खबर लहरिया Blog Chhattisgarh Mob Lynching: चोर समझकर ग्रामीणों ने एक दलित व्यक्ति को बेरहमी से पीटा, व्यक्ति की मौत 

Chhattisgarh Mob Lynching: चोर समझकर ग्रामीणों ने एक दलित व्यक्ति को बेरहमी से पीटा, व्यक्ति की मौत 

ग्रामीणों ने चोरी के आरोप में एक दलित व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला। कहा गया कि कोई व्यक्ति तार जला कर उसमें से तांबा चोरी कर रहा है। कहा 25 हजार रुपये दे दें तो कौशल को जिंदा छोड़ दिया जाएगा    

Murder on suspicion of theft

चोर के आरोप में हत्या (फोटो साभार: दैनिक भास्कर)

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में मॉब लिंचिंग की घटना सामने आई है, जहां ग्रामीणों ने चोरी के आरोप में एक दलित व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला। मृतक की पहचान बागबाहरा विकासखंड के ग्राम मोहबा निवासी 50 वर्षीय कौशल सहिस के रूप में हुई है। उनका शव 25 अक्टूबर की सुबह गांव से 500 मीटर दूर मुक्तिधाम के पास मिला है। पूरा मामला ग्राम पतेरापाली का है। 

मीडिया रिपोर्टिंग के अनुसार 25 अक्टूबर 2025 की सुबह करीब 10 बजे कुछ ग्रामीणों ने कौशल को रेलवे पटरी के पास केबल जलाकर तांबे का तार निकालते देखा। इस पर ग्रामीण मौके पर पहुंचे और उसे पकड़ लिया। बताया गया कि लोगों ने उसके हाथ बांधकर गांव लाया और सरपंच को सूचना दी।

 घटना का पूरा मामला 

25 अक्टूबर की सुबह पतरेपाली गांव में केबल चोरी की खबर फैल गई। कहा गया कि कोई व्यक्ति तार जला कर उसमें से तांबा चोरी कर रहा है। यह सुनते ही गांव के लोग लाठी डंडे लेकर मौके पर पहुंच गए। रेलवे पटरी के पास उन्हें कौशल सहिस नाम का व्यक्ति तार जलाते हुए मिला। लोगों ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया और पीटना शुरू कर दिया। कौशल बार-बार कहता रहा “मुझे छोड़ दो, मुझे मत मारो” लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी। भीड़ ने उसपर बेहद लात-घुसे से पीटा जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। इसके बाद लोग उसे घसीटते हुए रेलवे पटरी से पतरेपाली गांव के महावीर चौक तक ले आए और फिर से मारपीट की। 

कौशल सहिस दलित समुदाय से था। भीड़ का गुस्सा इतना बढ़ गया था कि किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की। इस बीच गांव वालों ने उसके परिजनों को फोन कर कहा कि अगर वे 25 हजार रुपये दे दें तो कौशल को जिंदा छोड़ दिया जाएगा लेकिन परिवार ने कहा कि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं। यहां तक कि जब उसकी मां से बात की गई तो उन्होंने भी कहा कि उनका उससे कोई संबंध नहीं है। पैसे न मिलने पर भीड़ ने कौशल को फिर बेरहमी से पीटा। इतना मारा कि मौके पर ही उसकी मौत हो गई। इसके बाद लोगों ने उसकी लाश को पास के मुक्तिधाम (श्मशान घाट) के पास फेंक दिया और वहां से भाग गए।

पुलिस को नहीं दी गई घटना की जानकारी 

lalluram.com के अनुसार इस पूरी वारदात को सरपंच, कोटवार समेत ग्रामीणों ने पुलिस से छिपाए रखा। मौके पर पहुंचकर सिटी कोतवाली प्रभारी शरद दुबे ने सरपंच हेमंत चंद्राकर से जब घटना के संबंध पूछा तो हेमंत ने किसी भी प्रकार की जानकारी होने से साफ इंकार कर दिया। ग्रामीण भी खामोशी साध ली, जबकि गांव में शनिवार की सुबह चोर पकड़े जाने की जानकारी सरपंच, कोटवार सहित ग्रामीणों ने पुलिस को भी नहीं बताया। 

फॉरेंसिक टीम ने जताई मारपीट से मौत की आशंका

महासमुंद कोतवाली प्रभारी शरद दुबे पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे। वहां जांच के दौरान फॉरेंसिक टीम को मृतक की शर्ट और पैंट पर मिट्टी के निशान मिले, जिससे लग रहा था कि उसे जमीन पर घसीटा गया था। मृतक के हाथों पर संघर्ष के निशान भी पाए गए। उसके सिर के नीचे की मिट्टी गीली थी और मुंह में पानी भरा मिला। टीम का अनुमान है कि घायल हालत में उसे बचाने की कोशिश में पानी पिलाया गया होगा। जांच में मिले सबूतों से ऐसा लग रहा है कि कौशल सहिस की मौत मारपीट और अंदरूनी चोटों के कारण हुई हो सकती है।                               

dead body

मृतक का शव (फोटो साभार: दैनिक भास्कर)

