कृष क्षेत्र के लिए कोरोना महामारी बनी नई मुसीबत
कोरोना महामारी का असर शहरों तक सीमित न रहकर गांवों तक पहुंच गया है। जहां शहरों में लोग घरों में कैद हो गए है। वही यह स्थित गांवो में बन गई है। गांव पूरी तरह से सुनसान पड़ चुके है। लोग अपने घरों में कैद हो गए है। खेतों में फसल खड़ी है। लेकिन फसल कटाई के लिए मजदूर नहीं मिल पा रहे है। बारिश होने के कारण सिर पर संकट वैसे ही मंडरा रहा था।अब जो फसले बची भी हैं उसका दाना घर तक कैसे पहुंचे इसको लेकर उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं। इस समय पूरे देश में कोरोना का कहर जारी है किसानों की फसलें भी पककर तैयार हैं। लेकिन कोरोना का डर किसानों के खेतों के तरफ बढ़ते क़दमों को रोक रहा है। इस सब सवालों के कश्मकश में बीत रही है किसानों की जिंदगी।
मार्च के दूसरे सप्ताह में हुई मूसलाधार बारिश और ओले गिरने से फसल बर्वाद हो गई थी और जो बची थी उसपे कोरोना का कहर। किसान यही सोच रहे हैं की बेमौसमी बारिश, ओलावृष्टि और आंधी की मार क्या कम थी अब जो कोरोना का प्रकोप भी रुलाने लगा है। इससे भी चिंता जनक स्थिति उन मजदूरों की है जिनके पास अपनी खुद की खेती नहीं है और वे दूसरों के खेतों में फसल की कटाई कर घर में दाना जुटाते थे ऐसे मजदूरों की भूखे मरने की नौबत आ जायेगी।
इन सब समस्याओं को दरकिनार रख बुंदेलखंड के बाँदा जिले से कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जहाँ लोग मुंह में गमछा बांधकर खेतो में पहुँचने लगे हैं। उनका कहना है की इस बार रबी फसल से किसानों को काफी उम्मीदें थी लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने व बादल छाए रहने से किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। जिस तरह इस उपज की किसानों को उम्मीद थी वह नहीं मिल पाएगी। इसलिए किसान जल्दी-जल्दी खेतों से कटाई करके फसल समेट ले तो अच्छा होगा। क्योंकि मौसम का अभी भी कोई ठिकाना नहीं है और किसान के लिए तो यही फसल ही एक सहारा है जिससे वह साल भर अपने घर परिवार का बसर करता है।
भारत कृषि प्रधान देश है और देश के कृषि क्षेत्र की सेहत का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। देश की आधी से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है लेकिन कोरोना वायरस के फैलने के बाद फसलों की कीमतें कमजोर हो गई हैं। किसान अगर अपने खेतों में निकल रहे हैं तो अपने सेहत का ख़ास ख़याल रखें। स्वस्थ्य रहेंगे तभी काम हो पायेगा इसलिए जागरूक बनें और दूसरों को भी जाकरूक करें।