जब भी कोई त्योहार आता है महिलाओं को कितना काम करना पड़ता है। जब भी घर मे कोई शादी हो छोटे-बड़े कार्यक्रम होते हैं कितनी जिम्मेदारी महिलाओं पर होती हैं। और अगर महिलाएं ग्रामीण हो तो और भी काम बढ़ जाते हैं। जैसे खेती किसानी और घर की साफ सफाई जानवरों का काम खेत का हर एक काम करना पड़ता है।
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और दीपावली का त्यौहार जो हमारे देश का बडा पर्व माना जाता बहुत ही धूमधाम से बनाया जाता है। और इस समय बहुत सारे काम बढ जाते हैं। दिपावली का त्योहार सर पर है महिलाओं को धान की कटाई कुटाई साथ मे गेहू चने की फसल के लिए पलेवा करना। और गांव के बडे बडे कच्चे मकान जिसमे बारिश के बाद बहुत ही मेहनत करनी होती है।और लोग इन्तजार करते हैं दिपावली से पहले ही साफ-सफाई करेंगे कच्चे मकान मे मिट्टी लगाना और पूरे घर की लिपाई पुताई करना पड़ता है।
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काम का बोझ इतना की महिलाएं रात तीन बजे से उठती हैं और शूरू हो जाती हैं घरके काम से खेत तक के काम में।सुबह से जानवरों को खाना पानी देना दूध दुहना फिर खाना बनाना साथ ही साथ रोज वाले घरके काम, फिर खेत जाकर धान की तैयार फसल को काटना घर लाना। फिर धान से चावल निकालना दोपहर हो जाती है। ऐसे ही फिर दिपावली के बढे हुए काम को थोड़ा-थोड़ा समय निकाल कर करना इस तरह देर रात तक लगातार मेहनत करती हैं। फिर देर रात वो थोडा अराम करने को मिलता है। मुश्किल से चार घंटे सोने को मिलता है और अगर बात करे महिलाओं के काम की बात तो कहा जाता है महिलाएं काम ही नहीं करती। काम ही क्या है दिनभर फालतू ही तो रहती हैं। खा बना लिया और फिर फ्री फालतू चौरा करती हैं।