आज (9 दिसंबर ) सदन में नागरिकता संसोधन बिल पर चर्चा हो रही है. हालांकि इसके लिए सदन में मौजूद सदस्यों के वोट के आधार पर 293 वोट पक्ष और 82 वोट विपक्ष में पड़े।
Lok Sabha: 293 'Ayes' in favour of introduction of #CitizenshipAmendmentBill and 82 'Noes' against the Bill's introduction, in Lok Sabha pic.twitter.com/z1SbYJbvcz
— ANI (@ANI) December 9, 2019
लेकिन इस बिल ने देश भर में हंगामा खड़ा कर दिया है। विरोधी पार्टी और कई समाजसेवी लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी पार्टियों का कहना कि धर्म के आधार पर देश को बांटने की कोशिश है।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल?
इस बिल के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी लेकिन यहाँ के मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। आपको बता दें कि 2016 में जब ये बिल लोकसभा में पारित किया गया था तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी असम गण परिषद ने इस बिल का विरोध किया था और गठबंधन से अलग भी हो गई थी। इस बिल के विरोध करने का कारण भी विरोधी पार्टियों ने खुल कर बताया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि “संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किए जाने पर पार्टी इसमें दो संशोधन लाएगी क्योंकि वह विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करती है। पार्टी दो संशोधन लाकर उन सभी शर्तों को हटाने की मांग करेगी, जो धर्म को नागरिकता प्रदान करने का आधार बनाते हैं.”
हालांकि इस बिल का विरोध प्रदर्शन सबसे ज्यादा असम में हो रहा है। वहां तो लोग नगें होकर हाथ में तलवार लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके अनुसार इस बिल से असम के पहचान पर संकट आएगी। साथ ही ये बिल कानून बनने के बाद 1985 में हुए असम समझौते के प्रावधानों को बेअसर कर देगा। इसके मुताबिक असम में 24 मार्च 1971 से पहले आए लोगों को असम की नागरिकता दी गई थी।
अब ये बिल एक बार फिर हिन्दू मुस्लिम मामले को हवा देगा क्योकि ये साफ दिख रहा है के एक जाती को किस तरह धर्म और सुरक्षा के नाम पर किस तरह से प्रताड़ित करने की योजना है