खबर लहरिया Blog चित्रकूट: बाढ़ से रामघाट के किनारे दुकानों का नुकसान, सैकड़ों व्यापारी को मुआवजे का इंतजार

चित्रकूट: बाढ़ से रामघाट के किनारे दुकानों का नुकसान, सैकड़ों व्यापारी को मुआवजे का इंतजार

‘अगर प्रशासन ने समय पर अलर्ट किया होता, तो शायद सामान बचाया जा सकता था। छत तक पानी भर गया था। जब तक हमें पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सामान बचाने की कोशिश की, लेकिन उस समय कोई साधन उपलब्ध नहीं था न रिक्शा, न ऑटो, कुछ भी नहीं।”

पीतल के सामान की दुकान का बाढ़ से नुकसान

 

रिपोर्ट -नाज़नी, लेखन – सुचित्रा 

यूपी के इलाकों में बीते कई दिनों से बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। यूपी में प्रयागराज, बुंदेलखंड, वाराणसी, बाँदा और चित्रकूट जैसे कई जिले बाढ़ की चपेट में है और अब तक तेज बारिश के अलर्ट पर है। लगातार बारिश से घर, नदियां, फसल, स्कूल सब पानी पानी हो गया। चित्रकूट के तरौंहा में सैकड़ों घर डूब गए लाखों का नुकसान हुआ। दो दिन आवागमन बाधित रहा। चित्रकूट के पहाड़ी ब्लॉक के दुवारी गांव में बारिश की वजह से घर की कच्ची दीवार गिरने से एक व्यक्ति की मौत हो गई। खरौद गांव में लगभग 50 कच्चे मकान गिर गये, ऐसे दर्जनों गांवों में इस बारिश ने अपना कहर दिखाया। वहीं सबसे ज्यादा नुक्सान चित्रकूट के पर्यटक स्थल रामघाट में सैकड़ों व्यापारियों की दुकान का हुआ।

12 जुलाई 2025 की रात बारिश इतनी हुई कि मंदाकिनी नदी के खामोश घाट पर सैलाब का मंजर था। रामघाट में जहां आम दिनों में श्रद्धालुओं की भीड़, हर शाम घंटियों की आवाज़ और दुकानों पर श्रद्धालूओं की चहल-पहल हुआ करती थी, आज चारों तरफ पानी दिखाई दे रहा है। इस बाढ़ ने कई दुकानों की दीवारें गिरा दी। सब जगह कीचड़ से सना सामान हर तरफ दिखाई दे रहा है। इस कीचड़ में ही कुछ समान को बचाने की उम्मीद में लोग सामान निकाल रहे हैं।

बिजली के खम्बे में लटका हुआ कूड़ा सबूत है पानी कहां तक भरा हुआ था।

इस बाढ़ ने निर्मोही अखाड़े की दिवार और एक पीपल के पेड़ का चबूतरा जो लगभग पंद्रह फुट ऊंचाई पर था गिरा दिया। बाढ़ अपने साथ ले गया सैकड़ों परिवारों की रोज़ी-रोटी, सालों की मेहनत और आने वाले भविष्य की ज़िम्मेदारी।

