खबर लहरिया औरतें काम पर एनसीडब्ल्यू द्वारा कार्यस्थल पर मातृत्व लाभ की शिकायतों में दिखी बढ़ोतरी

एनसीडब्ल्यू द्वारा कार्यस्थल पर मातृत्व लाभ की शिकायतों में दिखी बढ़ोतरी

राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्लयू) ने महिलाओं के उनके कार्यस्थल पर मातृत्व लाभ ना देने की शिकायतों में वृद्धि देखी है। इन शिकायतों को, पिछले साल सरकार द्वारा 12 दिनों से 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ाने के महत्वपूर्ण दिशानिर्देशों के बाद निरीक्षित किया गया है।

एनसीडब्ल्यू के अधिकारियों के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में ज्यादातर शिकायतों को गर्भावस्था के मामले में छह महीने की अनिवार्य मातृत्व अवकाश और कार्यस्थल पर बच्चों के लिए डे-केयर सुविधा की कमी से इंकार कर दिया गया है।

प्रसूति लाभ अधिनियम के अनुसार, 50 या अधिक कर्मचारियों वाले किसी भी संगठन को बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को अपनी नौकरियों में वापस आने में मदद करने के लिए एक क्रेच या डे-केयर सेंटर जैसी सुविधा का प्रबंध कराना चाहिए।

एनसीडब्लू द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में मातृत्व लाभ अधिनियम द्वारा अनिवार्य मातृत्व लाभ प्रदान न करना जैसी शिकायतों के मामलों में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। 2013 में आयोग द्वारा, उत्तर प्रदेश में प्राप्त 352 शिकायतों के 99 मामले सामने आये हैं। महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा ने क्रमश: 21,60 और 25 मामले दर्ज किए हैं।

अधिकारियों ने कहा कि कई ऐसी भी शिकायतें हैं जहाँ महिलाओं की गर्भावस्था की स्थिति के बारे में सूचित करने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। “कई कंपनियां या संगठन ऐसे कर्मचारी में निवेश नहीं करना चाहते हैं जो छह महीने के लिए भुगतान की छुट्टी पर जाएंगे। इसलिए ऐसे मामलों में बढ़ोतरी हुई है, खासकर जब सरकार ने पिछले साल मातृत्व लाभ अधिनियम में संशोधन किया था”, ऐसा एनसीडब्ल्यू के एक अधिकारी ने इकनोमिक टाइम्स को बताया है।

दिलचस्प बात यह है कि, पिछले साल से आने वाले अधिकांश मामलों में अस्पतालों में नियोजित महिला डॉक्टरों के सबसे ज्यादा शिकायतें दर्ज की गई हैं।

अधिकारी ने ऋषिकेश में उत्तराखंड अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के साथ काम कर रही एक गर्भवती निवासी डॉक्टर के मामले को सामने लाया गया है- उसे गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में अस्पताल को सूचित करने के बावजूद भी नौकरी से निकाल दिया गया था।

आयोग ने इस साल मई में शिकायत दर्ज की थी, आयोग द्वारा आयोजित अलग-अलग पूछताछ के बाद महिला निकाय अब श्रम आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ इस मामले की जांच कर रहा है। वहीँ श्रम मंत्रालय ने खुलासा किया कि अधिकारियों और डॉक्टर ने उस महिला को गलत तरीके से नौकरी से निकाला था।