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कोरोना महामारी या नव सृजन का संदेश?

कोरोना महामारी या नव सृजन का संदेश? कोरोना महामारी ने लगभग हर विकसित और विकासशील देश को घुटने टेंकने पर मजबूर कर दिया है । ये एक वैश्विक आपदा है । इतनी बड़ी आपदा को मैंने कभी इतनी नजदीक से नही देखा और शायद दो पीढ़ी पहले भी किसी नही देखा था । इसका मतलब इस आपदा के तार बीसवीं शताब्दी के मनुष्य से ही जुड़ें हैं । मैं इस उम्र में लगभग समूचा भारत घूम चुका हूं और एक बात तो अपने ही देश मे देख चुका हूं कि हम बहुत बदल गए हैं ,इतने की हम खुद इसका अंदाजा नही लगा सकते ।

एक विकासशील देश का नागरिक हूँ इसलिए हर परिस्थिति को काफी नजदीक से देख रहा हूं। शायद हम ही विकसित देश के नजरिये और उसकी जीवनशैली को समझ सकते हैं और उसका कारण ये भी है कि हम हर पल उसका अनुसरण भी करना चाहते हैं लेकिन क्या आपने सोंचा की जो गलतियां उन्होंने की, हम भी आंख में पट्टी बांधकर वैसा ही करते जाएं ।

यकीन मानिए ये आपदा हमे ये बताने आई है की हमे उन देशों का अनुसरण नही करना चाहिए क्योंकि जिसने भी प्रकृति का नुकसान किया है उसे हर्जाना तो देना ही पड़ा है। ये कम और ज्यादा हो सकता है लेकिन बचेगा कोई नही । एक विकासशील देश के तौर पर हमने भी पिछले 50 वर्षों में बहुत सी गलतियां की हैं ।

 

साभार: न्यूज़लाइव

 

सबसे बडी गलती ये की हमने भी विकसित देशों की तरह अपने विकास के लिए प्रकृति को नुकसान पहुँचाया । कहीं प्रकृति ने समूचे विश्व को चेतावनी तो नही दी कोरोना आपदा के रूप में ,यकीन मानिए अगर ये सच है तो हमें हर हालत में अपने विकास के मॉडल को बदलना होगा ।क्यों की प्रकृति भी नव सृजन कर रही है शायद

हम सब बहुत ही कठिन दौर से गुजर रहे हैं । लेकिन यक़ीन मानिए कोरोना से इस सीधी जंग में जीत हमारी ही होगी । क्योंकि हमारा देश धैर्य , सादगी , स्थायित्व और आपसी बन्धुत्व के लिए विश्वविख्यात है। बस हमें घर पर तब तक रहना है जब तक इसका प्रकोप खत्म न हो जाये । ये शब्द लॉकडाउन जरूर है लेकिन इसे सकारात्मक रूप में देखिये । इस समय हमें घर मे रहकर चिंतन करने की आवश्यकता है की आखिर हम अपने आस पास कैसी परिस्थितियों को जन्म दे रहे हैं ?

हम कैसे समाज की स्थापना कर रहे हैं? आखिर क्यों हमें अस्सी के दशक उस लोकप्रिय सीरियल को पुनः दिखाने की मांग करनी पड़ी जिसने उस समय हर भारतीय के अंदर मर्यादा और आपसी बन्धुत्व की भावना का प्रसार किया । आखिर हम साधारण जीवन जीने से भी क्यों पीछे भाग रहे हैं ? गांवो का जीवन कठिन जरूर होता है लेकिन साधारण भी उतना ही । हमे कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि आज आप किसान के द्वारा बोये अनाज के ही सहारे घर पर ठहरे हैं ।

मैंने अपने जीवन मे किसी भी तरह की महामारी नही देखी लेकिन इस कोरोना के प्रकोप से इतना जरूर समझ आ रहा है कि हर आपदा व्यापक स्तर पर बहुत कुछ सोंचने को मजबूर करती है। सबसे बड़ा प्रश्न ये भी है कि हम आपदा के भावी प्रकोप से डर रहे हैं या फिर हमे प्रकृति के मिजाज की जरा भी चिंता नही ।सभी देशों में लगभग हर सिस्टम आज लाचार है इस आपदा के सामने सिर्फ इसलिए क्योंकि हमने प्रकृति के साथ किये जा रहे गलत व्यवहार पर हमेशा पर्दा डालने का काम किया है । आज जब प्रकृति में मौजूद एक वायरस ने कोहराम मचा दिया तो सबकी हेकड़ी निकल गई ।

 

प्लान तो दूसरे ग्रहों पर रहने का बना लिया है ओ मानव ने ,लेकिन यकीन मानिए ये सुंदर प्रकृति आपको इसे तबाह करके यूहीं जाने नही देगी ,आपको हर्जाना यूही देते रहना होगा । शायद वो दिन भी आये जब हर्जाना देने के लिए हमारे पास कुछ हो ही न । क्या आपने कभी सोंचा की आने वाली पीढियां हमसे क्या चाहती हैं ? उन्हें शांति , सादगी , प्रदूषणरहित वातारण और ठहराव चाहिए होगा तो क्या आप दे पाएंगे ? अगर उन्होंने सिर्फ ये खूबसूरत प्रकृति मांग ली तो क्या आप दे पाएंगे? अगर बचेगा तभी सोंच भी पाएंगे आप देने को उन्हें एक सुंदर कल ।

विश्वास मानिए ,मानव जाति के लिए सबसे सुरक्षित और सुंदर जगह यही धरती है। अगर नित नए विज्ञान से लबरेज मनुष्य को ये लगता है कि उसके पास इस धरती का विकल्प है तो ये छल है खुद से ,क्योंकि अगर ऐसा होता तो हमारे पूर्वज जो हमसे ज्यादा होशियार और परिपक्व थे वो भी किसी अन्य ग्रह पर रह होते । उन्होंने विरासत में हमे अगर ये सुंदर और स्वच्छ धरती दी है तो इसके पीछे कोई कारण जरूर होगा ।क्युकी हम चाहे या न चाहे प्रकृति अपना नव सृजन खुद से ही कर लर लेती है

-अनुज हनुमत (पत्रकार)
मो। 09792652787
ईमेल-anujmuirian55@gmail.com