जिस दिन हम स्वास्थ्य और टेक्नोलॉजी को लेकर बड़े पैनल में उस स्वास्थ्य और टेक्नोलॉजी समाधानों के बारे में बात कर रहे थे जो समाज की भलाई के लिए जरूरी हैं, उसी दिन जब जमीनी हकीकत सामने आती है, झांसी मेडिकल कॉलेज की दर्दनाक घटना, जो उन शब्दों और योजनाओं की खोखलीता खुलकर सामने लाती है,तो पैरों तले से जमीन ही खिसक गई। जहां एक तरफ माता-पिता अपने बच्चों के लिए मदद की पुकार करते हुए आग की लपटों में घिरते हैं छाती पीट-पीट कर चीखते हैं। उनकी ये पुकार यह स्पष्ट करती है कि कई बार हम टेक्नोलॉजी और प्रौद्योगिकी के दावे करते हैं, लेकिन असल में लोगों की जान बचाने के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है।
देहरी पर दवाई की डिजिटल सच्चाई
यह घटना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि सिर्फ नई योजनाओं, तकनीकी उपायों और डिजिटल समाधानों से काम नहीं चल सकता। बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं, सुरक्षा उपाय और अस्पतालों में आपातकालीन इंतजाम, फायर सुरक्षा व्यवस्था, कर्मचारियों की जिम्मेदारी और संसाधनों की उपलब्धता ऐसी बुनियादी बातें हैं जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।आपकी बात सही है कि हमें ये सवाल खुद से पूछने की जरूरत है कि जब हम स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने की बातें कर रहे हैं, तो क्या हम उन स्थानों पर ज़रूरी बुनियादी उपायों और सुरक्षा इंतजामों को सुनिश्चित कर पा रहे हैं, जहां पर ये सेवाएं दी जाती हैं? झांसी जैसी घटनाएं हमें यह समझने का अवसर देती हैं कि स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के साथ-साथ संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और स्थिरता भी जरूरी है। इसलिए, सिर्फ चिकित्सा सेवा या टेक्नोलॉजी के विकास की बात करने से कुछ नहीं होगा। हम जब तक जमीन पर मौजूद मूलभूत समस्याओं को पहचानकर उन्हें सुलझाने का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक ये घटनाएं होती रहेंगी।
उत्तर प्रदेश के झांसी में 15 नवंबर की रात को महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन देखभाल इकाई (NICU) में लगी भीषण आग ने 10 मासूम बच्चों की जान ले ली, जबकि कई अन्य घायल हो गए हैं। यह घटना उस अस्पताल के सुरक्षा इंतजामों पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है, खासकर फायर एक्सटिंग्विशर के एक्सपायर होने और आग बुझाने के पुख्ता इंतजामों की कमी को लेकर। शुरुआती जांच में शॉर्ट सर्किट को आग लगने का कारण बताया गया है, जबकि कुछ आरोप यह भी लगाए जा रहे हैं कि अस्पताल के स्टाफ की लापरवाही और अनट्रेंड कर्मचारियों की नियुक्ति ने इस घटना को और बढ़ा दिया। इस दुखद हादसे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार और विपक्ष दोनों ही अस्पताल की लापरवाही को लेकर कठोर कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मृतक बच्चों के परिवारों को 5 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है। इस हादसे पर विपक्षी नेता जैसे अखिलेश यादव, मायावती और राहुल गांधी ने भी स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों और प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाए हैं और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। |
स्वास्थ्य सुविधाओं और सुरक्षा मानकों की कमी
इस त्रासदी ने भारतीय अस्पतालों में सुरक्षा मानकों और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जबकि कहा ये जा रहा है कि भारत में स्वास्थ्य सेवा का स्तर लगातार सुधर रहा है, लेकिन कई सरकारी अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में सुरक्षा उपायों की कमी अब भी देखी जाती है। NICU जैसे संवेदनशील स्थानों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जहां शिशुओं की देखभाल के लिए अत्यधिक नाजुक और विशेष उपकरणों का इस्तेमाल होता है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में सरकारी और निजी अस्पतालों में आग की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिली है। 2022-2023 में, स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। अकेले उत्तर प्रदेश राज्य में 2022 में 5 से अधिक बड़ी आग की घटनाएं हुई थीं, जिनमें मरीजों और कर्मचारियों की जान भी गई थी।
