दूसरी शादी में भी पत्नी को पति द्वारा भरण पोषण के लिए भत्ता देने की बात दिल्ली उच्च न्यायलय ने कही। यह फैसला न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने मंगलवार 15 जुलाई 2025 को एक फैसले के दौरान दिया। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम भरण-पोषण के मामले में पहली और दूसरी शादी के बीच कोई अंतर नहीं करता।
शादी में यदि महिला शादी को आगे के लिए बरकार नहीं रखना चाहती और अलग होने का फैसला करती है, तो इसके लिए पति द्वारा पत्नी और उनके बच्चों के खर्च के लिए गुजारा भत्ता देने का प्रवधान है। शादी में पत्नियों को भरण पोषण के लिए खर्च यानी भत्ता (maintenance) देने की बात आती है तो अक्सर वाद विवाद होता है और कई सवाल भी उठते हैं। ऐसे ही दिल्ली हाई कोर्ट में पति द्वारा पारिवारिक अदालत में एक याचिका दी थी जिसमें दूसरी शादी में अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
क्या था पूरा मामला
मामला 2024 का है जब एक पति ने फैमली कोर्ट (पारिवारिक अदलात) उच्च न्यायालय में याचिका दी थी, जिसमें उसे गुजारा भत्ता के रूप में पत्नी को 33,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये देने का निर्देश दिया गया था। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अपनी याचिका में पति ने कहा था कि महिला भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है, क्योंकि यह उसकी दूसरी शादी थी। उसकी पत्नी ने खुद उसे (पति) अपनी मर्जी से छोड़ा था। दूसरी शादी के बावजूद पति ने महिला और उसकी पहली शादी से हुए दो बेटों को अपनाया था।
पति ने कहा कमाने में सक्षम तो भत्ता क्यों?
महिला के पति ने अदालत में इस बात को भी रखा कि यदि वह (पत्नी) एक स्वस्थ व्यक्ति है और कमाने में सक्षम है, इसलिए उसे भत्ता पाने की हक़दार नहीं है।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, “कमाने की क्षमता की बात को माना जा सकता है, लेकिन इसके लिए साबित होना चाहिए कि पत्नी कोई अच्छा काम कर रही है या उसे अपना गुज़ारा चलाने लायक अच्छी सैलरी मिल रही हो। इस मामले में ऐसा नहीं है जो पत्नी ने आय का हलफनामे दायर किया है उसमें सिर्फ 12,000 प्रति माह की आय का खुलासा हुआ है और बाकी खर्च कथित तौर पर कर्ज या उधार से पूरा होता है।”
महिला का पक्ष
महिला ने दावा किया था कि उसने दूसरी शादी इस भरोसे और वादों के आधार पर की थी कि, उसे और उसके बच्चों की देखभाल और पिता जैसा प्यार मिलेगा। महिला ने आरोप लगाया कि उसके और उसके बच्चों के प्रति पति का बर्ताव सही नहीं था और साथ ही वह (पति) शारीरिक दुर्व्यवहार करता था जिसकी वजह से महिला को पति को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
पहली या दूसरी शादी के बीच कोई अंतर नहीं
पति की इस बात पर न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने फैसले में कहा, “घरेलू हिंसा अधिनियम, भरण-पोषण के अधिकार के लिए पहली या बाद की शादी के बीच कोई अंतर नहीं करता। एक बार जब याचिकाकर्ता ने अपनी इच्छा से विवाह कर लिया और महिला और उसके बच्चों को स्वीकार कर लिया, तो अब वह भरण-पोषण के अपने दायित्वों का विरोध करने के लिए इसे बचाव के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता।”
महिलाओं की सुरक्षा और जीने को संघर्ष को देखते हुए भरण पोषण के लिए भत्ते की सुविधा है, आज भी समाज में पति से अलग होने पर दूसरी शादी के लिए महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता है। इसके साथ ही कई ताने भी सुनने को मिलते हैं। एक पुरुष की दूसरी शादी हो भी जाए लेकिन महिलाओं की दूसरी शादी के लिए बहुत समय लग जाता है।
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