पुलिस द्वारा कार्यवाही 

इस मामले में एडिशनल एसपी प्रतिभा पाण्डेय ने मीडिया से कहा लाश मिली है। शिनाख्त नहीं हो पाई थी लेकिन अब शिनाख्त हो गई है। फॉरेंसिक टीम ने घटना स्थल एवं शव का निरीक्षण किया है। दो डाक्टरों की टीम ने पीएम किया है। परिजनों से पूछताछ में जो निकलकर आएगा इसके बाद ही आगे की विधि संगत कार्रवाई करेंगे। अन्य साक्ष्य भी कलेक्ट कर रहे हैं। वहीं हत्या के शक में पुलिस ग्राम पंचायत पतरेपाली की सरपंच जयसुधा चंद्राकर के पति हेमंत चंद्राकर उसके भतीजे और गांव के कोटवार को सिटी कोतवाली में बिठाकर पूछताछ कर रही है।

संक्षेप में जानकारी 

  • 25 अक्टूबर 2025 को सुबह रेलवे पटरी के पास केबल तार जला रहा था कौशल सहिस। भीड़ ने महावीर चौक के पास उसे बांध कर पीटा। भीड़ ने कौशल के परिवार से ज़िंदा छोड़ने के लिए पैसा मांगे। 
  • 26 अक्टूबर 2025 की सुबह मुक्तिधाम के पास कौशल की लाश मिली। पुलिस ने शव का पोस्टमॉर्टम कराया। मारपीट से मौत की पुष्टि हुई। 
  • 27 26 अक्टूबर 2025 को पुलिस ने हत्या के बारे में गांव वाले और परिजनों से पूछताछ की।
  • 28 अक्टूबर 2025 को सरपंचपति हेमंत चंद्राकर और कोटवार पर शक गहराया जिसके बाद उन दोनों और सरपंच के भतीजे को थाने से बुलावा आया। तीनों से पूछताछ जारी है। 

ये घटना मौबलिंचिन के बढ़ते घटना के पैटर्न पर गंभीर सवाल खड़ी करती है। जहां भीड़ एक अफ़वाह का शिकार होता है, उसे लगता है कि वे क़ानून को हाथ में लेकर न्याय कर सकता है। ये उस ग़ुस्से पर भी सवाल खड़ा करता है जो राजनीतिक मतभेद से आगे बढ़ कर नफ़रत और ग़ुस्से के रूप में आम लोगों के भीतर पनप रहा है। 

आपके जानकारी के लिए बता दें कि यह मामला पहला नहीं है जहां भीड़ ने किसी व्यक्ति की इतनी पिटाई की कि व्यक्ति की मौत हो गई हो। 

दरअसल इसी महीने 2 अक्टूबर 2025 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में एक दलित व्यक्ति कि भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। तब कहा गया था कि युवक ड्रोन चोर था। 2 अक्टूबर को ही युवक को पीटने और लाश के वीडियो भी सामने आए थे। मृतक व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर था इस कारण कुछ नहीं बोल पाया। इसी कारण भीड़ ने उसे और बेरहमी से पीटा जिसके बाद उसकी मौत हो गई। 

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  • अगस्त 2025 को ऐसे ही उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के भभई में चोरी के संदेह में ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ की 53 वर्षीय एक महिला की कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। 
  • दिसम्बर 2025 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में चोरी के संदेह में एक 50 वर्षीय दलित व्यक्ति की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। राजधानी रायपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर डुमरपाली गाँव में हुई इस घटना के सिलसिले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार, मृतक पंच राम सारथी को एक खंभे से बाँधकर लाठियों से पीटा गया। 
  • जून 2018 में छत्तीसगढ़ के सरगुज़ा में एक अनजान व्यक्ति को बच्चे चुराने के अफ़वाह के चलते भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। सोशल मीडिया पर फैली अफ़वाह से हत्या हुई थी। 

इस तरह की खबरें तो सिर्फ वो मामले हैं जो मीडिया में सामने आए लेकिन ऐसे कितने ही हादसे होंगे जो कभी खबर नहीं बन पाते। यह पूरी घटना न सिर्फ एक दर्दनाक हत्या की कहानी है बल्कि समाज के अंदर पनप रहे खतरनाक सोच की झलक भी दिखाती है। आज लोग खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं। चोरी, अफवाह या किसी शक के आधार पर भीड़ खुद ही फैसला कर लेती है कि किसे सजा देनी है। न पुलिस का इंतजार, न कोर्ट का भरोसा लोग खुद ही न्याय देने निकल पड़ते हैं। यही मानसिकता धीरे-धीरे मॉब लिंचिंग की खतरनाक परंपरा में बदलती जा रही है।

 

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