जिम्मेदारी और सुधार की आवश्यकता
यह घटना न केवल झांसी या उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक शोक का कारण बनी है। इस हादसे ने यह साबित किया है कि अस्पतालों में सुरक्षा के मानकों को पहले से कहीं ज्यादा सख्त और प्रभावी बनाने की जरूरत है। सरकारी और निजी दोनों तरह के अस्पतालों में सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, और चिकित्सा उपकरणों की मान्यता को सुधारने की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की घटनाओं को भविष्य में रोका जा सके।
इसके अलावा, स्वास्थ्य मंत्री और राज्य सरकार को भी इस हादसे के कारणों की गहन जांच कराने के साथ-साथ ऐसी घटनाओं से बचने के लिए उपायों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र, आपातकालीन मार्ग, और प्रशिक्षित कर्मचारियों की मौजूदगी सुनिश्चित हो।
नवजात शिशु की देखभाल में सुरक्षा मानकों की कमी
भारत में NICU और अन्य विशेष देखभाल इकाइयों के लिए सुरक्षा मानकों के बारे में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि करीब 60% सरकारी अस्पतालों में शिशु देखभाल इकाइयों में सुरक्षा और अग्नि सुरक्षा उपायों की कमी है।
भारत में नवजात मृत्यु दर
भारत में नवजात मृत्यु दर (Neonatal Mortality Rate) का आंकड़ा 2020 में लगभग 23 प्रति 1000 जीवित जन्म था। इसका मतलब है कि हर 1000 बच्चों में 23 नवजात बच्चों की मौत जन्म के पहले महीने के भीतर होती है। इस घटना ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है, क्योंकि अब यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या हम उन बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त इंतजाम कर पा रहे हैं जिनकी जन्म के समय सबसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है।
अग्निशमन सुरक्षा की कमी
भारत में अग्निशमन सुरक्षा के मामले में कई अस्पतालों को बड़े सुधार की जरूरत है। 2021 में भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) द्वारा जारी किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के 30% अस्पतालों में अग्निशमन सुरक्षा उपकरण या सुरक्षा योजनाएं नहीं थीं।
हमें ये सवाल खुद से पूछने की जरूरत है कि जब हम स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने की बातें कर रहे हैं, तो क्या हम उन स्थानों पर ज़रूरी बुनियादी उपायों और सुरक्षा इंतजामों को सुनिश्चित कर पा रहे हैं, जहां पर ये सेवाएं दी जाती हैं? झांसी जैसी घटनाएं हमें यह समझने का अवसर देती हैं कि स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के साथ-साथ संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और स्थिरता भी जरूरी है।
हमने अपनी कबरेज के दौरान कई जगहों पर स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति देखी है,जैसे उप-स्वास्थ्य केंद्रों में ताले लगे होना या डॉक्टरों का नियमित रूप से उपस्थित न होना, दवाइयां और जांचें बाहर से लिखना। यह सब स्वास्थ्य सेवाओं की खामियां और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को दर्शाता है। इसके अलावा, अस्पतालों में बिजली की समस्या और जैसे कोविड-19 के दौरान वैक्सीनेशन की चुनौतियां, इन सभी मुद्दों का समाधान करने के लिए केवल योजनाओं और डिजिटलीकरण पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना, चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की सही तैनाती, और गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बेहतर बनाना भी बेहद जरूरी है।
इसलिए, सिर्फ चिकित्सा सेवा या टेक्नोलॉजी के विकास की बात करने से कुछ नहीं होगा। हम जब तक जमीन पर मौजूद मूलभूत समस्याओं को पहचानकर उन्हें सुलझाने का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक ये घटनाएं होती रहेंगी।
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