अचानक आई बाढ़ और मौत

52 वर्षीय नत्थू प्रसाद गुप्ता की मौत इस बाढ़ की सबसे दर्दनाक घटना थी। नत्थू प्रसाद गुप्ता रामघाट में लगभग 40 साल से रहते थे। वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे। मृतक नत्थू प्रसाद गुप्ता के छोटे भाई गंगा प्रसाद गुप्ता ने बताया कि “शाम तक सब ठीक था, अचानक 11 बजे से हल्की बारिश होने लगी तो हमने दुकान बंद कर दी। दुकान के अंदर ही एक और कमरा है जिसमें वह 40 साल से रहते हैं। वहीं दुकान है और वहीं मकान है। अंदर सबलोग सोने चले गए। अचानक 12 बजे लोग चिल्लाने लगे कि उठो पानी बढ़ रहा है। जब तक हम बाहर आए पानी नदी की सीढ़ी पार कर चुका था। पानी दुकान में बढ़ने लगा, हम सब मिलकर जल्दी-जल्दी सामान मंदिर की छत के ऊपर पहुंचाया, कुछ रह भी गया। सबको ऊपर बैठा दिया था, ताकि कोई नीचे न जाए। लेकिन जीवन भर की कमाई वहीं नीचे रह गई थी। कब नत्थू प्रसाद गुप्ता फिर नीचे चले गए, पता ही नहीं चला। क्योंकि हम सब ऊपर आ चुके थे, तो लगा कि शायद कहीं बैठे होंगे। इतनी भीड़-भाड़ थी कि ध्यान नहीं गया। सुबह तक जब वो दिखाई नहीं दिए, तो ढूंढना शुरू किया। वो कहीं नहीं मिले। चारों ओर पानी भरा हुआ था, दुकान तक जा नहीं सकते थे।

नत्थू प्रसाद के भाई गंगा प्रसाद की तस्वीर (फोटो साभार: खबर लहरिया)

13 जुलाई को, जब दोपहर करीब तीन बजे पानी कम होने लगा, तो शाम को दुकान गए। वहीं मृत अवस्था में पड़े मिले। 16 जुलाई को जल शक्ति मंत्री श्री स्वतंत्र देव सिंह द्वारा चार लाख रुपये का चेक मिला। लेकिन जान की भरपाई तो कभी नहीं हो सकती।

नत्थू प्रसाद गुप्ता की पत्नी शांति देवी रोते-रोते बताती हैं ‘मेरी सारी जिंदगी की पूंजी चली गई। पति भी चला गया, और दुकान का नुकसान, गृहस्थी का सारा सामान सब कुछ बह गया। मेरी एक किलो चांदी और ढाई ग्राम सोना भी वहीं रखा था, वो भी बह गया। किसी तरह मेहनत-मजदूरी करके दोबारा दुकान हो जाएगी, लेकिन मेरा पति अब कभी वापस नहीं आएगा। अभी तो धर्मशाला में रह रहे हैं, कोई ठिकाना नहीं है हमारा।

मृतक नत्थू प्रसाद गुप्ता की पत्नी शांति देवी

सिर्फ नत्थू नहीं, सैकड़ों व्यापारी आज सड़क पर

रामघाट के किनारे लगभग 200 से अधिक दुकानें हैं। इन दुकानों में धार्मिक सामग्री, फूल, फोटो फ्रेम, कॉस्मेटिक सामान, मूर्तियाँ, पूजा की सामग्री, प्रसाद, अगरबत्तियाँ, चाय-नाश्ते की दुकानें और छोटे-छोटे गेस्ट हाउस चलते हैं।
इनका मुख्य व्यापार स्थानीय श्रद्धालुओं और बाहर से आने वाले तीर्थ यात्रियों पर निर्भर है।

व्यापार का सारा सामान बाढ़ में बहा

अशीष गुप्ता कहते हैं ‘मेरी दुकान यहां पर पाँच पीढ़ियों से है, लेकिन ऐसी बर्बादी पहले कभी नहीं देखी। 2003 में भी बाढ़ आई थी, लेकिन तब थोड़ा-बहुत सामान बचा लिया था। इस बार बाढ़ रात में आई, लोग अपनी दुकानें बंद करके घर चले गए थे। रात 3 बजे पता चला कि बाढ़ आ रही है। 3:40 बजे जब हम यहां पहुंचे, तो देखा कि हम अपनी दुकानों से बाहर हो चुके थे। सड़क पर पानी बह रहा था। जहां कभी हम खड़े रहते थे, वहां अब कुछ भी नहीं बचा था। बस अपना सामान बहते हुए देखते रह गए।

प्रशासन से कोई मदद नहीं

अब तक प्रशासन के किसी भी अधिकारी ने आकर हमसे हाल-चाल तक नहीं पूछा। हमें कोई मुआवजा नहीं दिया गया। न ही वहां से कोई बात की गई। अब जाकर जल शक्ति मंत्री आए हैं, लेकिन राहत किट भी व्यापारियों को नहीं मिली। वो भी इधर-उधर के, इस इलाके से लगे गांवों के लोगों को बांट दी गई। बाढ़ का भी फायदा उठा लिया, क्योंकि चुनाव आने वाले हैं। वोटरों को खुश करने के लिए किटें वहां भेज दी गईं।

