खबर लहरिया Blog जलवायु परिवर्तन से विस्थापित होता जीवन व रोज़गार 

जलवायु परिवर्तन से विस्थापित होता जीवन व रोज़गार 

रिपोर्ट बताती है कि कथित तौर पर यूपी के बांदा व महोबा जिले के कुछ गांवो में टोटी लगा दी गई है, पाइपलाइन बिछा दिए गए हैं, सब नाम के लिए। यहां जब भी गर्मी आती है, हैंडपंप और कुएं सूख जाते हैं। उस समय नाम के लिए लगाए गए नल भी पानी नहीं देते। ऐसे में पानी तक दौड़ उन्हें तपती गर्मी में पूरी करनी होती है, शरीर की तपिश को झेलते हुए। 

Climate change affecting daily life, employment and health

     चित्रकूट जिले का मवई कला गाँव जो पूरी तरह से बाढ़ में डूब चुका है (फोटो – खबर लहरिया)

तीव्र जलवायु परिवर्तन के कारण इस साल भी बढ़ते तापमान व बाढ़ से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। इन आपदाओं का संबंध जलवायु परिवर्तन के पैटर्न व मौसम में बदलाव से जुड़ा हुआ है। इसने लोगों की जीवनशैली व रोज़गार को भी प्रभावित किया है। 

अधिक तापमान से पड़ने वाला असर 

बढ़ते तापमान से जुड़े मामलों और इससे होने वाले असर की बात करें तो यह सब पर एक-सा असर नहीं करता। ग्रामीण परिवेश में जहां संसाधन की कमी है और चुनौतियां ज़्यादा हैं, वहां इसका असर ज़्यादा देखा जाता है। 

  • रोज़गार 

खबर लहरिया की रिपोर्टिंग के अनुसार, बढ़ते तापमान ने न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया बल्कि उनके रोज़गार और दैनिक जीवन को भी प्रभावित किया है। यूपी के चित्रकूट जिले की लोढ़वारा गाँव की 50 वर्षीय मुन्नी देवी बताती हैं, 

“पहले तो जंगल से लकड़ियां लाना, कंडे बिनने का काम हम भरी दोपहर में करते थे। सुबह 5 बजे निकल जाते थे और 10 बजे तक वापस आ जाते थे। अब 10 बजे तक धूप पूरे जंगल में फैल जाती है। पहले तो पेड़ भी बहुत सारे थे तो फिर भी ठंडक लगती थी। अब इतनी गर्मी से पेड़ भी सूख गए हैं तो छाया का सहारा भी नहीं मिलता है। अब तो जमीन तन्दूर की तरह लपेटे फेंक रही है जिससे बीमारी बढ़ रही है।”

बढ़ते तापमान ने लोगों ने उनके आय के घंटे और सेहत को भी छीन लिया है जहां न तो वह अधिक तापमान की वजह से पहले की तरह काम कर पाते हैं और न ही खुद को जंगलों के बीच रहकर भी धूप से सुरक्षित रख पाते हैं। 

  • पानी 

यूपी का बुंदेलखंड इलाका दशकों से पानी के लिए त्रस्त रहा है और आज भी है जिसका एक सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। खबर लहरिया की मई 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, यूपी में मई के पूरे महीने में गर्मी का तापमान लगभग 40, से 47 डिग्री सेल्सियस के बीच देखा गया। रिपोर्ट में बाँदा व महोबा जिले के गांवो के बारे में बताया गया जहां लोग बढ़ते तापमान की वजह पानी की समस्या से जूझ रहे थे, हर साल की तरह। 

महोबा जिले में पहाड़ी नाम का एक गांव हैं जहां के पानी की समस्या के बारे में रिपोर्ट में बताया गया है। लोगों का कहना था कि पहाड़ अधिक तपता है तो गर्मी भी बढ़ जाती है। पहाड़ों से जो भी पानी आता था वह भी सूख जाता था। 

रिपोर्ट बताती है कि कथित तौर पर यूपी के बांदा व महोबा जिले के कुछ गांवो में टोटी लगा दी गई है, पाइपलाइन बिछा दिए गए हैं, सब नाम के लिए। यहां जब भी गर्मी आती है, हैंडपंप और कुएं सूख जाते हैं। उस समय नाम के लिए लगाए गए नल भी पानी नहीं देते। ऐसे में पानी तक दौड़ उन्हें तपती गर्मी में पूरी करनी होती है, शरीर की तपिश को झेलते हुए।

