बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक के महुई गांव की अंबेडकर सहायता समूह की अध्यक्ष संगीता से जब हमने सवाल किया कि स्वयं सहायता समूह से महिलाओं को क्या फायदा होता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा,”कोई फायदा नहीं होता। बस धंधा-पानी करने के लिए पैसा आता है। उठाओ और फिर भर दो।”
Lakhpati Didi Yojana: स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups) के ज़रिये महिलाओं को लखपति दीदी’ बनाने का दावा करती सत्ता की सरकार का कहना है कि अभी तक 1 करोड़ महिलाएं लखपति दीदी’ बन चुकी हैं। अब उनका लक्ष्य है कि 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाया जाए।
हमारा सवाल है कि सरकार जो यह डाटा पेश कर रही है, जिन स्वयं सहायता समूहों की बात की जा रही है, वह कहां हैं? किस जगह से हैं? क्या यह गांवो में स्थापित स्वयं सहायता समूह है व उसमें शामिल महिलायें हैं?
जब हम खबर लहरिया की इससे जुड़ी रिपोर्ट देखते हैं तो हम यही पाते हैं कि महिलाएं ‘स्वयं सहायता समूह’ में बस इस उम्मीद से जुड़ती हैं कि उन्हें कुछ रोज़गार मिल जाएगा या उससे कुछ घर-खर्चा निकल जाएगा या बचत हो पाएगी। जहां तक बात रही इससे जुड़कर किसी कौशल को सीख कुटीर उद्योग शुरू करने की, या कर्ज़ लेने की तो ग्रामीण परिवेश में यह महिलाओं के लिए सबसे ज़्यादा चुनौती है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें इसके बारे में सही तौर से पहली बात बताने वाला कोई नहीं होता। अगर उन्हें इसकी जानकारी हो भी जाए तो समाज में बैठी पितृसत्ता महिला को अपने लिए, अपने कौशल के लिए घर से बाहर जाने नहीं देती। जब तक महिला घर के लिए रोज़गार कर रही है तब तक एक हद तक उसका बाहर निकलना जायज़ व सही समझा जाता है।
हमारी रिपोर्टिंग में हमने यही पाया है कि बेहद कम महिलायें स्वयं सहायता समूहों से जुड़ अपना खुद का कोई रोज़गार शुरू करने का विचार कर पाती हैं क्योंकि उनकी प्राथमिकता व पहली समस्या के रूप घर-परिवार को चलाने की ज़िम्मेदारी सबसे पहले आकर खड़ी हो जाती हैं।
तो क्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को भी सरकार लखपति दीदी कह रही हैं या सिर्फ? कौन है लखपति दीदी? क्या वह कोई महिला किसान है? झाड़ू बनाने वाली महिला है? क्या वह किसी गांव से आती हैं? क्या वह कोई दलित महिला है? इत्यादि……. क्या इन पहचानों में से कोई लखपती दीदी हैं?
खबर लहरिया के शो राजनीति,रस, राय में तंज करते हुए सवाल पूछा गया, “देश की 1 करोड़ महिलाएं तो लखपति दीदी बन गई हैं लेकिन जो अन्य महिलाएं हैं वह कहां गईं? महिलाओं के पास 200 से 300 का भी रोज़गार नहीं है, सिलिंडर के दाम हमेशा बढ़े रहते हैं, तो ये लोग कैसे लखपती हैं?
आगे कहा, लखपति दीदी वही महिलाएं बनती हैं जो पहले से ही लखपति हैं।”
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क्या गांव की महिलाएं बन रहीं लखपति दीदी?
अभी हाल ही में 25 अगस्त 2024 को पीएम नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के जलगांव में ‘लखपति दीदी सम्मेलन’ (Lakhpati Didi Sammelan) में भाग लिया था। प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, वहां पीएम द्वारा 11 लाख नई लखपति दीदियों को प्रमाण देकर सम्मानित किया गया जो हाल ही में वर्तमान सरकार के तीसरे कार्यकाल के दौरान लखपति बनी हैं।
इस दौरान पीएम मोदी ने 2,500 करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड भी ज़ारी किया और यह दावा किया की इससे 4.3 लाख स्वयं सहायता समूहों के लगभग 48 लाख सदस्यों को लाभ हुआ है। बता दें, रिवॉल्विंग फंड, एक ऐसा फंड या खाता है जो किसी वित्तीय वर्ष की सीमा के बिना किसी संगठन के निरंतर संचालन को वित्तीय रूप में पोषित करने के लिए उपलब्ध रहता है।
इसके साथ ही, पीएम द्वारा 5,000 करोड़ रुपये का बैंक ऋण भी वितरित किया, जिससे 2.35 लाख एसएचजी के 25.8 लाख सदस्यों को लाभ होने की बात कही गई।
सरकार के आंकड़े तो हमने देख लिए। अब अगर हम इन्हीं स्वयं सहायता समूहों को गांवों के परिदृश्य में देखते हैं तो यहां यह सहायता दिखावे से ज़्यादा और कुछ नज़र नहीं आते व यह खुद महिलाओं का कहना है।
खबर लहरिया की फरवरी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, “स्वयं सहायता समूहों में काम कर रही महिलाओं ने बताया कि पीएम मोदी की रैली में भीड़ जुटाने का दबाव बनाया जाता है कि अगर वह रैली में नहीं पहुंची तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा।” रैली में सिर्फ महिलाओं को बुलाया गया लेकिन बुलाते समय यह नहीं बताया गया कि उन्हें किस लिए बुलाया जा रहा है। बता दें, 2022 में विधानसभा चुनाव कराये गए थे जिस दौरान इस रैली का भी आयोजन चुनाव को देखते हुए किया गया था।
