खबर लहरिया Blog Delhi Riots and Court’s Judgement: पांच साल से जेल में फिर भी नहीं मिली जमानत, ज़मानत याचिकाएं कीं खारिज

Delhi Riots and Court’s Judgement: पांच साल से जेल में फिर भी नहीं मिली जमानत, ज़मानत याचिकाएं कीं खारिज

 

कल यानी 2 सितंबर 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट ने उमर ख़ालिद, शरजील इमाम और नौ अन्य अभियुक्तों की ज़मानत याचिकाएं ख़ारिज कर दी गई हैं। ये याचिकाएं 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़ी थीं।

Symbolic picture of High Court

हाई कोर्ट की सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

आरोप ये है कि दिल्ली दंगे किसी ‘बड़ी साज़िश’ का हिस्सा थे। इस खबर को सही से समझने और जानने के लिए इसके इतिहस पर नजर डालते हैं कि 2020 के दिल्ली दंगा क्या है? कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया? वे लोग कौन हैं? और यूएपीए क्या है? 

दिल्ली दंगा क्या है? क्यों हुआ? क्या मामला 

फ़रवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोग मारे गए थे जिनमें ज़्यादातर मुसलमान थे। इन दंगों से जुड़े कुल 758 मामले पुलिस ने दर्ज किए। इन्हीं में से एक मामले की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है जिसे दंगों की साज़िश से जुड़ा मामला माना जा रहा है।

पुलिस का आरोप है कि दिसंबर 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शन शुरू होने के बाद कुछ छात्रों और एक्टिविस्टों ने दंगे भड़काने की योजना बनाई थी। इस केस में 20 लोगों को अभियुक्त बनाया गया। इनमें से छह को ज़मानत मिल चुकी है। 12 अभी भी जेल में हैं और दो को फ़रार बताया गया है। अभियुक्तों की ज़मानत याचिका निचली अदालत पहले ही खारिज कर चुकी है। इससे पहले उमर ख़ालिद की ज़मानत याचिका दिल्ली हाई कोर्ट भी ठुकरा चुका है। पुलिस ने इस मामले में 58 गवाहों के बयान दर्ज कराए हैं। इन गवाहों का कहना है कि अभियुक्तों ने ही दंगों की साज़िश की थी। फिलहाल उनकी पहचान सुरक्षा कारणों से गुप्त रखी गई है।

दरअसल दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में सीएए के खिलाफ़ शुरू हुए प्रदर्शनों का अंत दंगों की शक़्ल में हुआ।  23 फ़रवरी से 26 फ़रवरी 2020 के बीच हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई। 13 जुलाई को हाईकोर्ट में दायर दिल्ली पुलिस के हलफ़नामे के मुताबिक, मारे गए लोगों में से 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। 

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार एफ़आईआर-59 के आधार पर अब तक 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।  जिनमें से सफ़ूरा ज़रगर, मोहम्मद दानिश, परवेज़ और इलियास को कुछ समय बाद ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। बाकी 10 लोग अब भी न्यायिक हिरासत में हैं। ख़ास बात ये है कि इनमें से ज्यादातर लोगों को शुरूआत में दिल्ली दंगों से जुड़ी अलग-अलग एफ़आईआर में गिरफ़्तार किया गया लेकिन जैसे ही उन मामलों में उन्हें ज़मानत मिली या मिलने की संभावना बनी, इनका नाम एफ़आईआर संख्या 59 में जोड़ दिया गया और इस तरह इन लोगों पर यूएपीए की धाराएं लग गईं। 

Delhi riots photo

दिल्ली दंगे की तस्वीर (फोटो साभार: DW)

कितने लोग हैं गिफ्तार 

2020 के दिल्ली दंगों के पीछे की साजिश में उनकी भूमिका के आरोप में पांच साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं – उन नौ लोगों में शामिल किये गए लोगों के नाम हैं उमर खालिद और इमाम के अलावा, अतहर खान, खालिद सैफी , मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद भी याचिकाकर्ता थे। सभी आरोपियों को 2020 के पहले नौ महीनों में गिरफ्तार किया गया था। इनमें से लगभग लोग स्टूडेंट्स हैं और छात्र नेता थे। 

