छतरपुर जिले की सीमा से सटा हुआ है पन्ना टाइगर रिज़र्व क्षेत्र। उसके कर क्षेत्र में बसे हैं ढोडन और पलकोंआ गांव। ये गांव जो सरकार की आंखो से दूर घनघोर जंगलों, जंगली जानवरों व पहाड़ों के बीच केन नदी के किनारे कहीं भीतर में बसे हुए हैं। वहां बसे रहना अब उनके लिए कैदखाना हो गया है। विस्थापन के नाम पर कई सालों से इन गांवो के विकास को रोक दिया गया है। लोग वादों और विकास की आशा के बीच फंसकर रह गये हैं।
विकासशील देश में गांव पीछे छूटे जा रहे हैं। विकास के नाम पर सरकार कई सालों से पन्ना टाइगर रिज़र्व से जुड़े ढोडन और पलकोंआ गांव जोकि जंगलों, नदी, पेड़ व पहाड़ों के भीतर कहीं बसे हुए हैं उन्हें विस्थापित करने की बात कर रही है।
अब यह विस्थापन केन बेतवा परियोजना आने के बाद से एक बार फिर ज़ोर पकड़ रहा है लेकिन अब भी यह साफ़ नहीं है कि लोगों को पूरी तरह विस्थापित करने में कितना समय लगेगा। महीने या फिर साल क्योंकि दशक तो बीत ही चुका है।
खबर लहरिया की रिपोर्टिंग के अनुसार, यहां कुछ लोगों के खातों में मआवजें की रकम आना शुरू हो गई है लेकिन सबके खातों में मुआवज़ा आने में अभी भी काफी लंबा समय है। यह देरी, उनके गांव के विकास और उन्हें आगे बढ़ने से रोकने का सबसे कारण है जो उनके आगे के भविष्य को बाधित कर रही है।
तस्वीर यह है कि विस्थापन के नाम पर कई सालों से इन गांवो के विकास को रोक दिया गया है। लोग वादों और विकास की आशा के बीच फंसकर रह गये हैं।
यही बातें अब फिर से लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टियों के घोषणापत्रों में विकास के थप्पे के साथ अलापी जा रही हैं। “वोट दीजिये, विकास होगा” पर हमारा सवाल है कि पहले आप इन गांवो में अपने कदम तो रखिये। वे गांव जो जंगलों के बीच बिना किसी मूलभूत सुविधाओं के बसे हुए हैं। वे गांव जिनकी बढ़ोतरी के दावे दस्तावेज़ों और चुनाव पत्रों में किये गए हैं। वे गांव जहां विकास करने के नाम पर उन्हें विकास से दूर कर दिया गया है।
यह सब हम इस समय लोकसभा चुनाव के दौरान बेहतर तौर पर देख सकते हैं। खबर लहरिया की इस रिपोर्टिंग में हम आपको दिखाएंगे विकास और वादों की तस्वीरें जिनके फ्रेम बनाकर वोट मांगे जा रहे हैं।
गांव अब कैदखाना हो चुका है
छतरपुर जिले की सीमा से सटा हुआ है पन्ना टाइगर रिज़र्व क्षेत्र। उसके कर क्षेत्र में बसे हैं ढोडन और पलकोंआ गांव। ये गांव जो सरकार की आंखो से दूर घनघोर जंगलों, जंगली जानवरों व पहाड़ों के बीच केन नदी के किनारे कहीं भीतर में बसे हुए हैं। वहां बसे रहना अब उनके लिए कैदखाना हो गया है। वह कैदी जो चाह कर भी बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इनकी बस यह गलती है कि जंगल से बाहर अपने आप निकल जाने की सुविधा वह खुद से इकठ्ठा नहीं कर पा रहे हैं। खुद को दिखा नहीं पा रहे क्योंकि जो दिखता है… लोगों के लिए वह तस्वीर उतनी ही होती है।
हर तरह के विकास से पीछे है गांव
ढोडन गांव की रहने वाली सावित्री बताती हैं,”आज़ादी के 75 साल बाद भी यहां के लोग कैदियों की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। किसी भी तरह का विकास नहीं पहुंचा। सड़क, नाली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा व नेटवर्क…… इन सब चीज़ों से कोसों दूर है ये गांव। इस ज़माने में भी जहां इंटरनेट का ज़माना है।”
