“जब से स्कूल की छत गिरी है, तब से एक ही कमरे में बैठते हैं। गर्मी में बेहद तकलीफ होती है, बस्ता रखने की भी जगह नहीं होती। बारिश में कभी पेड़ के नीचे बैठना पड़ता है और कभी स्कूल की छुट्टी कर दी जाती है।”
रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – सुचित्रा
उत्तर प्रदेश का जिला चित्रकूट के रामनगर ब्लॉक के मटियारा गांव का प्राइमरी स्कूल बदहाल स्थिति में है। बीते तीन वर्षों से स्कूल की छत और दीवारें जर्जर थीं, लेकिन प्रशासन ने समय रहते कोई मरम्मत कार्य नहीं कराया। नतीजा यह हुआ कि बारिश के मौसम में स्कूल की छत और दीवारें भरभराकर गिर गईं। बड़ा हादसा होने से टल गया क्योंकि यह घटना रात में हुई, वरना किसी बच्चे की जान भी जा सकती थी। अब स्कूल में केवल एक ही कमरा बचा है, जिसमें कक्षा 3, 4 और 5 के बच्चे एक साथ बैठने को मजबूर हैं।
“बारिश हो तो घर भेज देते हैं”
छात्र अंजना और रंजीत इसी विद्यालय में तीन साल से पढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब से स्कूल की छत गिरी है, तब से एक ही कमरे में बैठते हैं। गर्मी में बेहद तकलीफ होती है, बस्ता रखने की भी जगह नहीं होती। बारिश में कभी पेड़ के नीचे बैठना पड़ता है और कभी स्कूल की छुट्टी कर दी जाती है। किताबें, कॉपियां, कपड़े सब भीग जाते हैं, जिससे पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है।
जर्जर स्कूल में पढ़ना मज़बूरी
कक्षा 2 की छात्रा सपना कहती है, “हम लोग पेड़ के नीचे पढ़ाई करते हैं। हर साल कहा जाता है कि इस साल स्कूल बन जाएगा, पर कोई सुनवाई नहीं होती।” कक्षा 3 के छात्र रवि बताते हैं कि उनके माता-पिता मजदूरी करते हैं। उनके पास निजी स्कूल में पढ़ने के लिए उतने पैसे नहीं है।”
स्कूल जर्जर तो पढ़ने में कैसे लगे ध्यान
कक्षा 5 की छात्रा चांदनी का कहना है कि स्कूल में कोई बाउंड्री नहीं है, जानवर अंदर आ जाते हैं और गंदगी फैला देते हैं। स्कूल की दीवारों में सांप और बिच्छू घुस आते हैं। दरवाजे-खिड़कियां भी टूटी हुई हैं। “जब बारिश होती है तो आधा ध्यान पढ़ाई में और आधा छत पर रहता है कि कहीं गिर न जाए।” चांदनी की मां सुमन बताती हैं कि स्कूल जब बना था तभी घटिया निर्माण से बना था।
कई बार की शिकायत सुनवाई नहीं
गांव की कुल आबादी लगभग तीन हजार है, जबकि मटियारा मजरा की आबादी करीब एक हजार है। गांव के लोगों और ग्राम पंचायत सदस्य सुमन ने बताया कि यह स्कूल 2009 में बना था और तब से इसकी स्थिति खराब रही है। वर्ष 2023 में भी कई बार लिखित शिकायतें की गईं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
गांव वालों ने कई बार बीआरसी (ब्लॉक रिसोर्स सेंटर) को लिखित में शिकायत दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। चुनाव के समय नेता वादे करते हैं कि स्कूल का सुधार कराया जाएगा, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई नहीं आता।
शिक्षक भी नहीं पढ़ाना चाहते इस स्कूल में
विद्यालय के इंचार्ज प्रधानाध्यापक शिवाकांत पांडे ने बताया कि बच्चे खतरे के बीच पढ़ते हैं, यही वजह है कि एक शिक्षक ट्रांसफर करा कर जा चुके हैं। हमारे पास कुल 101 छात्र हैं। हमने बीआरसी को फिर से लिखित में दिया है कि स्कूल की मरम्मत करवाई जाए। अभी तीन दिन पहले ही एक और शिकायत भेजी गई है।”
उन्होंने यह भी बताया कि जब शिकायत की जाती है, तो अधिकारी कहते हैं कि टिन शेड लगवा देंगे, पर आज तक कुछ नहीं हुआ।
दोबारा स्कूल निर्माण की योजना
रामनगर शंकुल प्रभारी प्रमोद द्विवेदी ने बताया कि मटियारा विद्यालय गिर चुके हैं। स्कूल को नीलामी प्रक्रिया में डाला गया था, लेकिन निर्माण की कीमत 8 लाख रुपये बताई गई, जिसे सरकार ने मंज़ूरी नहीं दी। अब दोबारा मीटिंग होगी और फिर से निर्माण प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
उन्होंने बताया कि स्कूल पहले ठेकेदार द्वारा बनाया गया था, जो कि बेहद घटिया निर्माण था। अब दोबारा निर्माण की योजना है। “हमने बीएसए और जिलाधिकारी तक लिखित में दिया है। कोशिश है कि जल्द ही नया स्कूल बने।”
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ बच्चों को कंपोजिट विद्यालय में समायोजित करने की योजना थी, लेकिन वह स्कूल दूर है, इसलिए छोटे बच्चों के लिए उचित नहीं है।
मटियारा गांव का यह प्राथमिक विद्यालय उपेक्षा और लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है। तीन साल से बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। प्रशासन ने स्कूल निर्माण के बारे में अब तक कोई कार्यवाही क्यों की? क्या इस तरह के परिवेश में बच्चे अच्छी और उचित शिक्षा प्राप्त कर पाएंगे? यदि अब भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह न सिर्फ बच्चों की शिक्षा बल्कि उनकी सुरक्षा के साथ भी बड़ा खिलवाड़ होगा।
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