पुलिस द्वारा दी गई दलीलें 

पुलिस ने अदालत में कहा कि दिल्ली दंगे चार चरणों में हुए और इसकी शुरुआत सीएए विरोध प्रदर्शनों से हुई थी। पुलिस का आरोप है कि इसी समय शरजील इमाम और उमर ख़ालिद ने सांप्रदायिक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाए और छात्रों को भड़काने की कोशिश की। आरोप यह भी है कि दोनों ने चक्का-जाम की योजना बनाई थी जिसका उद्देश्य हिंसा फैलाना और लोगों की हत्या करना था। पुलिस का कहना है कि उमर ख़ालिद कुछ गुप्त बैठकों में शामिल हुए थे जहां उन्होंने अभियुक्तों से हथियार जुटाने की बात कही।

इसके बाद गुलफ़िशा फ़ातिमा और बाकी अभियुक्तों ने प्रदर्शन आयोजित किए। आरोप है कि इन प्रदर्शनों में शामिल लोगों को डंडे, मिर्च पाउडर और पत्थर बाँटे गए। पुलिस का दावा है कि अलग-अलग अभियुक्तों ने प्रदर्शनों और बैठकों में हिस्सा लिया, हथियार इकट्ठा किए, सीसीटीवी कैमरे तोड़े और हथियारों के लिए पैसे भी जुटाए। इन आरोपों को साबित करने के लिए पुलिस ने गवाहों के बयान, शरजील इमाम और उमर ख़ालिद के कुछ भाषण और उनकी व्हाट्सऐप बातचीत को सबूत के रूप में पेश किया।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली दंगों का असली मक़सद भारत को वैश्विक स्तर पर बदनाम करना था। उन्होंने यह भी बताया कि दंगों की तारीख़ उस समय चुनी गई थी, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर आने वाले थे।

अभियुक्तों का बयान 

बीबीसी के रिपोर्ट के अनुसार, अभियुक्तों का कहना है कि वे कई साल से जेल में बंद हैं और अब तक मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है। इसलिए मुक़दमे में देरी को आधार बनाकर उन्हें रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उन फ़ैसलों का हवाला भी दिया जिनमें कहा गया है कि अगर मुक़दमे में ज़्यादा देरी हो रही हो तो अभियुक्त को ज़मानत दी जानी चाहिए। अदालत में अभियुक्तों के वकीलों ने अपना पक्ष रखा। उनकी दलीलों में दो बातें कॉमन थी पहली, मुक़दमे में देरी और दूसरी, कुछ अन्य अभियुक्तों को ज़मानत मिल जाना। इसके साथ ही वकीलों ने पुलिस के सबूतों पर भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि दंगों की तारीख़ उस समय तय की गई थी, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर आने वाले थे।

उमर ख़ालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने कहा कि व्हाट्सऐप ग्रुप में शामिल होना अपराध नहीं है। उनका तर्क था कि ख़ालिद को इन ग्रुप्स में किसी और ने जोड़ा था और उन्होंने इनमें कोई संदेश भी नहीं भेजा। उन्होंने यह भी बताया कि उमर ख़ालिद के पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ और उनके भाषणों में भी आपत्तिजनक बात नहीं थी। वकीलों ने पुलिस के गुप्त गवाहों पर भी सवाल उठाए। त्रिदीप पाइस ने कहा कि अदालत को गवाहों की विश्वसनीयता ज़रूर जांचनी चाहिए। इसी तरह, गुलफ़िशा फ़ातिमा के वकील ने दलील दी कि उन्हें दिल्ली दंगों से जोड़ने के लिए कोई पुख़्ता सबूत नहीं है। उन्होंने सिर्फ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लिया था और गवाहों के बयान भी भरोसेमंद नहीं हैं।

शरजील इमाम के वकील ने कहा कि उन्हें जनवरी 2020 में ही गिरफ़्तार कर लिया गया था, जबकि दंगे फ़रवरी में हुए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाषणों के आधार पर पहले से ही एक केस चल रहा है और उसमें उन्हें ज़मानत मिल चुकी है।

arrest of people

लोगों की गिरफ़्तारी (फोटो साभार: BBC)

कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाएं निचली अदालतों द्वारा की गई है खारिज

दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के दौरान दर्ज की गई एक चर्चित एफआईआर 59/2020 से जुड़े कई कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाएं निचली अदालतों द्वारा खारिज की गई थीं। इसके खिलाफ उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील की लेकिन उन्हें भी निराशा हाथ लगी।

इन कार्यकर्ताओं का जेल में बिताया गया समय कई कानूनी अपीलों और खारिज किए गए अनुरोधों से भरा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इसे न्याय की अनदेखी करार दिया है।

एक और जमानत याचिका खारिज

उसी दिन दिल्ली हाई कोर्ट की एक अलग पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर शामिल थे ने एक अन्य आरोपी तसलीम अहमद की जमानत याचिका भी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि अहमद को 19 जून 2020 को गिरफ्तार किया गया था और उनकी अपील को नामंजूर किया जाता है। इस खबर की सुचना लाइव लॉ द्वारा मिली। 

क्या केवल व्हाट्सएप ग्रुप में होना अपराध है?

एफआईआर 59/2020 दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दर्ज की गई थी और इसमें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA सहित कई गंभीर धाराएं लगाई गई हैं। पुलिस का मामला इस आधार पर खड़ा है कि कई कार्यकर्ता व्हाट्सएप ग्रुप्स में सक्रिय थे जो सीएए विरोध के समय बनाए गए थे।

हालांकि, उमर खालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने कोर्ट में तर्क दिया कि केवल किसी व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा होना बिना कोई भड़काऊ संदेश भेजे, किसी भी तरह से अपराध नहीं कहा जा सकता।

UAPA जैसे सख्त कानून का दुरुपयोग?

खालिद सैफी की वकील रेबेका जॉन ने सवाल उठाया कि क्या महज कुछ सामान्य या अहानिकर संदेशों के आधार पर UAPA जैसा कड़ा कानून लगाना उचित है? उन्होंने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष इन संदेशों से एक कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहा है।

इस केस में शामिल एक अन्य व्यक्ति, इमाम, जिन्हें कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, उन्हें पहले ही वैधानिक जमानत मिल चुकी है।

UAPA कानून क्या है 

UAPA कानून (Unlawful Activities (Prevention) Act) भारत का एक कड़ा कानून है, जिसे आतंकवाद और देश-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया है। यह कानून सरकार को ऐसे संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति देता है जो देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालते हैं। मूल रुप से यूएपीए एक्ट को वर्ष 1967 में लागू किया गया था। इसका हिन्दी में मतलब होता है। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम)

सरकार का रुख: “देश के खिलाफ कुछ किया है तो जेल में रहो”

दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि अगर कोई व्यक्ति देश विरोधी गतिविधियों में शामिल पाया जाता है, तो उसे तब तक जेल में ही रहना चाहिए जब तक वह दोषमुक्त नहीं हो जाता।

दूसरी और जेल में बंद गुलफिशा फातिमा ने द वायर में प्रकाशित लेख में कहा था, ‘इन सबके बावजूद मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत की आम जनता सहज रूप से न तो असहिष्णु है और न ही हिंसक.’

Gulfisha Fatima

गुलफ़िशा फ़ातिमा (फोटो साभार:सोशल मीडिया)

कोर्ट ने जुलाई में अपना फैसला सुरक्षित रखा था 

दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में अभ्युक्तों ने अदालत से जमानत की मांग करते हुए कहा कि वे बिना ट्रायल के पांच साल से जेल में हैं और मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है, जबकि इसी केस में देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को पहले ही जमानत मिल चुकी है, इसलिए समानता के आधार पर उन्हें भी रिहा किया जाये। अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। शरजील इमाम और उमर खालिद सैफी की याचिकाएं 2022 से और उमर खालिद सहित अन्य की याचिकाएं 2024 से लंबित है। 9 जुलाई को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस की ओर से दलील दी कि यह हिंसा एक सोची समझी साजिश थी,जिसका मकसद देश की सम्प्रभुत्ता को नुकसान पहुंचाना। इसके साथ ही ऐसे गंभीर मामलों में ट्रायल में देरी को जमानत का आधार नहीं बनाया जा सकता। 

यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *