी खेती में कोई मेहनत नहीं है।
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