जब हम “गौरव” को ‘विकलांगता गौरव माह’ के अर्थ से समझते हैं तो किसी के लिए यह अपनी विकलांगता पर गर्व करना है तो किसी के लिए उनकी पहचान पर गर्व करना।
जुलाई, ‘विकलांगता गौरव माह’ के रूप में मनाया जाता है। विकलांगता गौरव माह का उद्देश्य ही यह है कि विकलांगता के बारे में लोगों के सोचने के तरीके को बदला जाए। यह बताया जाए कि विकलांगता मानव विविधता का हिस्सा है और इसे इसी तरह से देखा जाना चाहिए।
यह समय है कि हम विकलांग समुदाय के लोगों द्वारा दिए गए योगदानों के बारे में जानें, उसका सम्मान करें व उनके अनुभवों के बारे में जानें। इसका मतलब यह नहीं है कि हम साल भर इस तरफ देखें ही नहीं बल्कि क्योंकि यह महीना खासतौर पर विकलांगता के जश्न मनाने को लेकर है, तो चलिए मनाते हैं जश्न इस माह का और करते हैं ज़रूरी पहलुओं पर बात।
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विकलांगता गौरव माह में “गौरव” क्या है?
विकलांगता गौरव माह’/ Disability Pride Month में ‘गौरव/Pride’ के अर्थ को अमूमन जून में मनाये जाने वाले प्राइड मंथ से जोड़ा जाता है जो LGBTQIA+ समुदाय व उनके सहयोगियों के जश्न का महीना है।
जब हम “गौरव” को ‘विकलांगता गौरव माह’ के अर्थ से समझते हैं तो किसी के लिए यह अपनी विकलांगता पर गर्व करना है तो किसी के लिए उनकी पहचान पर गर्व करना।
कई इसे इस तरह से नहीं देखते, लेकिन अधिकतर लोग अपनी विकलांगता को मानते हैं, उसे स्वीकार करते हैं।
विकलांगता गौरव माह हमें यह भी बताता है कि ‘यह माह स्वीकृति से कहीं ज़्यादा है।’ Becca Lory Hector’s (Disability Facilitator) ने लिंक्डइन पर अपनी एक पोस्ट में लिखा कि,
“यह हमारी पहचान को अपनाने और यह पहचानने के बारे में है कि हमारी विकलांगता हमारे अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।”
हमें इस माह के ज़रिये यह दोबारा याद दिलाया जाता है कि विकलांग व्यक्तियों को समाज में कितनी सारी चुनौतियाँ हैं व पहुंच के अवसर कितने कम है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि समाज व लोगों में विकलांगता से जुड़े मुद्दों व संघर्ष के बारे में उतनी बात नहीं की जाती।
ऐसे में ज़रूरी है कि ऐसा वातावरण बनाया जाए जो समावेशी हो, जिसमें समानता को प्राथमिकता दी जाए। इसका मतलब यह भी है कि सहायक नीतियों की वकालत की जाए, ableist (विलकांग व्यक्तियों के प्रति भेदभाव व पूर्वाग्रह) नज़रिये को चुनौती दी जाए और साथ ही समावेशी कार्यस्थलों को बढ़ावा दिया जाए।
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विकलांगता व कड़ी मेहनत
समुदाय के बारे में और पढ़ने व समझने के बाद यह समझ आया कि हाशिये पर मौजूद समुदायों और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के कई लोगों ने एक ही बात कही है।
“मुझे अपनी [जाति, विकलांगता आदि के साथ रिक्त स्थान भरें] के कारण बाकी सभी की तुलना में अधिक मेहनत करनी पड़ी।” – इस बारे में Meryl Evans ने लिखा जो CPACC (Certified Professional in Accessibility Core Competencies) के साथ काम करती हैं।
वहीं हेबेन गिरमा (Haben Girma) द्वारा लिखा एक बेहद ही मज़बूत निबंध है जिसका विषय है,
“मैं विकलांग लोगों को ‘बस कड़ी मेहनत करने’ के लिए क्यों नहीं कहती”/”Why I Never Tell People With Disabilities to ‘Just Work Harder”
हेबेन, सैन फ्रांसिस्को की रहने वाली है व मानवाधिकार वकील है। वह विकलांगता से जुड़ी न्याय प्रक्रिया को लेकर काम करती हैं।
वह लिखती हैं,
“रोजगार को लेकर भेदभाव और उच्च बेरोजगारी दर अभी भी विकलांग लोगों को डराती है। कई लोग कड़ी मेहनत करते हैं, प्रभावशाली कौशल विकसित करते हैं, और भर्ती प्रक्रिया में लगातार भेदभाव का सामना करते हैं। अकेले कड़ी मेहनत करने से विकलांग लोगों के खिलाफ व्यापक भेदभाव को दूर नहीं किया जा सकता।”
कभी-कभी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि विकलांग व्यक्ति क्या करता है या कितनी मेहनत करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि समाज की संकीर्ण विचारधारा हमेशा रुकावट की तरह उनके बीच रहती है।
विकलांगता के बारे में ज़रूरी चीज़ें
इसके साथ ही जब हम विकलांग शब्द का इस्तेमाल करते हैं या विकलांगता के बारे में बात करते हैं तो कुछ चीज़ें हैं जिसके बारे में हमें जानना ज़रूरी है। इस बारे में जैमी शील्ड्स (Jamie Shields) जोकि विविधता और समावेशन को लेकर काम करते हैं, वह बताते हैं….
विकलांगता शब्द का इस्तेमाल करना बुरा नहीं
हमें यह समझने की ज़रूरत है कि विकलांगता बुरा या गलत शब्द नहीं है। “विकलांग व्यक्ति” या पर्सन विद डिसएबिलिटी (Person with Disability) कहना सही है। इसके साथ ही हम हमेशा सामने वाले व्यक्ति से पूछ सकते हैं कि वे अपनी पहचान किस तरह से बताना पसंद करते हैं।
विकलांगता विविध है
विकलांगता का कोई एक रूप नहीं होता, न ही कोई एक अनुभव होता है। यहां तक कि समान विकलांगता वाले दो व्यक्ति भी एक ही तरह से इसका अनुभव नहीं करते हैं।
विकलांगता हमेशा दिखाई नहीं देती
अगर कोई विकलांगता दिखाई नहीं देती तो इसका मतलब यह नहीं है कि कोई कम या ज़्यादा विकलांग है या है ही नहीं। यह समझना ज़रूरी है कि विकलांगता हमेशा दिखाई नहीं देती। इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्हें सहयोग नहीं चाहिए।
अतः, शुरू में हर कोई किसी भी मुद्दे को समझने के बारे में सही नहीं होता तो विषय को शुरू में गलत समझना भी ठीक है। इसके साथ ही हमें यह भी मानना चाहिए कि हम सब अपने जीवन के पड़ाव पर कहीं न कहीं ज़रूर से एब्लिस्ट रहे हैं। अगर आप कुछ गलत कहते हैं या करते हैं तो हमेशा उसे सुधारने व सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
विकलांगता के प्रति सीखने के लिए आप जवाबदेह रहे और इसकी जवाबदेही भी लें। विकलांग लोगों द्वारा बनाई जाने वाली कहानियों, सामग्रियों के बारे में पढ़े। उनके कामों को सोशल मीडिया के ज़रिये फॉलो करें और सीखें की समावेशी वातावरण कैसे बनाया जा सकता है।
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