प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की फरवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत, 30 जनवरी, 2024 तक अब तक 10.98 करोड़ से ज़्यादा अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को नल जल कनेक्शन दिए जा चुके हैं। सवाल यह है कि ये परिवार और जगह कौन-सी हैं क्योंकि ग्रामीण इलाकों में इनकी पहुंच आज भी बेहद दूर नज़र आती है जब हम इसमें ऊपर बताये गए बांदा व महोबा जिले जैसे कई गांवो की बात करते हैं। 

स्टेट वॉटर ऐंड सैनिटेशन मिशन (State Water and Sanitation Mission) की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा बुंदेलखंड में पानी की समस्या से निपटारा पाने के लिए विंध्य प्रोजेक्ट (Bundelkhand/Vindhya Project) शुरू किया गया था। जानकारी के अनुसार, यह परियोजना बुन्देलखण्ड और विंध्य क्षेत्रों में घरों तक साफ़ पानी उपलब्ध करने के लिए यूपी सरकार की एक पहल है। यह परियोजना दूर-दराज़ के क्षेत्रों पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य ग्रामीण आबादी के लिए पाइप लाइन से पानी की पहुँच में सुधार करना है। 

विंध्य क्षेत्र (Vindhya region) पश्चिम-मध्य भारत में एक पर्वत श्रृंखला है जो गंगा बेसिन को दक्कन के पठार से अलग करती है और देश को उत्तरी और दक्षिणी भारत में विभाजित करती है। 

इस परियोजना में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के सात जिले शामिल हैं: झाँसी, महोबा, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट। हमने जिन दो जिलों की ऊपर रिपोर्ट में बात की, वह भी इसमें शामिल हैं लेकिन सरकार यहां जिस पानी को पाइपलाइन से पहुँचाने का दावा कर रही है, वह बताये गए जिलों में फिलहाल तो आज भी विफल ही नज़र आ रही है। 

  • खेती व दैनिक जीवन पर असर 

बुंदेलखंड की आधी से ज़्यादा आबादी खेती पर निर्भर करती है लेकिन खेती के लिए पानी की समस्या उनके लिए हमेशा एक चुनौती के रूप में बनी रहती है। इस साल 2024 में बढ़े हुए तापमान ने कई किसानों को तो सिंचाई करने का मौका ही नहीं दिया। वहीं जो किसान खेत में अनाज लगा पाए, अधिक तापमान की वजह उनके खेत और सब्ज़ियां भी सूख गईं। 

खबर लहरिया की अगस्त 2024 की रिपोर्ट में प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ ब्लॉक के गांव बिहरिया के किसानों के बारे में बताया गया जो काफी समय नहर की मांग करते आ रहे हैं। यह पहाड़ी व पथरीला क्षेत्र है जहां सिंचाई के लिए न बोरिंग है, न कुआं और न ही अन्य कोई संसाधन। 

किसान नन्हू अजय शंकर बताते हैं कि,“हम मजदूरी करते हैं या देश-परदेश में कमाकर अपने बच्चों का भरन पोषण करते हैं। यहां के किसी कुआं, तालाब में पानी नहीं है, यदि सिंचाई की व्यवस्था होती तो अब तक हम इस समय खेत में धान की रोपाई करते। हम लोग बारह मास गेहूं, चावल-दाल, तेल खरीदते हैं। खेती है पर कोई मतलब नहीं है, उस खेत में फूट-चावेना नहीं होता। इससे अच्छा खेती न होती तो ठीक रहता लेकिन तूर की खेती बारिश में करते हैं।”

खबर लहरिया की मई 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, बांदा जिले के लुकतारा गांव की महिला किसान गिरजा बताती हैं कि बिना पानी के उनके खेत परती पड़े हुए हैं। अन्य किसान ने कहा कि अगर पानी की सुविधा होती तो वह खेती करते, मज़दूरी नहीं करते जो वह इस समय कर रहे हैं। 

द एनालिसिस की जुलाई 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, बुंदेलखंड जलवायु के प्रति संवेनशील क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। वह अमूमन बढ़ते तापमान और अधिक अनियमित वर्षा का सामना करता है। मौसम वैज्ञानिकों द्वारा पिछले 30 सालों में से 18 सालों के सूखे को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा गया है। 

