चित्रकूट ज़िले के मऊ ब्लॉक के मवई कलां, बरवार, ताड़ी, भिख्खी का डेरा कौसकी समेत लगभग दस गांवों के लोग एक अधूरे पड़े पुल की वजह से रोज़ाना भारी परेशानी झेल रहे हैं। कौसकी नदी पर बन रहा यह पुल महीनों से अधूरा पड़ा है।
रिपोर्ट, फोटो – सुनीता देवी, लेखन – रचना
देश की तरक़्क़ी के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों की हकीक़त आज भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में झुलस रही है। सड़क, पुल और स्वास्थ्य सेवाएं ये वो ज़रूरत की चीजें हैं जिनके बिना किसी भी इंसान की रोज़मर्रा की जिंदगी पटरी पर नहीं आ सकती। लेकिन उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले में रहने वाले हज़ारों लोग आज भी एक अधूरे पुल की वजह से भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। महीनों से पुल का निर्माण बंद पड़ा है और ग्रामीण बरसात हो या धूप हर दिन जोखिम उठाकर आने-जाने को मजबूर हैं। कोई बीमार हो जाए प्रसव वाली महिला हो या स्कूल जाने वाले बच्चे सभी के लिए यह पुल किसी न किसी दिन जान का सौदा बन जाता है।
चित्रकूट ज़िले के मऊ ब्लॉक के मवई कलां, बरवार, ताड़ी, भिख्खी का डेरा कौसकी समेत लगभग दस गांवों के लोग एक अधूरे पड़े पुल की वजह से रोज़ाना भारी परेशानी झेल रहे हैं। कौसकी नदी पर बन रहा यह पुल महीनों से अधूरा पड़ा है। न बारिश में काम हुआ न अब सूखे मौसम में काम शुरू हुआ है।
इस पुल के कारण चार पहिया वाहन नहीं निकल पाते, एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती और कई बार बीमार मरीजों और गर्भवती महिलाओं को जान जोखिम में डालकर पैदल नदी पार करनी पड़ती है।
बीमार हो या डिलीवरी गाड़ी निकल ही नहीं पाती
बरसात के दिनों में तो हाल इतना खराब रहता है कि पानी बढ़ते ही रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है। रास्ता इतना खराब हो जाता है कि एमरजेंसी के समय कोई गाड़ी नहीं चला पता है। लोगों को बीमारी के समय अस्पताल जाने में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। गांव के ओमप्रकाश बताते हैं कि बारिश के बाद काम पूरी तरह बंद पड़ा है। अब सूखा मौसम है फिर भी काम शुरू नहीं हुआ। गांव वालों को 10 किलोमीटर का चक्कर काटकर मंडौर रास्ते से जाना पड़ता है। जहां 10 मिनट में मऊ पहुंच जाते थे अब एक घंटे लगता है।
मवई कलांगांव के सुक्खी बताते हैं कि पुल की कोठी (पिलर) तो बन गई है लेकिन आगे का काम पूरी तरह रुक गया है। बरसात शुरू होते ही पुल का रास्ता बंद हो गया। तब से हम रोज़ 10 किलोमीटर पैदल आते–जाते हैं। जहाँ से पुल बन रहा है बगल में कोई कच्चा रास्ता भी नहीं बनाया गया। चार पहिया वाहन बिलकुल नहीं निकल पाता। सबसे ज़्यादा दिक्कत बुज़ुर्ग और बीमार लोगों को होती है।
स्कूल के बच्चे हफ़्तों तक पढ़ने नहीं जा पाते
स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। बरसात के महीनों में जब रास्ता पानी से भर जाता है तो कई-कई दिनों तक बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। ई-रिक्शा और टेंपो कई बार पलट चुके हैं जिससे कई बच्चों और यात्रियों को चोटें भी लगीं।
गांव के अर्पित ने बताया “जब पुल बनना शुरू हुआ था तो हम बहुत खुश हुए थे। लगा था बाढ़ का संकट कम होगा। लेकिन अब उसी पुल ने मुसीबत बढ़ा दी है। बारिश में स्कूल के बच्चे हफ्तों स्कूल नहीं जा पाए क्योंकि कोई रास्ता ही नहीं था।” वे आगे कहते हैं जो कच्चा रास्ता बनाया गया है वह इतना खतरनाक है कि कई बार टेंपो और ई-रिक्शा पलट चुके हैं। लोगों के हाथ-पैर टूट चुके हैं। गांव में लोग कहते हैं कि दो करोड़ रुपये की लागत से पुल बन रहा था लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि पैसा खत्म हो गया और काम भी बंद हो गया।
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच मुश्किल
बरवार गांव के रजोल कहते हैं ठेकेदार जगदीश पटेल को पुल का काम मिला था पर कई महीनों से काम बंद है। अब सूखा मौसम है अभी काम शुरू हो सकता है। अगर आगे बारिश शुरू हुई तो फिर से चार महीने तक रास्ता बंद रहेगा। मरीज फँस जाए तो उसकी मौत पक्की है।
उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही एक ऑटो पलट गया था और एक महिला का हाथ टूट गया। सड़क इतनी टूटी है कि वाहन पलटने का खतरा हर समय बना रहता है। बीमार लोगों और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाना यहां के परिवारों के लिए सबसे बड़ा डर बन चुका है। चार पहिया वाहन अधूरे पुल पर नहीं जा सकते और अगर रास्ते में बारिश या बाढ़ आ जाए तो मरीज बीच रास्ते में ही फँस जाता है। यह जोखिम ग्रामीणों को लगातार मानसिक तनाव में रखता है।
“विधायक को कई बार बताया पर कोई आवाज नहीं सुनता”
रानी बताती हैं अगर पुल पूरा नहीं बन रहा है तो कम से कम पक्की सड़क ही बना दें। रोज़ हादसे हो रहे हैं। हमने कई बार विधायक को बताया पर कोई सुनवाई नहीं होती।
सरकारें हर चुनाव में विकास के बड़े-बड़े वादे करती हैं लेकिन इन गांवों की हालत बताती है कि जमीनी हकीकत उन वादों से कितनी दूर है। यह पुल सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं बल्कि ग्रामीणों की जिंदगी सुधारने का रास्ता है जो अधूरा होने की वजह से उनकी समस्याओं को और बढ़ा रहा है।
विधायक ने क्या कहा ?
मऊ–मानिकपुर विधायक अभिनाश से बात करने पर उन्होने कहा कि यह मामला हमारे संज्ञान में आया है। हम ठेकेदार से बात करेंगे। अब सूखा मौसम है इसलिए काम शुरू होना चाहिए। पहले इसी क्षेत्र में एक दूसरा पुल धस गया था जिसकी वजह से कई इंजीनियर निलंबित हुए थे। शायद उसी वजह से काम रुका हो। हम जल्द समाधान निकालेंगे।
देश जहां विकास के दावे करता है वहीं चित्रकूट के ये दस गाँव एक साधारण पुल के लिए सालों से तरस रहे हैं।
यह सिर्फ एक पुल नहीं ये स्कूल से लेकर अस्पताल, खेती से लेकर रोज़ के जीवन तक, हर रास्ते की सांस है। जब लोग एक पुल के लिए इतना परेशान हो रहे हों तो शिक्षा, बेरोज़गारी और गरीबों की बात कैसे होगी? गांव वाले अब भी उम्मीद में हैं कि कोई उनकी आवाज़ सुनेगा।
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