देश में घटती हरियाली और बढ़ता प्रदूषण वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या है| साथ ही चिंताजनक विषय भी|
हर साल होली में जलाने के लिए हरे पेड़ों का कटान होता है| इससे प्रदूषण बढ़ता है और पर्यावरण प्रभावित होता है| जबकि सनातन धर्म के अनुसार होली में हरे पेड़ों को काटकर रखना नहीं चाहिए| ऐसे में जरूरत है भारतीय संस्कृति के मूल्यों को अपनाकर पर्यावरण बचाने की और प्रदूषण घटाने की| लेकिन बदलते समय के अनुसार लोग इस चीज को नजरअंदाज करके हर साल होली के त्यौहार पर जगह-जगह होली जलाने के लिए महीनों पहले से चौराहों पर होली एकत्रित करने के लिए सूखी लकड़ियों के साथ बड़े पैमाने पर हरे पेड़ों को भी काटा जाता हैं| ताकि बड़ी से बड़ी होली रखी जाए इससे पर्यावरण को नुकसान होता है साथ ही प्रदूषण भी बढ़ता है जबकि वास्तविकता यह है कि भारतीय संस्कृति और शास्त्रों के अनुसार भी होली के लिए हरे पेड़ नहीं काटना चाहिए| मोहनपुरवा गांव के बड़े बुजुर्ग हरिओ और कालिजंर के इतिहासकार अरविन्द बताते हैं कि होली के लिए हरे पेड़ कतई नहीं काटने चाहिए लेकिन इस समय लोग आधुनिकता के माहौल में भारतीय संस्कृति को भूलते जा रहे हैं| जबकि शास्त्रों के मुताबिक होली में गोबर के उपलों का प्रयोग करना चाहिए| होली रखने के लिए कहा जाता है कि प्राचीन काल में गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता था उसके बाद फसलों से बची चीजों जैसे सरसों की लकड़ी धान का पहला आदि का उपयोग किया जाता था और इन्हीं सब चीजों से बड़े धूमधाम से होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाता था| यही कारण था कि पहले सबसे ज्यादा आक्सीजन पेडों से मिलता था और पर्यावरण अच्छा रहता था| क्योकि हर जगह पेंड़ पौधे होते थे और पेंडो को पूज्यनिय बताया जाता था| साथ ही भारतीय संस्कृति में हमेशा प्रकृति कि रक्षा की जाती थी और पेंडों को पंच पल्लव की उपाधि दी जाती थी| लेकिन इस समय हर साल होली के त्यौहार में लाखों की संख्या में पेड़ों का कटान होता है जो हरे पेड़ होते हैं जिससे पर्यावरण में बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और प्रदूषण फैलता है यही कारण है कि लोग आज के दौर में बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं क्योंकि दिन प्रतिदिन ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है और पेड़ों का कटान बराबर होता ही जा रहा है| जिससे प्रदुषण तेजी से बढ रहा है| जबकि होली में हरे पेड़ों को काटना पर्यावरण धर्म और शास्त्रों में पूरी तरह से गलत बताया जाता है|