लगातार सूखा और फसलों का बर्बाद होना लोगों को गरीबी की और धकेलता चले जाता है। तेंदुलकर समिति की 2009 की रिपोर्ट (Tendulkar Committee Report 2009) के अनुसार, भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का स्तर बढ़ गया है क्योंकि अधिकतर लोग अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के सभी जिलों, बुंदेलखण्ड में 40 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है। बुन्देलखण्ड में सूखा होना, कम वर्षा से कहीं ज़्यादा अधिक है। इसमें जाति वर्ग-आधारित भेदभाव, जल-गहन फसलों (वे फसलें जिनमें अधिक पानी लगता है) की ओर बदलाव, पारंपरिक जल संरचनाओं की कमी और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।

एक तरफ जहां बिना पानी किसानों के खेत सूख जाते हैं वहीं अत्यधिक पानी व बारिश से उनके खेत बर्बाद भी हो जाते हैं। विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2015 और 2021 के बीच भारत में अत्यधिक बारिश के कारण 33.9 मिलियन हेक्टेयर फसल और सूखे के कारण अतिरिक्त 35 मिलियन हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई है। 

हीटवेव से मौत के आंकड़े 

इस साल बढ़ते तापमान की वजह से हीटवेव व हीटस्ट्रोक से होने वाली मौतों के भी कई मामले भी दर्ज़ किये गए हैं। खबर लहरिया की रिपोर्टिंग बताती है कि जब ग्रामीण क्षेत्रों में हीटवेव से मौत के मामले बढ़ने लगे तो प्रशासन ने लोगों के बीच इसकी जागरूकता फैलाने के लिए देसी तरीके का इस्तेमाल किया। एक व्यक्ति द्वारा गांव-गांव में जाकर डुग्गी पीटी गई। लोगों से कहा गया कि वह सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक घर से बाहर निकले और अपने जो भी काम है वह बताये समय से पहले व बाद में करें। इससे वह खुद को हीटवेव से सुरक्षित रख पाएंगे। 

 

बता दें, तापमान में वृद्धि से शरीर अपने आप खुद को ठंडा नहीं कर पाता, जिससे खून जम जाता है और व्यक्ति को इससे हीटस्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है। 

इसके अलावा, हीटवेव की स्थिति तब मानी जाती है जब मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो; तटीय क्षेत्रों में 37°C से अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में 30°C से अधिक और सामान्य से विचलन अधिकतम औसत से 4.5 और 6.4°C के बीच हो। अगर यह स्थिति लगातार दो दिनों तक बनी रहती है तो दूसरे दिन लू की स्थिति घोषित कर दी जाती है।

डाउन टू अर्थ सितम्बर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 13 सितंबर, 2024 तक, भारत में हीटवेव की वजह से 700 से अधिक मौतें हुई हैं। यह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा रिपोर्ट की गई 360 हीटस्ट्रोक मौतों से अधिक है। हीटवेव की वजह से 17 राज्यों में 40,000 से अधिक संदिग्ध हीटस्ट्रोक के मामले भी सामने आए हैं। वहीं 2024 में भारत में हीटवेव के रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान में 37 शहर शामिल थे जिनमें तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से पार पहुंच गया था। 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन (M Rajeevan) व वैज्ञानिक कमलजीत रे, एस एस रे, आर के गिरि और ए पी डिमरी के साथ लिखे गए एक पेपर के अनुसार, भारत में 50 सालों में हीटवेव ने 17,000 से अधिक लोगों की जान गयी है। 2021 में प्रकाशित पेपर में कहा गया था कि 1971-2019 तक देश में लू लगने से होने वाली 706 घटनाएं हैं। (बिज़नेस टुडे रिपोर्ट)

बाढ़ और विस्थापन 

हीटवेव और हीटस्ट्रोक के बाद पिछले कई महीनों से देश भर में बाढ़ की समस्या भी बनी हुई है जिसमें जलवायु परिवर्तन भी एक कारण है। खबर लहरिया की अगर बाढ़ से जुड़ी रिपोर्ट्स की बात करें तो यूपी के कुछ गांव व जगहें ऐसी हैं जहां हर साल बाढ़ आती है। हर साल वह गांव बाढ़ में डूब जाता है और परिवार अपना सब कुछ खो देते हैं। यूपी की उस जगह का नाम है, शंकर पुरवा गांव। 

