जिला चित्रकूट ब्लाक मऊ गांव बरगढ़ मजरा उसरी माफी के रमेशचन्द्र मौर्य कई साल से मूर्ति गमला, तोता, मोर, फूलदान और गमला जैसे कई तरह की मूर्ति बनांते हैंl बचपन में कच्ची मिट्टी से उल्टी-सीधी मूर्तियां बनाने के शौक ने आज उन्हें इस मुकाम तक पहुंचा दिया है कि वह देशभर में अपनी कला की छाप छोड़ रहे हैं। मूर्ति बनाने का यह काम इन्होने सन् 2012 से शुरू किया l अपने मेहनत और लगन से आज बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ बना रहे हैंl अपने हुनर को लोगों के बीच दिखाने के लिए मूर्ति बनाने का बिजनेश शुरू कियाl
1988 में पहली बार जब बनाई भव्य मूर्ति
रमेश चन्द्र मौर्या ने हमें बताया कि उन्होंने सन् 1988 में अपने बाबा की मूर्ति बनाई थीl इसके बाद छोटी-छोटी मूर्ति बनाना शुरू कियाl धीरे-धीरे लोगों की डिमांड बढ़ने लगी तो हर तरह की मूर्ति बनाने लगेl रमेश चन्द्र का कहना है कि “जब मैं बचपन में पढ़ाई कर रहा था तो मुझे कला बनाने मे बहुत रूचि थी l थोड़ा सा ब्रेक मिलने पर अपनी कॉपी में चित्र बनाते रहते थे और जल्दी ही सीख गये थे l फिर घर में भी मिट्टी का बना के प्रेटिस करते थे l फिर एक दिन मन में विचार आया की कब तक खेती किसानी ही करेंगे क्यों न मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दें l और फिर ये काम शुरू कर दिया l”
घर वाले करते हैं मदद
जब सवाल पूछा गया कि किस-किस मैटेरियल से मूर्ति बनाते हैं तो उन्होंने हमें बताया कि सीमिंट बालू और मिट्टी का भी बनाते हैं l एक मूर्ति बनाने में कई-कई दिन लग जाता है l अब तो चाहे जितनी फुट की मूर्ति, गमला, तोता की मूर्ति बनाने को बोला जाये बना लेते हैं lमूर्ति बनाने में बच्चे, औरत सभी लगे रहते हैं l परिवार की मदद से मूर्ति जल्दी तैयार हो जाती है l और बहुत दूर-दूर से लोग खरीदने आते हैं l
मूर्ति से होता है परिवार का भरण पोषण
रमेश चन्द्र मौर्या का कहना है कि घर पर रहकर खेती-किसानी के साथ मूर्ति बनाने का काम कर लेते हैंl यदि परदेश चले जाये तो एक ही काम कर पाते इस कारण से अपना यही धन्धा शुरू कियेl और परिवार का खर्च बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैंl मूर्ति बनाकर जो पैसे मिलते है उसी से इनके बच्चे प्रयागराज में पढ़ाई कर रहे हैंl
इस खबर को खबर लहरिया के लिए सुनीता देवी द्वारा रिपोर्ट और ललिता द्वारा लिखा गया है।