खबर लहरिया औरतें काम पर ‘संघर्ष का रूप बदला लेकिन संघर्ष नहीं’- नाज़नी रिज़वी जांबाज़ पत्रकार

‘संघर्ष का रूप बदला लेकिन संघर्ष नहीं’- नाज़नी रिज़वी जांबाज़ पत्रकार

महिलाओं की जिन्दगी संघर्ष और चुनौतियों से भरी होती है और वह इस कश्मकश में इतना गम हो जाती हैं कि आगे बढ़कर अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाती। लेकिन समाज में बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जो हर परीक्षा हर चुनौती हर संघर्ष को पार करके आगे बढ़ती हैं और अपने मन में हौसला रख कर उस कामयाबी को हासिल करती हैं जिनकी वह असली हकदार है। ऐसी ही एक जांबाज महिला पत्रकार है नाजनी जिनके संघर्ष की कहानी बचपन में ही शुरू हो गई थी, पर खत्म आज भी नहीं हुई है लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। हां संघर्ष के रूप भले ही बदल गए हो पर चुनौतियां आज भी हैं। चलिए जानते हैं उन्हीं से कि उन्होंने बचपन से लेकर अब तक किस-किस तरह के संघर्ष और चुनौतियों के सफर को पार किया है।

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नाजनी बताती हैं कि बचपन से ही उनकी मां उनको छोड़कर चली गई थी वह तीन भाई बहन थे। मां के छोड़कर जाने के पीछे की भी एक कहानी थी की मां को उनके पिता बहुत ज्यादा प्रताड़ित करते थे।नाजनी के बुआ की शादी उनके मामा से हुई थी और बुआ उनकी खत्म हो गई थी इसलिए, उनके पापा और पूरे परिवार के अंदर बदले की आग जल रही थी और इस आग में उनकी मां के साथ मारपीट होती रही। कई तरह की हिंसा होती और इस हिंसा को नाजनी देखती वहीं से उनके संघर्ष की कहानी शुरू हो गई थी। वह 13 साल की उम्र से ही घर से बाहर निकल गई। कभी लखनऊ कभी बनारस कभी मुरादाबाद। इस तरह उनकी जिंदगी कटती रही और जिनके साथ वह रही उन्होंने कुछ दिन तो उन्हें बहुत अच्छे से पाला पोसा लेकिन कुछ दिन बाद उनकी शादी एक बुजुर्ग से करानी चाहिए लेकिन नाजनी तो हमेशा से मुंहफट और तेज थी क्योंकि उन्होंने अपने मां के संघर्ष की कहानी देखी थी। भले ही छोटी होने के कारण साथ नहीं दे पाती थी। इस लिए उस शादी के लिए उन्होंने मना कर दिया और फिर एक दूसरे लड़के से शादी की।

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नाजनी कहती हैं जब उन्होंने शादी की तब उन्हें शादी का मतलब भी नहीं पता था। पर ससुराल में पति ने उसके साथ बहुत हिंसा की। उस हिंसा को सहते सहते 5 बच्चे भी हुए अब उनके पालन पोषण करने के लिए दिक्कत होने लगी। 2007 में तो उनके सामने एक ऐसी मुसीबत खड़ी हो गई कि कुछ भी काम मिले लेकिन मिल जाए ताकि वह अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी का गुजारा कर सकें। फिलहाल उस समय उन्हें खबर लहरिया में काम मिला और आज भी वह खबर लहरिया में काम कर रही हैं। वह कहती हैं कि खबर लहरिया एक ऐसा मंच है जो हम जैसी महिलाओं को जगह देता है क्योंकि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह पत्रकार बनेगी क्योंकि इतनी शिक्षा ही नहीं थी उनके पास फिर भी आज वह खुश हैं। ज्यादा तो नहीं लेकिन फिर भी आर्थिक स्थिति पहले की अपेक्षा काफी ठीक ठाक है और अपने मन का खा सकती हैं पहन सकती हैं।

सफर और संघर्ष आज भी जारी है उन्होंने बताया कि इनके मायने बदल गए हैं समय के साथ लेकिन संघर्ष और चुनौतियां अभी भी सामने खड़ी है। जिनको वह हर दिन पार करती हैं और आगे भी शायद करती रहेंगी।

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