छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ इलाके में पिछले एक महीने से चल रहे मुठभेड़ के बाद 21 मई 2025 को प्रमुख लीडर बसवाराजू समेत 27 माओवादी सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए।
लेखन – रचना
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले के अबूझमाड़ इलाके में पिछले एक महीने से नक्सलियों के ख़िलाफ़ अभियान चल रहा था जिसके दौरान बुधवार 21 मई 2025 को 27 माओवादी के मारे जाने की खबर सामने आइ है। इस अभियान में (माकपा) माओवादी के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ़ बसवाराजू भी मारे गए जिनके ऊपर 1.5 करोड़ की इनामी रखी गई थी। बसवा राजू पार्टी की केंद्रीय समिति (सीसीएम) और पोलित ब्यूरो (पीबीएम) के भी सदस्य थे।इसके साथ मुठभेड़ के दौरान कई माओवादियों के कई हथियार भी बरामद किए गए हैं। इस अभियान में जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) का एक जवान भी शहीद हुए हैं। यह अभियान छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे नक्सल विरोधी अभियानों की श्रृंखला में नवीनतम है और यह ऐसे समय में हुई है जब गृह मंत्री अमित शाह ने देश से वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने के लिए 31 मार्च, 2026 तक की समय सीमा तय की है। अबूझमाड़ गोवा राज्य से भी बड़ा एक सर्वेक्षण रहित क्षेत्र है। इसका एक बड़ा हिस्सा नारायणपुर में है लेकिन यह बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले तक भी फैला हुआ है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अब तक सर्वे नहीं किया गया है।
बुधवार की मुठभेड़ के साथ ही इस साल छत्तीसगढ़ में मारे गए माओवादियों की संख्या 200 तक पहुंच गई है जिसमें बस्तर क्षेत्र में 183 माओवादी शामिल हैं। पिछले साल 219 माओवादी मारे गए थे जिनमें बस्तर में 217 माओवादी मारे गए थे। अब साल 2025 में 400 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया गया है लेकिन जो अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है वो है कि इतने संख्या में मारे गए नक्सली क्या सच में नक्सली ही हैं या वहाँ के आदिवासी? बीते कुछ दिनों पहले और कुछ साल पहले भी माओवादियों की तरफ से कुछ पत्र आए थे जिसमें उन्होंने कहा था कि मुठभेड़ में मारे गए लोगों में उनके कमिटी से कोई नहीं है। बस्तर की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने भी अपने के इंटरव्यू में बताया है कि ऐसे कई मुठभेड़ हुए जिसमें नक्सली नहीं गाँव के आदिवासी मारे गए हैं जिन्हें नक्सली बताया गया है।
वायर के रिपोर्ट के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा पता लगा कि अभियान 19 मई की देर शाम से शुरू किया गया था। राज्य पुलिस को खुफिया एजेंसियों द्वारा टीएमएस जानकारी के विश्लेषण के आधार पर सूचना साझा की गई थी जिसके बाद यह कार्रवाई शुरू की गई। नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंडागांव की डीआरजी टीमों ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया।
केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि, ‘नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाई में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। आज छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में एक ऑपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों ने 27 खूंखार नक्सलियों को ढेर कर दिया है जिनमें सीपीआई-माओवादी का महासचिव शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़, नम्बाला केशव राव उर्फ बसवराजू भी शामिल है। नक्सलवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के तीन दशकों में यह पहली बार है कि किसी महासचिव स्तर के नेता को हमारी सेना ने मार गिराया है। मैं इस बड़ी सफलता के लिए हमारे बहादुर सुरक्षा बलों और एजेंसियों की सराहना करता हूं’
वे आगे लिखते है कि ‘साथ ही यह भी साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।’ अभी माओवादियों की तरफ से इस सम्बंध में कोई भी पत्र नहीं आया है जिससे उनके तरफ से किसी भी प्रतिक्रिया या कोई खबर के बारे में जानकारी मिल सके।
इसी के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने बुधवार को कहा कि वह छत्तीसगढ़ में “कई आदिवासियों के साथ एक वरिष्ठ माओवादी नेता की निर्मम हत्या ” की निंदा करती है। पार्टी ने यह भी कहा, “यह आतंकवाद विरोधी अभियानों की आड़ में की गई न्यायेतर कार्रवाई का एक और उदाहरण है।” उन्होंने आगे कहा कि “कानूनी गिरफ्तारी के बजाय बार-बार घातक बल का इस्तेमाल” लोकतांत्रिक मानदंडों और कानून के शासन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में चिंता पैदा करता है। पार्टी ने पूछा, “संविधान द्वारा गारंटीकृत उचित प्रक्रिया की इतनी स्पष्ट रूप से अनदेखी क्यों की गई?” माओवादी समर्थकों का कहना है कि वे आदिवासी लोगों के लिए काम करते हैं, कई निर्दोष आदिवासियों के साथ, सुरक्षा बलों द्वारा बसवाराजू हत्या की भी हत्या की गई है, तथा क़ानूनी कार्यवाही करने के बजाय गिरफ़्तारी के बजाय घातक बलों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनके सीधे तौर पर हत्या की जा रही है, जो लोकतांत्रिक तरीक़े और क़ानून के ख़िलाफ़ है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी इस विषय पर अपनी प्रतिक्रिया दी और कहा “ये ऑपरेशन मुख्य रूप से डीआरजी द्वारा चलाए जा रहे हैं।” “शुरू से ही हम उनसे (माओवादियों से) आत्मसमर्पण करने की अपील कर रहे हैं… इसे बार-बार दोहराने की कोई ज़रूरत नहीं है।” दरसल माओवादियों के तरफ से मुठभेड़ को रोकने और शांतिवार्ता के लिए लगातार पत्र जारी किया जा रहा था। इधर सरकार का कहना था कि वो शांतिवार्ता करेंगे लेकिन सरकार की अपनी एक शर्त होगी जिसके अनुसार वे शांतिवार्ता करेंगे। माओवादियों ने शर्त मानने से इनकार किया और सरकार के तरफ से भी सुरक्षा बलों द्वारा लगातार मुठभेड़ को जारी रखा गया।
अब सवाल ये आता है कि क्या इस घटना के बाद छत्तीसगढ़ में माओवादियों के अंत का शुरुआत है ? और क्या माओवादी ख़त्म हो जाने के बाद वहाँ के आदिवासियों को आम जीवन जीने को मिलेगा ?
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