मजदूरों के सम्मान में कोई तारीख (हर साल 1 मई को अंर्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस) भी निर्धारित है इसकी जानकारी जब मजदूरों को नहीं है तो कहां से यह कह पाएंगे कि वह सिर्फ 8 घण्टे से ज़्यादा काम नहीं करेंगे। यह कहना उनका अधिकार है। प्राइवेट क्षेत्र में काम करने के 12 घण्टे ही मान्य किये जाते हैं। जब से कोरोना आया है तब से और जॉब का दायरा कम होने के कारण मजदूरों के काम के घण्टे और तौर तरीके बदल गए हैं। मजदूरों के ऊपर काम न मिलने का दबाव बढ़ गया है। जब ये जागरूकता शहरों में नहीं है तो गांव में कहां से होगी? इस मुद्दे पर हमने अलग-अलग मजदूरों से बात की।
45 वर्षीय राममूरत वर्मा बताते हैं कि वह और उनके ही बिरादरी के करीब 4 लोग मिलकर एक घर में छप्पर बनाने का काम कर रहे हैं। मनरेगा का काम बहुत मुश्किल से मिलता है। काम के कोई घण्टे निर्धारित नहीं होते। उनको मजदूर दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है। एक साल पहले श्रम कार्ड भी बनवाया था लेकिन उससे कोई लाभ नहीं मिला है। बनवाते समय कहा गया था कि इसमें पैसा मिलेगा लेकिन आज तक एक रुपये नहीं आया।
ये भी देखें – मजदूर दिवस पर आंखों देखी, कानों सुनी दास्ताँ लेकर आई हैं कविता, देखिए द कविता शो में
चंदन वर्मा उम्र 21 साल- इंटर मैथ से किया है। आईटीआई में एडमिशन लिया है। पढ़ाई पूरी करने और घर खर्च चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है। पिता को सुगर की बीमारी है। उनके ऊपर महीने के तीन हज़ार रुपये लग जाते हैं। परिवार में सबसे बड़ा होने के नाते मां, दो भाई और बहनों के खर्च उठाने की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही है। इनको भी मजदूर दिवस के बारे में नहीं पता। नौकरी के बारे सोंच रहे हैं लेकिन नौकरी कहां से कर पाएंगे। उनके करीब पंद्रह से बीस साथी हैं जो उनके जैसे ही मजदूरी करके पढ़ाई कर रहे हैं।
28 साल के अनिल कुमार यादव जिन्होंने पांचवी तक पढ़ाई करने के बाद छोड़ दी। जूनियर स्कूल तब नहीं था जबकि अब जूनियर स्कूल बन गया है। सूरत-बम्बई नौकरी करने जाते हैं और इस समय दिल्ली में ईंटागारा का काम करते हैं। 15 साल की उम्र से पलायन शुरू कर दिया था। चार, साढ़े चार सौ रुपये दिहाड़ी कमाते हैं और उसमें आधा खर्च हो जाता है। सरकार बदलने के बाद भी उन जैसे यूथों को जॉब नहीं मिली। मजदूर दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
मजदूर संगठन के अध्यक्ष रामप्रवेश यादव कहते हैं कि मजदूर दिवस मनाने के मायने तभी सफल होंगे जब इसमें मजदूरों को सम्मान मिले। उनके हक व अधिकारों पर बात की जाए।
ये भी देखें –
वाराणसी जिले की महिला मिस्त्री, मज़दूरी से करी मिस्त्री बनने की शुरुआत
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’