किसानों ने बताया कि ठंड और कोहरे से इस समय आलू,सरसों व अरहर इत्यादि की फसलें सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रही हैं। इन फसलों में फफूंद जनक रोग लग जाता है जिसकी वजह से पौध पर आये फूल सूख जाते हैं और फसल खराब हो जाती है।
शीतलहर ने पूरे उत्तर भारत को अपनी जकड़ में कर लिया है। ऐसे में सिर्फ लोग ही नहीं बल्कि फसलें भी कड़ाके की ठंड व कोहरे की वजह से प्रभावित हो रही हैं। खबर लहरिया ने यूपी के अयोध्या जिले के किसानों से ठंड से उनकी फसलों के होते नुकसान के बारे में बातचीत की।
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अत्याधिक ठंड का फसलों पर दिख रहा असर
किसान घने कोहरे व दिन प्रतिदिन बढ़ती ठंड को देखते हुए चिंतित हैं। कोहरे व ठंड से खेती पर असर हो रहा है। बीकापुर क्षेत्र के किसान संतोष कुमार वर्मा ने बताया, उनके खेतों में इस समय सरसों, आलू, चना, धनिया, राजमा, तिलहन इत्यादि की फसलें लगी हुई हैं। इन सारी फसलों को कोहरे व अत्याधिक ठंड की वजह से नुकसान पहुंचेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इन फसलों में ज़्यादा नमी सहने की क्षमता नहीं होती।
कुछ समय पहले हुई हलकी बारिश की वजह से मिट्टी में क्षमता से ज़्यादा नमी देखी गयी जिसका प्रभाव फसलों पर भी देखा जा रहा है।
फसलों में हो रहा फफूंद जनक रोग
किसानों ने बताया कि ठंड और कोहरे से इस समय आलू,सरसों व अरहर इत्यादि की फसलें सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रही हैं। इन फसलों में फफूंद जनक रोग लग जाता है जिसकी वजह से पौध पर आये फूल सूख जाते हैं और फसल खराब हो जाती है।
फफूंद जनक रोग क्या है?
दैनिक भास्कर की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, फफूंद जनक रोग से पौधे सूखने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर, फफूंदी रोग आने पर सरसों के पौधे पर लगे पत्तों के निचले हिस्सा में पीले धब्बे आते हैं। धीरे-धीरे यह धब्बे बढ़ते जाते है और पत्ते में छेद होने लगते है। इससे पत्तियां नष्ट होती है। उसके बाद पौधे को पोषण नहीं मिलने से पौधा सूख जाता है।
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फसलों के बचाव हेतु कीटनाशक का करें इस्तेमाल – कृषि प्रभारी अधिकारी
ठंड का फसलों पर पड़ते प्रभाव को देखते हुए तारुन ब्लॉक के कृषि प्रभारी अधिकारी मनमोहन कुमार ने खबर लहरिया को बताया, इस मौसम में सरसों की फसलों में लाली का प्रकोप हो जाता है इसके लिए कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा अरहर में फली छेदक और फूल छेदक कीड़ा लग जाता है जो काफी नुकसानदायक साबित हो जाता है। इस मौसम में आलू की फसल को भी खतरा रहता है।
उनके मुताबिक कोहरा और शीतलहर में आलू में झुलसा रोग का प्रकोप हो जाता है या फफूंदी जनक रोग, इससे आलू की फसल को क्षति हो सकती है। वहीं इस मौसम में चने की फसल को नुकसान पहुंचने की संभावना होती है। कहीं-कहीं पौधों में कीड़े लग जाते हैं जिससे उनके पत्ते धीरे-धीरे पीले पड़ जाते हैं और सूख जाते हैं। बचाव के लिए कीटनाशक दवाओं का छिड़काव ज़रूरी है लेकिन दवा भी धूप निकलने के बाद ही छिड़की जा सकती है।
आलू में लगने वाला झुलसा रोग क्या है?
गाँव कनेक्शन की रिपोर्ट के अनुसार, आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नाम के कवक के कारण होता है। इसका लक्षण बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद नज़र आने लगता है। पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार और रंग में भी वृद्धि होती है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां सिकुड़ कर गिरने लगती हैं। तनों पर भी भूरे और काले धब्बे उभरने लगते हैं। आलू का आकार छोटा ही रह जाता है।
फली व फूल छेदक कीड़ा क्या है?
फल व फली छेदक (हेलिकोवरपा आर्मीजेरा) एक बहुत ही हानिकारक कीट होता है जोकि हर फसल पर हमला कर उन्हें नुकसान पहुंचाता है। फल व फली छेदक कीट का प्रकोप मुख्य रूप से चना, मटर, फ्रासबीन, भिन्डी, टमाटर व गोभी में अधिक देखा गया है।
जानकारी के अनुसार, फल व फली छेदक कीट का पंतगा पीले भूरे रंग का और अगले पंख के ऊपरी सतह पर अनियमित काले रंग के धब्बे एवं पंख के किनारों पर धूसर रंग की धारियां होती हैं। इस कीट की पूर्णतया विकसित सुण्डी 35 से 40 मिलीमीटर लम्बी हरे रंग की एवं दोनों तरफ सफेद रंग की एक-एक पट्टी और शरीर पर हल्के-हल्के बाल पाए जाते हैं।
फल व फली छेदक कीट का प्रकोप फसल की शुरूआती अवस्था से ही शुरू हो जाता है। यह कीट पहले पौधे के नरम भागों को और बाद में फल एवं बीज बनने पर उन्हें खाती है। सुण्डियां अपना सिर फल या फली के अन्दर घुसा देती है जबकि शरीर का बाकी भाग फली के बाहर बना रहता है।
इस खबर की रिपोर्टिंग कुमकुम यादव द्वारा की गयी है।
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