चम्बल की घाटियों में छिपे डाकुओं के गैंग जिनसे आज भी दूर-दराज़ बैठे लोगों की रूह कांपती है, लेकिन आज से 20 साल पहले एक मामूली सी औरत ने इन डाकुओं को लोहे के चने चबवा दिए।
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पाठा की शेरनी के नाम से देशभर में मशहूर रामलली की बहादुरी की कहानी किसी से छिपी नहीं है। एक युवक को डाकुओं की कैद से छुड़ाने की रामलली की कहानी की चर्चाएं न्यूज़ से लेकर फिल्म जगत तक में होती रहती हैं। यह बहादुर महिला जो दलित जाति से है वो पाठा के लिए मिसाल बन गई 2001 में जब ददुआ डाकू का आतंक था हर तरफ ददुआ का खौफ था, इस दौरान एमपी-यूपी बॉर्डर के पास सतना ज़िले में एक बैंक मैनेजर के बेटे कोददुआ गैंग के लोगों ने किडनैप कर लिया। 7 दिन उसे जंगल में बांध कर रखा और आठवें दिन किसी तरह वो बच्चा डाकूओं की पकड़ से छूट कर कर रामलली के घर पहुंचा।
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हरिजनपुर गाँव जो जंगल में ही पड़ता है, उस युवक को सामने रामलली का घर दिखा और वो वहीं अपने बचाव के लिए घुंस गया। रामलली ने न ही सिर्फ उस युवक को डाकुओं के चंगुल से बचाया बल्कि डाकुओं को लाठी-डंडों से मार भगाया।
हाल ही में रामलली ने हमसे मुलाकात कर अपनी बहादुरी के उसी किस्से को याद किया। रोमांच, सनसनी, और रोंगटे खड़े कर देने वाली ये आपबीती किसी हिंदी सिनेमा से कम नहीं है।
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कंधे पर गोलियों से लैस बन्दूक लिए रामलली आज 20 साल बाद भी आपको पाठा इलाके में घूमती दिख जाएँगी। शेरनी का एकमात्र लक्ष्य अपने गाँव की रक्षा करना है, और इस बीच भले ही कितना भी ताकतवर डाकू आ जाए, उन्हें पता ही कि वो पीछे नहीं हटने वाली।
पाठा की शेरनी के निजी ज़िंदगी से जुड़े कुछ बहुत महत्वपूर्ण लम्हों के बारे में जानने के लिए जुड़े रहिए हमारे साथ। अगले हफ्ते रामलली फिर हाज़िर होंगी अपनी जीवनी के कुछ अहम पन्नों के साथ।
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