बांदा उत्तर प्रदेश| एक तरफ जहां सरकार गौरक्षा के नाम पर कडो़रो रुपए गौशाला भुषा चारा और पानी के लिए खर्च करती है| वहीं दूसरी तरफ बांदा जिले के नरैनी ब्लाक अंतर्गत आने वाले नौगवां ग्राम पंचायत के मजरा गहबरा गांव में बने गौशाला में अन्ना जानवरों के लिए न तो खाने के लिए चारा है और न ही भूषा है,और तो और गायों को पानी पीने की भी कोई व्यवस्था नहीं है| सैकड़ों गाय 4 दिन से भूखों मर रही है.लडौरी मतलब (चरही) में भुंडा लगा है. गाय भूख के मारे इधर-उधर झपट रही हैं| जमीन में लगा सूखा चारा जो मुंह तक नहीं आ रहा उसको नोच-नोच कर खा रही हैं, तो आखिरकार इन बेजुबान गायों के भूषा चारा के नाम पर हर साल आने वाला बजट जाता कहां है|
दुविधा में किसान कैसे छोडें गाय
नरैनी ब्लाक के नौगवां गांव के रहने वाले किसान राजू और कमलेश बताते हैं, कि अन्ना जानवरों के कारण गांव में किसानों की फसलें चौपट हो रही हैं| दिन-रात किसान खून पसीना एक करके खेतों में मेहनत करता है. जुताई बोवाई,सींच और खाद बीज में पचासों हजार रुपये खर्च करता है| इसके बाद हथेली में जान लेकर रात रात भर खेतों में फसल की रखवाली करता है| इसके बावजूद भी वह अन्ना जानवरों के कारण पूरी फसल अपने खलिहान और घर तक नहीं ले जा पाता है|
इन सब समस्याओं से परेशान होकर किसानों ने कई बार गांव में गौशाला बनाने की मांग की है| बड़ी मशक्कत के बाद नौगवां गांव के मजरा गहबरा में लाखों रुपए खर्च करके पिछले साल शासन की तरफ से तार बाडी़ लगा कर गौशाला बनाया गया है| जिसमें लगभग 300 गाय बंद हो सके| जब गौशाल बना तो हम किसानों को यह उम्मीदें जगी कि हमारे गांव में अब अन्ना जानवरों की समस्या काफी हद तक खत्म हो जाएगी|
सूकून से रहेगें| गौशाला में उनके खाने पीने के लिए भूषा चारा की व्यवस्था होगी, तो हमारी फसल बच जाएगी और वो बेजुबान जानवर भी नहीं भटकें गें| लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते गौशाला में बाद अन्ना जानवरों को न खाने के लिए गौशाला में भूषा चार है न पीने के लिए पानी की व्यवस्था कराई जा रही है और न ही उनके देखरेख की कोई व्यवस्था है| जिससे जानवर भुंख से बेहाल हैं|
गहबरा के किसान देव सिंह बताते हैं कि उनकी ही जमीन में गौशाला बनया गया| लेकिन अव्यवस्था के अभाव में गाय 4 दिन से भूखी मर रही हैं| लोग कहते हैं कि गाय हमारी माता होती है और उसकी रक्षा करना हम हिंदुओं का धर्म है| लेकिन किसान क्या करें अगर वह गाय की रक्षा के बारे में सोचता है,तो अपना पेट दाबता है| अगर अपना पेट भरने की सोचता है, तो गाय मर रही है| गांव के ही दयाराम रैवकार कहते है कि सरकार ने तो गौशाला बनवा दिया| इस गौशाल में बजट की लागत भी लगभग डेढ लाख रुपये खर्च बताया जा रही है| लेकिन जिले स्तर में प्रशासन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. जिसके चलते सड़कों से लेकर गौशालाओं तक गायों का बहुत ही बुरा हाल है| कहीं सड़कों एक्सीडेंट से मरती हैं, तो कहीं भूख मिटाने के चक्कर में खेतों में लगे ब्लेट वाले तारों में फंस कर घायल होती हैं और खदेड़ी जाती हैं|
अगर सरकार गायों बंद करने के लिए गौशाला बनवा रही है और प्रति गाय 30 रुपये उनके खाने को दे रही है, तो खाने के लिए गौशाला में भूषा क्यों नहीं दिया जा रहा है| जबकि और जगह जो गौशाला बने हैं वहां चारा, भूषा,पानी और देखरेख के लिए चरवहों की सुविधा है| लेकिन यहां बंद गाय भूखों मर रही है| इस लिए वह बहुत आक्रोशित हैं| वह चाहते है कि उन जानवरों की व्यवस्था कराई जाए| यह सब चीजें लोगों ने तो बताइए लेकिन मैंने वहां खुद में जाकर देखा कि जानवर किस तरह से इधर-उधर पूरे गौशाला में घूम रहे हैं, न तो वहां पीने के लिए पानी की व्यवस्था है और न ही उनकी लडौ़रियों मतलब(चरही)में भूषा का 1 तिनका दिख रहा है|
जब मैंने उन लडौ़रियों में नजदीक से जाकर झांका तो उनमें भुंडा लगा हुआ था और खाली पड़ी हुई थी| ऐसा लग रहा था मानो महीनों से यहां पर भुषा नहीं डाला गया है, तो भला ऐसे में वह गाय मरेगी या जीवित रहेंगी| किसानों का यह भी कहना है कि इस तरह की स्थिति में बंद गायों की हत्या लगेगी| उन्होने गायों की व्यवस्था के लिए प्रधान से लेकर वीडियो तक सब जगह मांग की है कि चारा पानी की व्यवस्था कराई जाए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है| कुछ दिन पहले उन्होंने मीडिया में भी इस खबर को छपवाया था. जिसके चलते वहां पास में लगे हैंडपंप से कुछ पानी की व्यवस्था कराई गई है और 30 अक्टूबर को पानी का ट्रैंकर भेजा गया है|
चार दिन की भुखी गाय सरकार पर खड़े कर रहीं सवाल
अब सवाल यह उठता है कि अगर 4 दिन से उस गौशाला में भूखी गाय बंद हैं, तो किसकी जिम्मेदारी है| क्या सिर्फ बजट भेजने से ही गौशालाओं की व्यवस्था हो जाएगी या गौशाला से संबंधित अधिकारी और कर्मचारी भी इस पर कोई ठोस कदम उठाएंगे| अपनी जिम्मेदारियों को निभाएंगे| या ऐसे ही सरकारी धन का बंदरबांट गौशाला गायों के नाम पर होता रहेगा और सरकार को वाहवाही मिलती रहेगी| क्योंकि ग्राम पंचायत में गौशाला की जिम्मेदारी तो प्रधान और सचिव की ही है तो फिर वह क्यों ध्यान नहीं दे रहे हैं|