बदलते समय के साथ महिलाओं में भी काफी जागरुकता बढी़ है| इसके बावजूद भी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में पुरुष सत्ता और दहेज़ लोभियों के चलते महिला हिंसा की बहुत ही बूरी स्थिति है और वह सुरक्षित नहीं हैं| कहीं पति प्रताड़ित करता है,तो कहीं परिवार के लोग और इस हिंसा को झेलते हुए जब थकी हारी महिलाएं पुलिस थाना करती हैं, तो वहां भी उनकी कोई सुनवाई नहीं होती| इसका अनुभव मैने इस कोरोना वायरस से बचाव के लिए हुए लॉकडाउन में जब सब लोग अपने घरों के अंदर कैद थे| तब बांदा जिले के नरैनी तहसील अंतर्गत आने वाले कुछ गांव की महिलाओं को न्याय की मांग के लिए भटकते हुए देख और उनकी पीडा़ सुनकर किया है|
नरैनी ब्लाक के परसहर गांव की नीलम ने अपनी बात-चीत के दौरान रो-रो कर बताया कि उसका पति पुना शहर में एक कंपनी में काम करता था| पर पिछले साल 2019 में फरवरी के महीने में बीमारी के कारण खत्म हो गया है,उसके तीन छोटे-छोटे बच्चे है| पति के मर जाने के बाद ससुराल वालों का कोई सहयोग नहीं मिला और जो पति कि बीमारी में देवर ने पैसे लगाये थे उसके लिए ताने देने लगे, लेकिन कुछ दिन वह सहती रही पर तीन बच्चों का खर्च न झेल पाने की मजबूरी और ससुराल वालों के तानों ने उसके कान पका दिया| एक दिन देवर ने कहा की चाहे तुम अपनी बेटी बेंचों या इज्जत पर उसे अपने पैसे चाहिए| इस बात ने उस महिला को घर से बाहर निकल कर काम करने के लिए मजबूर कर दिया और वह गांव से नरैनी आ कर एक दुकान में काम करने लगी|
जिसके लिए उसे सुबह 8 बजे गांव से आना पड़ता था और शाम को जाने में भी देर हो जाती थी बच्चे पूरा दिन अकेले घर में रहते थे तो उनकी भी चिन्ता सताती रहती थी| एक दिन नरैनी से गांव वापस जाते समय कुछ लोगों ने बुरी नियत से उसको रास्ते में छेंका और ये बात उसने घर जा कर अपने ससुर से बताई, लेकिन उन्होंने कोई मदद नहीं कि और कहा की हमसे कोई मतलब नहीं है चाहे तुम्हे जो हो जाए| तब उसने सोचा कि जितना मेरा आने-जाने में किराया लगता है उतने में नरैनी में किराये का कमरा लेकर रहूं और फिर मैंने नरैनी में कमरा ले लिया और बच्चों के साथ रहने लगी फिर ससुराल वालों ने दुकान वाले से गलत संबंध का आरोप लगया और मेरा काम छोड़वा दिया| तब से मैं एक छोटा सा श्री पान और नमकीन बिस्किट का खोखा रख के अपने बच्चे पाल रही हूँ|
लॉक डाउन में जब वह खोखा बंद हो गया तो खाने पीने की दिक्कत पड़ने लगी और कुछ दिन उसने तहसील से खाना लेकर बच्चों को खिलाया और ससुराल वालों से खेती में हिंस्सा मांगने के लिए तहसील कचेहरी और कालिंजर थाने के बराबर चक्कर लगाती रही और रोती गीड-गीडाती रही लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं है और वह परेशान है|
इसी तरह महुआ ब्लाक के बरुआ स्योढा गांव में रहने वाली संगीता बतती है की उसका ससुर बहेरी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में काम करता है और नदवारा गांव में परिवार सहित रहते हैं और उसके साथ मारपीट करते हैं खाना नहीं देते ससुर गलत संबंध बनता है मना करती है, तो उसको घर से निकल दिया इस लिए वह बरुआ गांव में बने टुटे फुटे घर में रहती है और मांग-मांग खाती है|
उसके एक छोटी बेटी भी है और मायके से भी कोई सहारा नहीं है क्योंकि वहाँ पर दुसरी मां है,तो वह भी नहीं रखती पर किसी तरह मां के हांथ-पैर जोड कर लड़की को मायके में रख आई हूँ क्योंकि मैं तो किसी तरह मांग के खाती हूँ और कहीं भुंखी रहती हूँ पर लड़की को कैसे रखूं| इस मामले कि शिकायत भी कई बार नरैनी कोतवाली से लेकर बांदा एसपी तक किया है,लेकिन कुछ नहीं हुआ| इसी तरह हड़हा गांव की सना बताती है कि शादी के समय दहेज की कोई ऐसी बात नहीं हूई थी और जो उसके मां बाप के पास था वह दिया था |
लेकिन शादी के बाद से उसका पति दहेज कम मिलने के ताने देने लगा और मारपीट करने लगा अभी हाल ही में 20 दिन पहले मोटरसाइकिल की मांग को लेकर बहुत ही बूरी तरह मारा था कि मायके वाले आटो में लेटा के दवा कराने के लिए आये थे, वह अपने से बैठ भी नहीं पा रही थी और कोतवली नरैनी में दरखास भी दी थी पर हुआ कुछ नहीं यही कारण है कि बराबर महिलाएं हिंस्साओं से जुझ रही है और इन जैसी सैकडो़ महिलाएं है जो इस तरह की हिंसा से जुझती रहती है पर आवाज नहीं उठा पाती और अगर उठाती हैं|
तो न्याय के लिए भकटती रहती हैं या फिर उन्ही को दोषी ठहरा दिया जाता है पर कारवाई नहीं की जाती| ये अपने आप में एक बड़ा सवाल हैं कि जहाँ पर महिला हिंसा को रोकने और जल्द ही उन्हें न्याय दिलाने के लिए इतने सारे कानुन और हेल्पलाइन नंबर हैं,वहाँ इन महिलाओं को न्याय क्यों नहीं मिल रहा क्या ये पुलिस प्रसाशन की जिम्मेदारी नहीं है या फिर प्रसाशन जान कर भी अनजान है और कारवाई करना नहीं चाहती| जिसके कारण महिला हिंसा दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं|