नई दिल्ली नागरिकता संशोधन कानून देशभर में लागू हो गया है। केंद्र सरकार ने देश में सी ए ए को दस जनवरी, 2020 से प्रभावी करने की घोषणा की है। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।
इस कानून के लागू होने के बाद से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता खुल गया है। मगर देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी है। देश के कई राज्यों में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा है। जामिया मिलिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सहित शिक्षण संस्थानों के स्टूडेंट्स ने इस कानून का विरोध किया है। 15 दिसंबर को जामिया में छात्रों के आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। आखिर इस कानून में ऐसा क्या है, जिससे इसका इतना विरोध हो रहा है?
इस कानून का क्यों हो रहा है विरोध?
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की दो बड़ी वजहें हैं। पहला, उत्तरपूर्व के लोग अपने यहां इस काननू को लागू करने के खिलाफ हैं। उन्हें डर है कि इस कानून के चलते उनके यहां शरणार्थियों की संख्या बढ़ जाएगी, जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा। असम के लोगों को डर है कि इससे उनकी असमी भाषा गौण हो जाएगी, जबकि बांग्ला का वर्चस्व बढ़ जाएगा। उनकी संस्कृति पर भी खराब असर पड़ेगा। उनके लिए रोजगार के मौके घट जाएंगे। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित देश के दूसरे हिस्सों में इस कानून का विरोध इसलिए हो रहा है कि इससे मुस्लिमों को बाहर रखा गया है। उनकी दलील है कि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। संविधान में धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही है।
हालांकि केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ दल भाजपा इस कानून का जमकर बचाव करते रहे हैं। उनका कहना है कि इन तीन पड़ोसी देशों से आए लोगों को धार्मिक आधार पर प्रताडि़त किया जाता रहा है। इन लोगों के पास अपनी जान और सम्मान बचाने के लिए भारत आने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। हालांकि गृह मंत्रालय को इस कानून के संबंध में अभी नियम आदि तय करने बाकी हैं।
पूरे भारत में नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध तेज हो गया है, जिससे आम जनमानस भीषणता, क्रूरता और विभिन्न विचारधाराओं के बीच जूझ रहा है। उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में सीएए के खिलाफ प्रोटेस्ट करने वालों पर सरकार द्वारा बार्बर रुख अपनाया गया। सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस कार्रवाई में यूपी में 20 लोगों की कथित रूप से मौत हो गई है। यूपी के ही एक पुलिस अधिकारी का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्हें स्थानीय मुसलमानों को यह कहते हुए देखा जा सकता है कि विरोध करने वालों को पाकिस्तान जाना चाहिए। इन सबके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से भी सीएए के खिलाफ विरोध की तमाम खबरें आ रही हैं।
एक तरफ बीजेपी जहां सीएए के समर्थन में में नज़र आ रही है तो वहीं कांग्रेस-सपा हिंसा में मारे गए युवकों के घर जाकर उनका दर्द बांट रही है। हर पार्टी अपने राजनीतिक फायदे-नुकसान के हिसाब से इस मुद्दे का इस्तेमाल कर रही है। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का नागरिक होने के नाते यह हमारा दायित्व है कि आधारहीन भय न फैलाने, सार्वजनिक संपत्तियों को जलाने, पुलिस कर्मियों को मारने और एक नकारात्मक प्रभाव का हिस्सा बनने से बचें। वहीं सरकार की भी जिम्मेदारी है कि इस कानून से जुड़े भ्रम दूर करे।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका
संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र अब भारत के सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता कानून के खिलाफ हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है। मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने सीएए के खिलाफ भारत के उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त ने जेनेवा में हमारे स्थाई मिशन को सोमवार शाम को ये बताया कि उनके दफ़्तर ने सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन को लेकर एक इंटरवेंशन याचिका दाखिल की है।
नागरिकता संशोधन कानून (सी ए ए) को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने पर विश्व हिंदू परिषद ने नाराजगी जताई है। विहिप ने कहा है कि किसी भी बाहरी को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
ये पहला मौका नहीं है जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकता क़ानून के खिलाफ आवाज़ उठी है। इससे पहले भी दुनिया के देश इसे लेकर बात कर चुके हैं। अमेरिका के कई आयोगों द्वारा बयान आ चुके हैं कि वह परिस्थिति पर नज़र रख रहे हैं। नागरिकता क़ानून को लेकर देश के कई हिस्सों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैंं।
नागरिकता संशोधन अधिनियम क्या है?
सी ए ए में तीन पड़ोसी देशों से भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। ये देश हैं बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान.सरकार का दावा है कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोग उपर्युक्त देशों में अल्पसंख्यक हैं। इन देशों में इनका उत्पीड़न होता है। इसलिए भारत में पांच साल पूरा कर चुके इन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। मालूम हो कि पहले भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल की शर्त थी।