नमस्कार दोस्तों, मैं हूं मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीती, रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। जब से कोरोना है तब से अधिकारियों की बल्ले बल्ले है। अधिकारियों की चौखट में आये फ़रियादी मायूश होकर बिना मिले वापस हो जाते हैं।
अधिकारी अपने विभाग के बाहर शिकायत पेटिका बना रखे हैं। उसीमें दरखास डलवा ली जाती हैं। जब अधिकारी तहसील दिवस में आई दरखासों पर कार्यवाही नहीं करते थे तो भला अब कैसे हो पाएगी कार्यवाही? क्यों जाएंगे अधिकारी घटनास्थल? उनको कोरोना न हो जाए। ये बातें एक विकलांग फरियादी डीएम कार्यालय के बाहर चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था। आइये दो फरियादियों की समस्याएं बताती हूं उदाहरण के तौर पर
गस्त 13 की सुबह लगभग ग्यारह बजे एक महिला शायद अपने विकलांग पति के साथ डीएम कार्यालय की तरफ हाथ करके बात कर रही थी। बार बार कार्यालय के बाहर जाए गार्ड और पुलिस से कुछ बात हो फिर वापस आ जाये। लगभग आधे घण्टे के बाद मैं उससे पूंछ पड़ी। आंखों में आंसू भरते हुए बोलने लगी। देखो दीदी ये पुलिस वाले डीएम के पास नहीं जाने दे रहे। बोलते हैं अभी न मिलेंगे कोरोना है अभी। बताइए हम उनसे मिलकर अपनी बात न कह पाए तो कार्यवाही कैसे होगी। कम से कम छह सात बार आ चुकी हूं हर बार मेरी दरखास शिकायत पेटिका में डलवा लेते हैं पर पता नहीं उसका क्या करते हैं। डीएम के हाथ लगती है या नहीं। सारी बातें कहने के बाद चुप हो गई लेकिन तेजी तेजी रोने लगी और बताई अपनी पूरी दास्तान। कहने लगी वह अपने पति और बच्चोन को लेकर कांशीराम कालोनी के बाहर पन्नी डालकर बच्चों के साथ किसी तरह गुजर बसर कर रही थी। लगातार दो दिन बारिश होने के कारण पन्नी फट गई और बारिश के पानी से सारा सामान भीग गया। आटा तक नहीं बचा कि बच्चों को रोटी बनाकर खिला दें। कालोनी में कई कमरे खाली पड़े हैं अगर वह उनको मिल जाएं तो वह भी गुजर बसर करने लगें। इसके लिए लगभग एक महीने से वह दोनों डीएम के पास करीब सात बार आ चुकी है। हर बार उनको यही कहा जाता है डूडा विभाग जाओ और वहां से डीएम के पास। हर बार उनकी दरखास शिकायत पेटिका में डलवा ली जाती है। मिलने के नाम पर बोलते हैं कोरोना है अभी मिल नहीं सकते। हम घर रोज घुट-घुट कर जी रहे हैं।
इसीतरह से एक उदाहरण और बताऊं कि बांदा से लगभग तीस किलोमीटर दूर गांव नगनेधी से एक महिला अपने पति के साथ 14 अगस्त को तीसरी बार डीएम के पास आई थी। उसने बताया कि उसको उसके ही खेत तक जाने के लोग रास्ता नहीं दे रहे हैं। ऊपर से गाली गलौच मारपीट और जान से मारने की धमकी भी देते हैं। इतनी बार वह आ चुकी लेकिन डीएम नहीं मिले उनकी दरखास हर बार शिकायत पेटिका में डलवा जरूर ली जाती है लेकिन डीएम से मिलने नहीं दिया जाता। बोला जाता है कोरोना के टाइम अधिकारी नहीं मिलते।
सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने सावधानी के तरीके बताए हैं उचित दूरी, मास्क, सेनेटाइजर लेकिन उन्होंने किसी से मिलने के लिए तो नही मना किया वह भी फरियादियों से। मैं अगस्त महीने में चार दिन तक 10 से 2 बजे तक डीएम कार्यालय में रही। ये देखने के लिए कौन लोग डीएम से मिल पाते हैं। इन चारों दिन के अनुभव से पता चला कि डीएम फ़रियादियों को तो बिल्कुल ही रोक लगा रखे हैं। कोई भी फ़रियादी दरखास लेकर नहीं जा पाए। मैं खुद इस मामले में डीएम से बात करना चाह रही थी तो अंदर ही नहीं जाने दिया गया। कारण वही बहाना कोरोना का। आप समझ सकते हैं कि हर रोज न जाने कितने लोग मायूश होकर लौट जाते हैं।
एक कहावत कहें या मुहावरा कि “भला हुआ जो मार दिया, मुझे रोना ही था” इसका मतलब यह कि अधिकारी तो दूरियां चाहते ही थे फरियादियों से, ताकि उनको फ़रियादी की समस्या न सुनना पड़े, उनका काम और जिम्मेदारी न बढ़े। साथ ही मैले कुचैले, गंदे, बदबूदार कपड़े, जूते और मुंह भी न देखना पड़े। सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने उनके लिए कोरोना कहकर सोने में सुहागा का काम कर दिया है। ये कोरोना की आड़ से फ़रियादी से न मिलने और जिम्मेदारी से दूर भागकर बता दिया है कि अच्छी राजनीति खेली जा रही है जिससे लाठी भी टूट जाये और सांप भी न मरे। मतलब फ़रियादी से मिलें भी न और कार्यवाही के लिए मेहनत व जवाबदेही भी न देनी पड़े कोरोना की आड़ से।
इन अधिकारियों को आम जनता के लिए काम करने के लिए बैठाया गया है। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए जिम्मेदारी दी गई है। सरकार क्या इन अधिकारियों से ये जवाबदेही लेती है? तो फिर क्या ये पूँछी की कोरोना के टाइम फ़रियादी से इतनी दूरी क्यों? इन्हीं सवालों और विचारों के साथ मैं लेती हूँ विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ तब तक के लिए नमस्कार। अगर ये शो पसंद आया हो तो लाइक करें, दोस्तों के साथ शेयर करें। कमेंट करें और हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।