शंकर पुरवा गांव, बांदा जिले की ग्राम पंचायत नांदादेव का मजरा में आता है। शंकर पुरवा की महिलाओं का कहना था कि केन और चंद्रावल दोनों ही नदियां पहले पैलानी की तरफ कटती थीं, लेकिन पिछले कुछ सालों से वह शंकर पुरवा के क्षेत्र में कट रही हैं। यही वजह है कि गांव हमेशा बाढ़ से ग्रस्त रहता है। 

इस साल भी मंज़र यही है। खबर लहरिया की सितंबर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, गांव में एक टीला है, लोग वहीं बाढ़ के दौरान जाकर रुकते हैं। अनीता बताती हैं, “यहां हर साल बाढ़ आती है। नदियां भर जाती हैं तो कहीं आ-जा नहीं पाते।”

सूरजकली कहती हैं,”सरकार उनकी नहीं सुनती।” उन्हें पैलानी में रहने के लिए जगह चाहिए क्योंकि इस समय जहां वह रह रही हैं वह हर साल बाढ़ में डूब जाता है। पिछले साल भी यहां के लोगों की सरकार से यही मांग थी कि उन्हें रहने के लिए कोई और ज़मीन या जगह दी जाए ताकि उन्हें हर साल बाढ़ का सामना न करना पड़ा। बस हर बार लोगों के अनुसार, उनकी उम्मीदों को झुठला दिया जाता है। 

लोगों ने यह भी बताया कि बाढ़ में खाने तक के लिए नहीं रहता। लोग भूखे सो जाते हैं। कई लोग सामान उठाते-उठाते बीमार हो जाते हैं। 

ऐसे में लोगों को जान बचाने के लिए परिवार सहित पलायन करना पड़ता है। पलायन भी सिर्फ वही लोग कर पाते हैं जिनके पास कहीं जाने के लिए कोई जगह होती है। 

आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (Internal Displacement Monitoring Centre) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2020 में दुनिया में सबसे ज़्यादा नए आंतरिक विस्थापन हुए हैं जिसमें 9 मिलियन से अधिक लोग बाढ़, चक्रवात और सूखा जैसी जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए मज़बूर हुए हैं। 

भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, 2024 के मानसून सीज़न में चरम मौसम की घटनाओं के दौरान भारत में कुल 1,492 लोगों की मौत हुई है (एनडीटीवी, अक्टूबर 2024 रिपोर्ट।) रिपोर्ट बताती है कि एमपी में बाढ़ व अत्यधिक बारिश से 100 लोगों की मौत हुई है।

जब हम बाढ़ की बात करते हैं तो रिपोर्ट्स के अनुसार, वायुमंडल में छोड़ी गईं ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी पर एक चादर की तरह काम करती हैं। यह चादर गर्मी को रोकती है जिससे तापमान में बढ़ोतरी होती है। इससे ज़मीन और समुन्द्र में पानी का तेज़ी से वाष्पीकरण होता है। इसका मतलब है कि जब बारिश होती है तो वह ज़्यादा से अत्याधिक होती है। जब कम समय में भारी मात्रा में बारिश होती है इससे बाढ़ का खतरा उत्पन्न होता है। 

ग्रीन हाउस गैसें (Greenhouse Gases) वायुमंडल में मौजूद ऐसी गैसें होती हैं जो सूरज से आने वाली गर्मी को रोककर पृथ्वी को गर्म रखने का काम करती हैं। 

तीव्रता से बढ़ता जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे मानव जीवन के लिए हर दिन की एक चुनौती बन गया है। जहां रोज़ के काम करना मुश्किल हो गया है, पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। सूखा पड़ रहा है तो कहीं अत्यधिक से ज़्यादा वर्षा होने की वजह से बाढ़ ही आ जा रही है। रिपोर्ट में हमने यह जाना कि जलवायु परिवर्तन ग्रामीण क्षेत्रों में कितना गंभीर है जहां संसाधन की कमी होने के साथ-साथ बचाव की भी कम सुविधा उपलब्ध है। ऐसे में यह सवाल करना बेहद ज़रूरी है कि जलवायु परिवर्तन की मार सबसे ज़्यादा किस पर पड़ रही है और कौन इसका सबसे ज़्यादा सामना कर रहा है। इनके लिए क्या कार्य किये जा रहे हैं व किया किये जाने चाहिए?

 

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