आगे कहा, “गांव केन नदी के तट के पास बसे होने के बाद भी यहां का जल स्तर ज़मीन से बहुत नीचा है। इसकी वजह से गर्मी में कुएं का पानी सूख जाता है। लोग कई किलोमीटर चलकर नदी का पानी लेकर आते हैं।”
रिपोर्टिंग में हमने पाया कि पन्ना टाइगर रिज़र्व की सूची में यह गांव विस्थापित होने थे। सालों तक गांव के लोग मुआवज़े की आस लगाये बैठे रहे। इसी बीच केन बेतवा लिंक परियोजना भी पारित हो गई।
गांव में नहीं है किसी भी तरह का नेटवर्क
पलकुवां गांव के आंगनबाड़ी में काम करने वाली गीता गुप्ता बताती हैं, इस आधुनिक युग में उनके गांव में मोबाइल नेटवर्क काम ही नहीं करता। गांव के लोगों को मोबाइल से बात करने के लिए ऊंचे स्थान पर या गांव के बाहर पहाड़ के पास जाना पड़ता है, तब जाकर थोड़ा नेटवर्क आता है।
उनका कहना है कि मोबाइल नेटवर्क उनके लिए चुनौती बनी हुई है। अपने काम के दौरान उन्हें कई कागज़ व आंकड़े बनाकर ऑनलाइन भेजना होता है। गांव में नेटवर्क न होने की बात को अधिकारी झूठ समझते हैं।
वह बस यही सोचती हैं कि जितनी जल्दी उन्हें मुआवज़ा मिल जाये, वह नौकरी छोड़ देंगी। ऐसी स्थिति में काम करना भी उनकी मज़बूरी है। नेटवर्क न होने से वह अपना काम नहीं कर पातीं।
इसके साथ ही मोबाइल टावर न होने या लगने को जंगली जानवरों से भी जोड़ा गया। लोगों के अनुसार, यहां गांव में उनकी खेती बेहतर हो जाती है और ताज़ी हवा मिल जाती है।
ऑनलाइन शिक्षा व आर्थिक मज़बूरी
रानी बताती हैं, यहां के बच्चे आगे पढ़ाई भी नहीं कर पातें। शिक्षा भी ऑनलाइन हो गई है लेकिन यहां तक कोई सुविधा ही नहीं है। जिन परिवारों के पास पैसा है वह अपने बच्चों को बाहर बमीठा या छतरपुर, पन्ना भेज देते हैं। आर्थिक रूप से गरीब परिवारों के बच्चे गांव के स्कूल में बस पांचवीं तक ही पढ़ पाते हैं क्योंकि इससे आगे स्कूल नहीं है।
आवाजाही की इज़ाज़त से परेशान लोग
लोग अब विकास का रास्ता देखते-देखते त्रस्त हो गये हैं। उनके गांव इतने पिछड़े हुए हैं कि हर चीज़ की समस्या है। किसी की डिलीवरी हो या किसी की तबियत खराब हो, शाम 6 बजे के बाद जंगल से निकलना मुश्किल हो जाता है। गांव में आने-जाने के लिए वन विभाग द्वारा चेकिंग की जाती है। बाहर जाने के लिए भी इज़ाज़त चाहिए, वो भी आसानी से नहीं मिलती। ऐसे में वह बंधकर रह गए हैं।
पन्ना टाइगर रिज़र्व, वह जगह जो पर्यटन का केंद्र है। वहीं उससे कुछ दूरी पर बसे गांवो के विकास की आवाजाही यहां पूरी तरह से बाधित दिखाई पड़ती है। विकास के नाम पर यहां जो परियोजनाएं लाई गईं, उन पर भी पूरी तरह से काम नहीं किया गया। लोगों को विस्थापन और विकास के बीच मझधार में लाकर छोड़ दिया गया है।
जहां न शिक्षा है और न ही आधुनिक भारत की पहुंच जिसकी आवाज़ें इस चुनाव में विकास के नाम के साथ सुनाई जा रही हैं। शायद, एक बार प्रतिनिधियों को गांव वापस लौटने की ज़रूरत है जहां वे कभी नहीं गये तब शायद उनके प्रचार व घोषणापत्र कुछ नई बात रख पाएंगे जो फिलहाल तो बस इस रिपोर्टिंग के अनुसार हवा प्रतीत हो रही हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गई है।
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’