एपीडबल्यूएलडी दुनिया भर के क्षेत्रों में फैली कोविड-19 महामारी और इससे जुड़े अन्य संकट से जूझ रहे लोगों के साथ मजबूती से खड़ा है। ऐसे समय में महिलाएं जो अलग-अलग स्तर पर संकट, चोट और हिंसा सहन करती हैं, उस भेदभाव को खत्म करने का प्रयास कर रहा है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर परस्पर आर्थिक कारणों से जुड़े सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर अधिक असर पड़ा है इस बात के स्पष्ट संकेत हैं और इसने सबसे ज्यादा हाशिये के समुदाय को संकट में डाला है। हमने देखा है कि इस समय में सबसे बड़ी कमी सही सूचना पहुंचाने, सरकार द्वारा पारदर्शिता के साथ राज्यों के दायित्व सुनिश्चित करने, लोगों तक मौलिक आवश्यक की सामग्री पहुंचने में नाकाम रहने और
हर समय डिजिटल निगरानी रखने के साथ-साथ सेना और पुलिस द्वारा कर्फ्यू और संपूर्ण लॉकडाउन करने का काम किया जा रहा है। आम सुचारू जीवन पर प्रतिबंध लगाने के बाद स्कूलों में सम्हाल और देखभाल करने वालों की कमी के कारण उन्हें भी बंद कर दिया गया। हमने इस बात को भी देखा कि समाजिक स्तर पर संपूर्ण विश्व में पित्रसत्तात्मक समाज में महिलाओं को घरेलू कार्यों जिसके बदले उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता, में लगा दिया गया है, इससे घरेलू हिंसा को बढ़ावा मिला है। इस तरह की स्थिति में नौकरी छूटने से रोजी-रोटी की परेशानी झेलनी पड़ रही है ख़ास तौर पर उन महिलाओं को जो घर चलाने के लिए क़र्ज़ उठाती हैं वे जिन्हें कॉन्ट्रैक्ट-बेस पर या अस्थिर (कैजुअल) नौकरी पर रखा जात है, उनके लिए भुखमरी के हालात बन गए हैं। इस महामारी के परिणामस्वरूप उपजे संकट से स्पष्ट साक्ष्य मिले हैं कि वर्तमान नवउदार पूंजीवादी सिस्टम लोगों की मौलिक ज़रूरत तक पूरी करने में यहाँ तक कि उनके स्वास्थ्य की देखभाल और उन्हें सार्वभौमिक सामाजिक संरक्षण तक देने में असफल रहा है।
प्रारंभिक आंकलन के आधार पर इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) के अनुसार कोविड-19 के कारण पूरे विश्व में लगभग 25 मिलियन नौकरियों के जाने की आशंका है। नौकरी ना होने के कारण और सामाजिक सुरक्षा के आभाव में ( आर्थिक स्तर पर असुरक्षित श्रमिक) गरीबी में काम करने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। एशिया और प्रशांत क्षेत्र की अधिकतर महिला कामगार जो अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करती हैं जैसे खेत-खलिहान में मजदूरी, घरेलू कामगार, घर से काम करने वाली महिलाएं, स्ट्रीट वेंडर्स आदि जिन्हें सामाजिक स्तर पर आर्थिक सुरक्षा नहीं मिली हुई है। महिलाएं अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या में लगभग आधी आबादी हैं इसके बावजूद प्रवासी महिला कामगारों के लिए घरेलू काम का विकल्प ही बचता है। महिलाएं 70 प्रतिशत तक स्वास्थ्य और समाजिक क्षेत्रों में काम करती हैं, वे कोविड़-19 महामारी के समय सबसे ज्यादा जोखिम में काम कर रही हैं। संकट के इस समय में (वर्ड बैंक और इंटरनेशनल मोनेटरी फंड़) ‘विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक पूंजी‘ ने नव उदारवादी सोच के तहत गरीब देशों के लिए ‘आपातकालीन ऋण‘ को संकट से उबारने के उपाय के तौर पर पेश किया है जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएं सबसे खस्ता हाल में हैं और बहुत से लोग इसकी चपेट में आ गए हैं। वास्तव में इस तरह के सहयोग कार्यक्रमों की संरचना जो स्वास्थ्य संबंधी और अन्य आवश्यक सेवाएं जैसे शिक्षा, पानी यह सभी ‘लाभ कमाने‘ और बाद में निजीकरण के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाती हैं: यक़ीनन बहुत सी महिलाएं और हाशिए के समुदाय इस खाई को पाटने में असफल रहे हैं।
