विवादित भूमि पर विवाद, निर्मोही अखाड़ा ने केन्द्र की याचिका के खिलाफ किया सुप्रीम कोर्ट का रुख
नई दिल्ली : उधर सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राम मन्दिर के निर्माण के वादे को पुरजोर दोहराया और इधर निर्मोही अखाड़ा ने केन्द्र की उस याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई, जिसमें गैर-विवादित भूमि को उसके मूल मालिकों को सौंपने की बात कही गई थी। यह याचिका केन्द्र सरकार द्वारा जनवरी में दाखिल की गई थी। इसमें उसने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 2.77 एकड़ के विवादित स्थल के आसपास लगभग 67 एकड़ की अविवादित भूमि से यथास्थिति को हटा कर उसे मुक्त किया जाए। इसके मालिकों में राम जन्मभूमि न्यास भी शामिल है, जिसका हिस्सा लगभग 42 एकड़ का है। राम जन्मभूमि न्यास एक ट्रस्ट है, जो राम मंदिर के निर्माण को बढ़ावा देता है।
दरअसल साल 2003 में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि विवादित स्थल के चारों ओर अधिग्रहित 67 एकड़ भूमि के सम्बन्ध में यथास्थिति को बनाए रखा जाए। अपनी अर्जी में केन्द्र ने तर्क दिया कि मुसलमानों का दावा केवल 0.313 एकड़ के उस विवादित स्थल पर था, जहां विवादित ढांचा अपने उसके विध्वंस से पहले खड़ा था। केन्द्र का कहना है कि 24 अक्टूबर 1994 को डॉक्टर एम इस्माइल फार्रुकी और अन्य बनाम भारत संघ मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अयोध्या अधिनियम, 1993 के अन्तर्गत कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और 67.703 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की गई।
विश्व हिंदू परिषद ने भी एक प्रेस बयान में कहा था कि साल 1993 में सरकार द्वारा अधिग्रहीत कुल 67.703 एकड़ भूमि में से केवल 0.313 एकड़ ही मुकदमे के तहत विवादित ढांचे वाली भूमि थी। विश्व हिंदू परिषद ने विवादित भूमि को उसके मूल मालिकों को सौंपने के लिए केंद्र की याचिका का स्वागत किया था।
निर्मोही अखाड़ा अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मूल वादियों में से एक है। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, निर्मोही अखाड़ा ने केन्द्र की याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया कि अखाड़े ने कहा कि केंद्र द्वारा भूमि के अधिग्रहण ने पहले ही कई उन मंदिरों को नष्ट कर दिया है, जिनका प्रबन्ध अखाड़े द्वारा किया जाता है। उसे आशंका है कि एक ही पक्ष में यह भूमि जाने से उस पर स्थित मंदिरों पर उसका हक प्रभावित होगा और प्रबन्धन में मुश्किल होगी, इसलिए वह चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट मुख्य विवाद का फैसला करे।
सुप्रीम कोर्ट का मध्यस्थता पैनल राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले से संबंधित पक्षों के साथ विचार विमर्श कर रहा है। मामले को सुलझाने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ एम कलीफुल्लाह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय एक मध्यस्थता पैनल बनाया है। आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू पैनल के अन्य सदस्य हैं।