स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को उपयोग भीड़ के साथ यह दिखाने के लिए किया जाता है कि इतनी ज़्यादा मात्रा में महिलाओं को सरकारी लाभ मिला है। यह भीड़ हम हर चुनाव व भाषण में देखते हैं जैसा अभी हमने हाल ही में महाराष्ट्र के जलगांव में देखा जहां चयनित लखपति दीदियों को बुलाया गया था। लखपति दीदी बनने और कहलाने का फायदा ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली महिलाओं के नाम के आगे देखने को नहीं मिलता। अगर मिलता है तो वह भी बस एक दिखावे के रूप में।
बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक के महुई गांव की अंबेडकर सहायता समूह की अध्यक्ष संगीता से जब हमने सवाल किया कि स्वयं सहायता समूह से महिलाओं को क्या फायदा होता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा,”कोई फायदा नहीं होता। बस धंधा-पानी करने के लिए पैसा आता है। उठाओ और फिर भर दो।”
अधिकतर महिलाओं का यही कहना था कि वह बचत के लिए समूह से जुड़ी हैं लेकिन रोज़मर्रा की ज़रूरतें और कम आय में न तो बचत हो पाती है और न ही उतनी आय है।
बांदा जिले के डिंगवाही गांव की 47 वर्षीय महिला बिंदी अनुसूचित जाति से हैं। पति मज़दूरी करते हैं। वह पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उनका कहना है कि सरकार के पैसे से उन्हें डर लगता है इसलिए उन्होने कभी भी बैंक से लोन नहीं लिया। गरीबी ने उन्हें स्वयं सहायता समूह से जोड़ दिया। वह पचास रुपये महीने की किस्त आठ बार जमा करती हैं। जैसे ही इस पैसे की जमा तारीख आती है तो उन्हें फिर सोचना पड़ता है कि पैसे की व्यवस्था कैसे होगी। फिर उन्हें किसी भी हाल में घर से या कर्ज लेकर जमा ही करना पड़ता है। (खबर लहरिया की मार्च 2021 की रिपोर्ट)
ऐसे में भविष्य के लिए बचत और आज की ज़रूरत बिंदी जैसी कई महिलाओं के लिए सवाल है।
फिर ये लखपति दीदी कौन-सी महिलायें हैं? किन महिलाओं को सरकार लखपती दीदियां बना रही हैं? ग्रामीण परिवेश में तो महिलाएं समूहों में बस घर की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जुड़ पाती हैं फिर इससे कौशल सीख अपना काम शुरू करना तो बहुत दूर की बात है।
केंद्र सरकार के अनुसार, लखपति दीदी योजना,ग्रामीण विकास मंत्रालय (Ministry of Rural Development) की दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) योजना का एक आउटपुट है। उसके लिए हाल ही में वित्तीय वर्ष के 2024-25 के बजट में 15047.00 करोड़ का बड़ा हुआ बजट रखा गया। कहा गया, इससे स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों की आजीविका के लिए हस्तक्षेप बढ़ाने में सुविधा होगी। यह दावा किया गया कि ये हस्तक्षेप न केवल एसएचजी सदस्यों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाएंगे बल्कि महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को भी सुविधाजनक बनाएंगे।
प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है, डीएवाई-एनआरएलएम ( Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihoods Mission) के तहत, 30 जून 2024 तक, 10.05 करोड़ महिलाओं को 90.86 लाख स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में शामिल किया गया है। इन एसएचजी सदस्यों में से 1 करोड़ से अधिक एसएचजी सदस्यों की वार्षिक आय 1 लाख रुपये से अधिक है यानी वे लखपति दीदी हैं।
हमारा सवाल है कि जिन 10.05 करोड़ महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने की बात की जा रही है, उन्हें किस तरह का फायदा हुआ है? वह महिलाएं जो गांवो से आती हैं और वहां के स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं, वह रोज़ इस बात से लड़ती हैं कि आज का खर्चा कैसे चलेगा। बेशक इन समूहों से एक हद तक लोन मिल जाता है लेकिन फिर उन्हें भरने का भार कभी उन्हें समूह के ज़रिये अन्य कुछ करने की आज़ादी ही नहीं दे पाता। ऐसे में जिन कौशल विकास व लोन देने की बात कही जा रही है, वह लोन व कौशल किस तरह से महिलाओं को सही में दिया जाए, क्या सरकार इस पर विचार कर रही है? क्या इस पर विचार किया जा रहा है कि क्या महिलाओं के पास वैचारिक तौर पर इतनी स्वतंत्रता है कि वह अपने कौशल विकास के साथ किसी अन्य रोज़गार को शुरू करने के बारे में सोच पाए? वह रोज़गार जो उनके परिवेश में मौजूद ही नहीं है। वह परिवेश जो उनके लिए हर कदम पर बस चुनौती पेश करते हैं।
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Bahut hi badiya report .
Good reporting & information
Bahut acchhi repot h
बिल्कुल सही पैसा देकर दबाव बनाया जा रहा है जल्दी पैसा वापस करो नही तो कानूनी नोटिस भेजा जाएगा औरतों को डराया जा रहा है पहले लालच देकर दबाव बनाया जा रहा है कि पैसा लो फिर डराया जा रहा है पैसों को वापस करो एक दम
Aaj Tak samuh se hame koi laabh n huaa hai balki mujhe khud paesa lagana padta hai rashan ke liye aur mask banaye the aaj tak mujhe aek rupaye n mile sarkar gumrah kar rahi hai lakhpati karodpati banana kar