खबर लहरिया Blog 15 साल बाद फिर शूरू हुई कुश्ती प्रतियोगिता

15 साल बाद फिर शूरू हुई कुश्ती प्रतियोगिता

चित्रकूट जिले में 15 सालों बाद फिर से हो रहा है दंगल (कुश्ती) का आयोजन। यह आयोजन 11 और 12 अक्टूबर को परसौंजा गाँव में आयोजित होना है।

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जी हां मै इस लेख में बात कर रही हूँ दंगल खेल की जिसे लोग कुश्ती भी कहते हैं। चित्रकूट जिले के गाँव परसौंजा में 11 अक्तूबर से कुश्ती प्रतियोगिता शुरू होने वाली है। 151 साल पुराने कुश्ती का आयोजन परसौंजा के पूर्व प्रधान राजकरण के बाबा राजदेव द्वारा शुरू किया गया था। 15 साल बाद अब फिर से 11 और 12 अक्तूबर को राजकरण द्वारा इस कुश्ती का आयोजन किया जा रहा है।

कोई भी त्योहार हो गांव में मेला लगा हो और कुश्ती का खेल न हो तो मेले का मजा ही अधूरा होता है। गांव में मेला लगता है उसमें तो महिलाएं खूब खरीदारी करती नज़र आती हैं लेकिन कुश्ती के ग्राउंड में कही भी कोई महिला कुश्ती देखती नहीं दिखती। क्योंकि समाज ने महिलाओं के लिए कुश्ती देखना मना किया हुआ है।

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तैयारी में जुटे जवान

राजकरण पाण्डेय पूर्व प्रधान परसौंजा ने बताया कि उनके बाबा महादेव पाण्डेय ने 150 साल पहले गाँव में कुश्ती प्रतियोगिता शूरू की गई थी। तबसे कुश्ती चली आ रही है। राजकरण के बाबा के बाद उनके पिताजी कुश्ती कराते थे। राजकरण पाण्डेय का कहना है कि उनके पिता महेश प्रसाद पाण्डेय की 15 पहले हो गई थी इसलिए कुश्ती बंद हो गई थी अब इस साल से उन्होंने फिर शुरूआत की है। आगे भी उनके परिवार के लोग कुश्ती का कार्यक्रम इसी तरह कराते रहेंगे। इसमें सभी गांव वालों का सहयोग है सभी बुजुर्ग जवान मिल कर तैयारी कर रहें हैं।

व्हाट्सएप, फेसबुक के माध्यम से हो रहा प्रचार

राहुल पाण्डेय ने बताया कि यह कार्यक्रम 15 साल बाद हो रहा है इसलिए अभी इसकी जानकारी लोगों को कम है। पहले जब बाबा जी कराते थे तो बाँदा-चित्रकूट जिले के अलावा भी दूर-दूर से लोग कुश्ती देखने आते थे। और वो खुद बांदा चित्रकूट कुश्ती चैपियन थे। सैकड़ों गांव के लोग बहुत ही उत्साह के साथ कुश्ती देखने आते थे। इसलिए वह चाहते चाहते हैं कि फिर से उसी तरह लोगों का जमावड़ा लगे। ज्यादा कन्टेन्ट न होने के चलते फेसबुक वाट्सएप के जरिए इस कुश्ती के आयोजन का प्रचार किया है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ सके। वह चाहते हैं कि हर जगह के पहलवान आएं और जो भी पहलवान यहां कुश्ती देखने या कुश्ती लड़ने आते हैं तो उनकी खाने रहने की पूरी व्यवस्था की जाएगी। साथ ही जीतने वाले को इनाम भी मिलेगा। इनाम की राशि अभी तय नहीं है पहलवान को देखकर ही इनाम की धनराशि तय की जाती है।

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महिलाओं को नहीं है कुश्ती देखने की आजादी

जब कुश्ती के खेल को देखने को लेकर औदहा की रहने वाली पूनम से बात की तो उन्होंने दबे मन से बताया कि मन तो बहुत होता है कुश्ती देखने का, पर उनको कुश्ती देखने की आजादी नहीं है। वह दूर से ही अवाज सुनती हैं कौन जीता कौन हारा। वहां तक जाने की हिम्मत नही होती। उनको शर्म आती है क्योंकि सारे पुरूष ही होते हैं।

वीरों की धरती कहे जाने वाले बुंदेलखंड में दंगल की परम्परा काफी पुरानी है। एक तरह से कहा जाए तो बुंदेलखंड ने आज के आधुनिक युग में लुप्त होते इस पारम्परिक खेल को जिन्दा रखा है लेकिन महिलाओं से ऐसी बाते सुनकर दुःख होता है। क्यों महिलाओं के लिए यह मंच नहीं है? क्यों महिलाओं के बारे में नहीं सोचा जाता? क्या महिलाओं के लिए इस खेल को देखने की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए? जब महिलाएं पुरूषों से कंधे से कन्धा मिलाकर हर काम को सफल बना रही हैं तो इस खेल को देखने की अनुमति आखिर क्यों नहीं है?

इस खबर की रिपोर्टिंग नाज़नी रिज़वी द्वारा की गयी है।

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