स्वच्छता अभियान के अंतर्गत कहने को तो हर ग्रामसभा में सफाई कर्मी की न्युक्ति की गई है लेकिन सफाई व्यवस्था काफी लचर है। कारण कि सफाईकर्मी गाँव या मजरों की सफाई नहीं करते कोई अपने बड़ी जाति का हवाला देकर छोटे जातियों से कम पैसे देकर जब कभी सफाई करवा देता है तो कोई कभी आता है कभी नहीं जिस वजह से गाँव में गंदगी का आलम ज्यों का त्यों बना रहता है।
नालियाँ भठी और कूड़े का ढेर आपको हर गाँव में दिख जाएंगे। अगर हम बात करें बांदा जिला, ब्लाक तिदवारी, गांव बम्बिया का मजरा भडौली की तो यहाँ के लोगों का आरोप है कि एक साल से इस मजरे की साफ-सफाई नहीं हुई है। गांव और मोहल्ले में गन्दगी का ढेर लगा है। जब लोगों की जरूरत होती है तो खुद के लोग अपने हाथ से अपने दरवाजे के सामने साफ करते हैं। सफाईकर्मी जो है क्या वह बैठे-बैठे वेतन लेते हैं 1 साल से कोई हमारे यहां सफाई कर्मी झांके तक नहीं आया है सफाई की तो बहुत बड़ी बात है। प्रधानों का मन का काम होता है जो चाहे वही काम करा सकता है। 1000 में सफाई कर्मी प्रधानों के बिके हुए हैं इसलिए गांव की साफ-सफाई करने के लिए सफाईकर्मी नहीं आते हैं। अगर गांव में स्वच्छता अभियान के अंतर्गत स्वच्छता नहीं होगी तो गांव में गंदगी और मच्छर की भरमार कई तरह की बीमारियां फैलती जायेंगी इसलिए लोगों की मांग है कि गांव की सफाई कराई जाए। यह तो प्रधान की मनमानी है जो सफाईकर्मियों पर निगरानी नहीं रखता की सफाई कर रहे हैं या नहीं। देश की राजधानी से लेकर गाँव की गलियों तक स्वच्छता अभियान चल रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर आम नागरिक सफाई करने में जुटे हुए हैं। लेकिन सफाई व्यवस्था में सुधार नहीं हो रहा है जबकि सरकार स्वच्छता के नाम हर साल अरबों रूपये खर्च करता है लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। जिस कारण एक झटके में ही सरकार का यह सपना चकनाचूर हो सकता है।
सरकार द्वारा शुरू की गई योजना केवल कागजों में दौड़ रही है। इस योजना ने आज धरातल पर कोई ख़ास प्रगति नहीं की है। प्रशासनिक अधिकारी खुद को बचाने के चक्कर में कागजों में ही इस योजना को शिखर में पहुंचा देते हैं।स्वच्छता अभियान सिर्फ गाँवों के लिए नहीं है ये हर जगह अस्पताल नगरपालिका गाँव, शहर हर जगह लागू है लेकिन कहीं भी सक्सेज हो पा रहा बस बड़े-बड़े दावे हर पार्टियाँ करती हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ ख़ास असर नहीं पड़ता। जिला अस्पताल की बात करें तो वहां भी अव्यवस्था का आलम है। ना तो जच्चा-बच्चा वार्ड में ठीक से सफाई होती है और न ही शौचालयों की। बैड के पास ही डस्टबिन में गंदगी भरी नजर आती है। पूरा वार्ड अव्यवस्थित रहता है। वार्ड में बदबू के चलते रुकना मुश्किल हो जाता है। इन परिस्थितियों में जच्चा-बच्चा को दो से तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। नवजात बच्चों को बीमार होने पर नर्सरी में रखने की सुविधा तो अच्छी है, लेकिन देखरेख में बरती जाने वाली लापरवाही बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ती नजर आती है। गांव बम्बिया में तैनात सफाई कर्मी अनिल कुमार का कहना है कि हर हफ्ते हम साफ सफाई करने जाते हैं लोग झूठा आरोप लगाते रहते हैं एक सफाईकर्मी के भरोसे स्कूल और पूरी ग्रामसभा होती है जिसमे कई-कई मजरे होते हैं। प्रधान बुद्ध विलास का कहना है कि सफाई कर्मी प्रतिदिन आते हैं और लोग खुद के गंदगी फैलाते हैं लोगों को कितना समझाया जाए। स्वच्छ भारत अभियान के तहत साफ-सफाई का अभियान जो चला था उसके तहत लोगों को बहुत जागरूक किया गया है कि गांव की साफ सफाई रखें क्योंकि गंदगी से बीमारियां होती हैं। लेकिन समझते नहीं हैं।बुद्ध विलास का कहना है कि लोग प्रधान और सफाई कर्मी के ऊपर आरोप लगाते हैं खुद के लोगों की कमी होती है तभी गांव में गंदगी फैलती हैं अगर लोग चाहे तो नालियों की साफ-सफाई बनी रहे और बनी भी रहेगी लोग जो झाड़ू लगाते हैं कूड़ा उसी नाली में डाल देते हैं यही कूड़ा बाहर बहा दे तो क्या होगा। हमारा यही सरकार से निवेदन है कि प्रधान और सफाई कर्मी को दोषी ना ठहराया जाए। अगर हमारे पास ऐसी कोई शिकायत आती है तो हम सफाईकर्मी को भेजकर सफाई करा देते हैं।