मदद की मांग

लोगों ने बताया कि हमारे पास तो बीमा भी नहीं है। अगर बीमा होता, तो शायद कुछ राहत मिल जाती। नदी के 200 मीटर के दायरे में बीमा नहीं मिलता। प्रशासन हमारी जितनी हानि हुई है, उसकी भरपाई तो नहीं कर सकता, लेकिन अगर थोड़ी मदद मिल जाए, तो हम फिर से अपने काम को खड़ा कर सकते हैं। हमने बहुत कर्ज लेकर दुकान में सामान भरवाया था वो सब बर्बाद हो गया। मेरी तो पीतल के सामान की दुकान है और करीब 10 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।
सिंदूर और रंग की दुकान

घाट किनारे बैठे एक दुकानदार बताते हैं ‘मेरी तो 40 साल पुरानी छोटी-सी दुकान है, सिंदूर और रंग की। करीब 10 हजार रुपये का नुकसान हो गया। कुछ सामान बह गया, कुछ बचा है। जो नीचे रखा था, उसका भी कुछ कहा नहीं जा सकता। अगर बाढ़ आने का पहले से पता होता, तो शायद बचा लेते लेकिन कुछ भी नहीं बचा पाए।

कॉस्मेटिक की दुकान

नीरज शर्मा की दुकान घाट से थोड़ा अलग है। वे पिछले 9 साल से कॉस्मेटिक की दुकान चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बाढ़ में लगभग 6 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। उनका कहना है ‘अगर प्रशासन ने समय पर अलर्ट किया होता, तो शायद सामान बचाया जा सकता था। छत तक पानी भर गया था। जब तक हमें पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सामान बचाने की कोशिश की, लेकिन उस समय कोई साधन उपलब्ध नहीं था न रिक्शा, न ऑटो, कुछ भी नहीं। हर ओर पानी ही पानी था और पानी तेजी से बढ़ता जा रहा था। जान-माल दोनों खतरे में थे, फिर भी जान की परवाह न करते हुए हमने सामान बचाने की कोशिश की।

नीरज शर्मा कास्मेटिक दुकान

नीरज शर्मा ने बताया कि एक नाव वाला मिला, उसने सामान ले जाने के लिए 12,000 रुपये मांगे। हम तैयार हो गए, लेकिन हर कोई अपना सामान बचाना चाहता था। सामने वाले दुकानदार ने उसे 15,000 रुपये दे दिए, तो वह हमारा सामान छोड़कर उनकी ओर चला गया।

कर्ज लेकर दुकान बनाई थी अब कहां से भरेंगे?

नीरज आगे बताते हैं कि उन्होंने कर्ज लेकर दुकान में पैसा लगाया था। अब वे व्यापारी पैसा मांगने लगे हैं, ब्याज बढ़ा रहे हैं। जब रोज़गार ही ठप हो गया है, तो कर्ज कहाँ से चुकाएँ?

चप्पल की दुकान का नुकसान

चप्पल व्यापारी शारदा प्रसाद बताते हैं कि वे पिछले 15 साल से दुकान चला रहे हैं। इस बाढ़ में उनका लगभग 10 लाख रुपये का नुकसान हो गया है। मेरी दो दुकानें थीं – एक घाट के किनारे और एक सड़क के किनारे। अब मेरे पास कुछ नहीं बचा। सब कुछ बह गया, बर्बाद हो गया। खाने तक के लिए कुछ नहीं बचा है। कर्ज लेकर किसी तरह काम चला रहे थे, अब वो कर्ज कैसे चुकाएँगे? 15 साल में ऐसी बाढ़ कभी नहीं देखी। 2016-17 में बाढ़ आई थी, लेकिन इतनी भयंकर नहीं थी। तब सामान कुछ हद तक बचा लिया था। मेरा घर भी रामघाट में है दोनों दुकानें और घर सब डूब गए। अब तो खाने-पीने तक के लिए कुछ नहीं बचा।

चप्पल व्यापारी शारदा प्रसाद

भूखे-प्यासे किसी तरह बचे हुए सामान को समेट रहे हैं। कोई सुनने वाला नहीं है, न कोई देने वाला। घर का फ्रिज, कूलर, टीवी सब बह गया। यहाँ तक कि खाने की सामग्री भी नहीं बची। मंत्री जी भी आए थे, लेकिन उन्होंने हमसे कुछ नहीं पूछा, न यह पूछा कि हम भूखे हैं या प्यासे। जब वोट लेने का समय आता है, तो सब हाथ-पैर जोड़ते हैं। अब, जब हम बर्बाद हो गए हैं, तो कोई नेता, मंत्री, न ही किसी पार्टी का कोई व्यक्ति आया है। यहाँ तक कि चेयरमैन और सभासद तक नहीं पहुंचे। अब हम किससे उम्मीद करें?

मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन

दुकानदार इतने परेशान हो गए कि उन्हें अब प्रशासन से अब कोई उम्मीद नहीं है। उन्होंने कहा 15 जुलाई को हमने जिलाधिकारी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम ज्ञापन सौंपा। प्रशासन सिर्फ आश्वासन देता है और हमें लग रहा है कि इस बार भी सिर्फ आश्वासन ही मिलेगा और कुछ नहीं।

बीमा योजना के लाभ से वंचित

सबसे हैरानी की बात यह है कि इन दुकानदारों को किसी भी बीमा योजना का लाभ नहीं मिल सकता। वजह यह है कि बीमा पॉलिसी के अनुसार, अगर कोई दुकान नदी के 200 मीटर के भीतर स्थित है, तो वह ‘प्राकृतिक जोखिम क्षेत्र’ (Natural Hazard Zone) मानी जाती है और बीमा के लिए पात्र नहीं होती।
व्यापारियों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बाढ़ से पहले न तो कोई अलर्ट जारी किया गया, न कोई सार्वजनिक घोषणा, न सूचना और न ही चेतावनी दी गई।

चित्रकूट के रामघाट क्षेत्र के ये व्यापारी अधिकतर उधार लेकर कारोबार कर रहे थे। कुछ ने बेटी की शादी के लिए पैसे जोड़े थे, तो कुछ का पूरा साल इसी सावन के सीजन पर निर्भर था। अब आने वाले कई महीने इन्हें अपना कारोबार दोबारा खड़ा करने में सालों लगेंगे।

सरकारी रवैया वही पुराना और घिसा-पिटा है, जांच के बाद निर्णय लिया जाएगा।’ बाढ़ के पांच दिन बीत जाने के बावजूद ज़िला प्रशासन ने न तो कोई राहत कैंप संचालित किया, न व्यापारियों को राहत सामग्री दी और न ही किसी आर्थिक सहायता की स्पष्ट घोषणा की है।

बाढ़ में मुआवजे के लिए दुकानों का सर्वे

लेखपाल आलोक मिश्रा ने बताया कि फिलहाल सर्वेक्षण कार्य जारी है। अब तक लगभग 80 दुकानों का सर्वे किया जा चुका है और शेष दुकानों का सर्वेक्षण किया जा रहा है। सर्वेक्षण पूरा होने के बाद रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजी जाएगी।

मुआवजा क्या होगा और कितना होगा, यह संबंधित अधिकारी तय करेंगे। फिलहाल इसके लिए कोई निर्धारित मानक तय नहीं किया गया है। जब तक सर्वेक्षण पूरा नहीं हो जाता और जांच रिपोर्ट उच्च अधिकारियों तक नहीं पहुंचती, तब तक इस संबंध में कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। फिलहाल दुकानों की कुल संख्या कितनी है और उनमें से कितनी बाढ़ से प्रभावित हुई हैं, इसका आंकड़ा अभी उपलब्ध नहीं है।

 

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