समाज में दिव्यांगों की स्थिति को चित्रित करने पर तस्वीर रंगीन कम और उदासीन ज़्यादा बनती है। ऐसा इसलिए क्योंकि समाज ने कभी उन्हें पूर्ण रूप से अपनाया ही नहीं या ये कहें कि अपना ही नहीं पाएं। समाज मे उन्हें दी जाने वाली सुविधाएं भी सिर्फ नाम सी ही प्रतीत होती हैं। जिसका सिर्फ नाम है पर उसका कोई अर्थ नहीं। यूपी के बांदा जिले से चित्रकूट जिले की तरफ बस से सफर करते दिव्यांगों को सरकार द्वारा शरुआती दौर में फ्री पास के ज़रिए मुफ्त बस सेवा दी गयी। लेकिन अब वह उन सेवाओं का लाभ उठा पाने में असमर्थ हैं। इस लेख में हम आपको उनकी समस्याओं से रूबरू करवाएंगे।
सफ़र करते दिव्यांगों की समस्याएं
– जिला बांदा गांव गुमाई बजरंगी पुरवा के रहने वाले रामधनी हाथों से दिव्यांग हैं। उनका कहना है कि वह तकरीबन दस सालों से दिव्यांग पास से बस में सफ़र कर रहे हैं। लेकिन अब बस कंडक्टर द्वारा पास को मान्य नहीं माना जाता। अब टिकट के लिए उन्हें पैसे देने पड़ते हैं। दिव्यांग होने की वजह से वह कमा नहीं पाते और मज़बूरन उन्हें ना चाहते हुए भी दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है।
नए पास को बनवाने के लिए उन्हें बांदा के सीएमओ ऑफिस जाना पड़ता है। जहाँ जाने के लिए पहले बस का किराया और फिर रिक्शे का किराया देना पड़ता है। आने–जाने में उनके काफी पैसे खर्च हो जाते हैं। लेकिन फिर भी उनका पास नहीं बनता।
– बांदा जिले के चहितारा गांव के रामप्रसाद की समस्या भी रामधनी की तरह है। वह बार–बार पास बनवाने के लिए सीएमओ ऑफिस के चक्कर लगाते हैं। लेकिन तब भी कुछ नहीं होता। उनके अनुसार बस चालक का कहना है कि नए बस पास एटीएम कार्ड की तरह बनाए जाएंगे। वह कहते हैं दिव्यांग होने की वजह से वह बार–बार आना–जाना भी नहीं कर पाते।
– जिला चित्रकूट की रहने वाली पार्वती को बचपन से ही पोलियो है। इसलिए वह चल नहीं पाती। उसका पति भी सुन और बोल नहीं पाता। उसके दो बच्चे हैं। वह कहती है कि 2016 में उसका दिव्यांग बस पास बना था। लॉकडाउन की वजह से उसे पता नहीं चला कि पुराना बस पास अब नहीं चलता।
जब वह दिसंबर में मऊ गांव जाने के लिए बस में बैठी तो उसे किराया देना पड़ा। बस कंडक्टर का कहना था कि उसे नया पास बनवाना होगा। वह कहती है पुराने बस पास को बनने में ही काफ़ी समय लग गया था। पैरों से दिव्यांग होने की वजह से वह नए पास बनवाने के लिए दौड़–भाग नहीं कर सकती।
बांदा के बस कंडक्टर ने कहा, नया पास ही चलेगा
बांदा के बस कंडक्टर राज कुमार का कहना है कि पहले बने हुए पास अब नहीं चलते। अगर वह दिव्यांग व्यक्तियों की टिकट मुफ्त में बनाएंगे तो उन्हें बस कार्यालय में अपनी तरफ से पैसे भरने होंगे। अब नया पास एटीएम की तरह बनाया जाएगा और वही चलेगा। इसलिए लोगों को वही बनवाना पड़ेगा।
कर्वी बस स्टाफ इंचार्ज ने कहा : नए पास का नियम पहले से है
कर्वी के बस स्टाफ़ इंचार्ज सुरेश निगम का कहना है कि नए बस पास का नियम ढेड़ साल से है। लोग नया पास ऑनलाइन बनवा सकते हैं। ऑनलाइन बस पास बनने से कंडक्टर पास की जानकारी ऑनलाइन देख पाएगा।
अगर नए बस पास का नियम ढेड़ सालों से है तो जो लोग बस में रोज़ाना सफ़र कर रहे हैं, उन्हें नए बस पास के बारे में कैसे नहीं पता? यह बात कुछ समझ नहीं आती। साथ ही एक सवाल यह भी है कि दिव्यांगों द्वारा नए बस पास बनवाने के लिए बार–बार कार्यालय के चक्कर लगाने के बाद भी उनके बस पास को क्यों नहीं बनाया जाता? जबकि पास बनाने की प्रक्रिया ऑनलाइन है।