कुछ सरकारें जिनमें यूएस और जापान भी शामिल हैं वे कार्पोरेट के राहत पैकेजों के द्वारा निगमों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती हैं। कुछ मामलों में यह मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण और असंगत तरीक़े से काम करता है। इस मामले में ‘श्रमिक विभाग, हांग कांग‘ ने एक प्रवासी कामगार को अपने ‘आराम के समय‘ में भी जिस परिवार ने काम पर रखा था उनके साथ रहने का यह कहते हुए निर्देश दिया कि इससे वायरस के समुदाय में फैलने का ख़तरा कम होगा: या सामाजिक सुरक्षा के बारे में सोचे बिना ‘लॉकडाऊन‘ के प्रभाव के कार्यान्वयन को शरणार्थियों, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति, शहरी गरीब समुदाय के लोगों को या अत्यंत सीमांत क्षेत्र के लोगों के लिए ‘भोजन नहीं है‘ का विकल्प ही बचता है। राजनीती से प्रेरित प्रतिबंधों को आगे बढ़ाते हुए जो देश इस महामारी की चपेट में आ गए हैं वहाँ यह नरसंहार करने के समान है। इस संकट के समय में हम ऐसे निरंकुश राज्य जहाँ मीडिया सेंसरशिप लागू हो और जहाँ अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कर्त्तव्यों का उल्लंघन हो रहा हो हम उनकी निंदा करते हैं। राष्ट्रीय बजट तैयार करने में महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिए खासतौर पर इस संकट के समय में जब कोविड़-19 को ले कर तत्काल राजकोषीय नीतियाँ बधाई जा रही हैं। असमानताओं को कम करने में और स्वास्थ्य एवं मानवाधिकारों को फिर से विभाजित करने की दिशा में काम करना चाहिए। इस तरह के ढ़ांचागत परिवर्तन के लिए निसंदेह महत्वपूर्ण काम करने होंगे। ऐसी सूची तैयार करने के लिए उधार में डूबे पैसे को वापस लाने या उधार देने के तरीके को खत्म करना होगा। अवैध वित्तिय प्रवाह को रोकने के लिए काम करने और बहुत कम टैक्स देने वाले लोगों को चिन्हित करना, कारपोरेशन के लिए कर अवकाश और जिन इंडस्ट्रीज से ग्लोबल क्षति हो रही है उन्हें बंद करने या उन पर ग्लोबल टैक्स लगाए जाने चाहिए।
अब कार्पोरेट को प्राथमिकता देना रोकना होगा, मनुष्य और प्रर्यावरण अधिकारों की अनदेखी करके कार्पोरेट्स को खैरात में बाँटे गए पैकेज वापस ले कर कोविड़-19 को खत्म करने के उपायों और सामाजिक सुरक्षा के सार्वजनिक कार्यों में लगाना होगा। इसके साथ ही साथ इस धन को निजीकरण से निकाल कर इसका राष्ट्रीयकरण करना होगा एवं उसे ज़रूरी लोककल्याणकारी सेवाओं में लगाना होगा। वर्तमान समय में ग्लोबल साऊथ को असमान ‘वैश्विक धन‘ से जोड़ने और उसे इस्तेमाल करने के लिए नवउदारवादी नीतियाँ थोपी गईं। वर्तमान संकट लंबे समय से चल रहे महिलावादी और आम लोगों का डेवलपमेंट जस्टिस के मूवमेंट को याद दिला रहा है और यह एक मौक़ा है जो हमें देशों के बीच की दूरियों, अमीर और गरीब के बीच तथा महिला एवं पुरूष के बीच की असमानताओं को याद दिलवा रहा है यह धन को निकलवाने, सत्ता और साधन की असमानता याद दिलवा रहा है। यह एक बहुत अच्छा मौका हमें मिला है इस समय को हमें पकड़ लेना चाहिए। यह समय हमें मनुष्य के अधिकारों, मौलिक स्वतंत्रता, ख़ासतौर पर सामाजिक अधिकारों और वैश्विक अधिकारों में जनस्वास्थ्य सुविधाओं, वैश्विक जनसुरक्षा जैसे बेरोजगारी भत्ते, सामाजिक रिहाईशी व्यवस्था और बेसिक आमदनी के अधिकार पर काम करने का बेहतरीन मौक़ा है। धरती पर इतने साधन हैं कि उससे सभी के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध हो सकती हैं, इसके लिए सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है। कोविड-19 संकट को हराने में वैश्विक स्तर पर एकजुट अभियान की ज़रूरत है। इसके लिए सभी के एकजुट, समान कार्ययोजना पर ईमानदार काम की ज़रूरत है। हमें एक बार फिर कार्ययोजना बना कर काम करना होगा जिसमें महिलावादी विचार हों, जिनके सिद्धांत मानवाधिकार पर आधारित हों, जो एतिहासिक जिम्मेदारी उठाने में सक्षम हों, वे जवाबदेह हों और इस पर एकजुटता के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। महिलावादी विचारों और आम लोगों के लिए काम करने वाले लोग इस आंदोलन के केंद्र में हों और वही लोग इसका नेतृत्व करें।
ये बयान APWLD ने प्रकाशित किया है। APWLD एशिया में नारीवादी संस्थाओं और कार्यकर्ताओं की एकजुट संस्था है, जो खास महिला अधिकार पर काम करती है।
कोविड-19 महामारी के संदर्भ में सरकारों की प्रक्रियाओं पर ने ये बयान प्रकाशित किया है, किन किन तरह से ये प्रक्रियाएं हाशिये पर खड़े समुदायों के लिए लाभदायक नहीं है। उनका मानना है की स्वास्थ्य के मुद्दे नारीवादी मुद्दे हैं, और इसपर हमें एकजुट होकर आवाज़ उठानी चाहिए।
इस बयान का अंग्रेजी अनुवाद, यहां पढ़ें। ख़बर लहरिया की कोरोना कवरेज के लिए, यहां क्लिक करें।
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