छत्तीसगढ़ के कोरबा में भू – विस्थापित महिलाएं अपने रोजगार और पुनर्वास के मांगों को लेकर अर्धनगन (साड़ी उतारकर) होकर विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर हो गए हैं। महिलाओं का आरोप है कि कंपनी ने उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया लेकिन रोजगार नहीं दिया।
छत्तीसगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है वो अब कोयला खदान और बड़ी – बड़ी माइंस में तब्दील होता जा रहा है। पिछले कुछ सालों से बड़ी मात्रा में पेड़ कटाई और लोहे और कोयले के बड़े-बड़े खदानों का लगातार निर्माण किया जा रहा है। इसी कोयला खदान से प्रभावित छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में SECL (एसईसीएल) कोयला खदान से प्रभावित 150 भू-विस्थापित परिवार की महिलाओं ने अर्धनग्न होकर विरोध जताया है। 18 जुलाई 2025 को करीब 20 से 25 महिलाएं कोरबा के कुसमुंडा स्थित कंपनी कार्यालय के मेन गेट पर धरने पर बैठ गईं। नौकरी की मांग को लेकर अर्धनग्न प्रदर्शन किया। महिलाओं का आरोप है कि कंपनी ने उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया लेकिन रोजगार नहीं दिया। वे पिछले 42 साल से आवाज उठा रहे हैं जिसके बाद अब साड़ी उतारने को मजबूर हैं।
विश्व के 5 सबसे बड़े कोयला खदानों में एसईसीएल (SECL) का नाम
कोरबा छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख औद्योगिक और खनन क्षेत्र है जो कोयला खदानों और बिजली उत्पादन के लिए जाना जाता है। विश्व की 5 सबसे बड़ी कोयला खदानों में छत्तीसगढ़ की तीन खदानों को स्थान मिला है एसईसीएल एसईसीएल की गेवरा और कुसमुंडा खदान और दिपका कोयला खदानों को वर्ल्डएटलस डॉटकॉम द्वारा जारी दुनिया की टॉप 10 कोयला खदानों की सूची में दूसरा और चौथा स्थान मिला है। कोरबा ज़िले में स्थित एसईसीएल के गेवरा और दिपका खदान में मेगा प्रोजेक्ट द्वारा वर्ष 2023-24 में 100 टन (MT) से अधिक का कोयला उत्पादन किया गया जोकि भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 19 फीसद है। इसी तरह कुसमुंडा खदान द्वारा भी वित्तीय वर्ष 2023-24 में 50 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया गया। वर्ष 1981 में शुरू हुई गेवरा खदान में 900 मिलियन टन से अधिक का कोयला भंडार मौजूद है।
इन परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर जमीन अधिग्रहण किया गया जिसमें कोरवा और अन्य अनुसूचित जनजातियों की पुश्तैनी जमीनें शामिल हैं। ये समुदाय पीढ़ियों से इन जमीनों पर खेती और वन संसाधनों के जरिए अपनी आजीविका चला रहे थे।
SECL (एसईसीएल) क्या है
दरअसल एसईसीएल यानी “साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड” है जो कोरबा में स्थित एक प्रमुख कोयला उत्पादक कंपनी है। यह भारत की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है और कोल इंडिया लिमिटेड की सहायता कंपनी है।
प्रदर्शनकारियों ने क्या कहा
प्रदर्शनकारी महिलाओं ने बताया कि इस ज़मीन अधिग्रहण से क़रीब आठ गांव के लगभग 150 परिवार इस समस्या से प्रभावित हैं। उन्होंने खदान प्रबंधन (कंपनी) पर आरोप लगाते हुए कहा कि खदान प्रबंधन ने जमीन का अधिग्रहण करते समय नौकरी देने का वादा किया था लेकिन प्रबंधन अब अपने वादे से मुकर गई है। उन्होंने आगे बताया कि शुरुआत में उनसे कहा गया कि ज़मीन के बदले पुनर्वास किया जाएगा और घर के एक पुरुष को वहां नौकरी भी दी जाएगी लेकिन उन्हें अभी तक रहने को ना पुनर्वास मिला है और ना ही कोई नौकरी। कई लोगों का कहना है कि उनके परिवार में बेटा नहीं है बेटियां हैं लेकिन प्रबंधन उन्हें नौकरी देने से मना कर रहा है।
तेजराम (नाम बदला हुआ है) कोरबा निवासी हैं वे स्पष्ट कहते हैं, “खदान खुलने से हमें किसी भी प्रकार का लाभ नहीं मिला है। यह खदान हमारे गांव, शहर और जीवन को दीमक की तरह काट रही है और लगातार फैलती जा रही है। खदानों से निकलने वाले काले धुएं और राख के कारण कोरबा का पर्यावरण बेहद तेज़ी से प्रदूषित हो रहा है।”
लोगों से बात करने पर उन्होंने ने बताया कि वे क़रीब 42 से 45 सालों से इस खदान प्रबंधन के विरोध में लड़ाई लड़ रहे हैं। तेजराम का कहना है कि उस खदान में कई परिवारों की ज़मीन तो गई ही है लेकिन लगातार खदान के बढ़ने से कोरबा में प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है।
आठ गांव खदान से प्रभावित
इस समस्या से आठ गांव के लोग गुजर रहे हैं। सोनपुरी, बालिपडनिया, जटराज, अमगांव, बरकुटा, गेवरा बस्ती, खोडरी और भिलाई बाजार ये आठ गांव रोजगार और पुनर्वास के समस्या से जूझ रहे हैं। इन सभी गांव के लोग कंपनी के प्रबंधन के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हैं।
प्रदूषण से स्वास्थ्य समस्याएं
तेजराम ने कहा कि कोरबा में प्रदूषण के कारण वायरल बुखार, दाँत कड़कना, बाल सफेद होना, खुजली, जलन और सांस की तकलीफ जैसी बीमारियां आम हो गई हैं। इलाके में प्रदूषण मापने के यंत्र तक नहीं हैं। उन्होंने बताया कि पाहाड़ तोड़ने के लिए बड़ी – बड़ी मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है और उसी दौरान पाहाड़ और पत्थरों के टूटने से काले रंग का धुँवा निकला है जो काफी जहरीली होती है।
प्रबंधन ने क्या कहा
एक ओर प्रबंधन का कहना है कि प्रदर्शनकारी नियमों के खिलाफ रोजगार और मुआवजे की मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर एसईसीएल पीआरओ डॉ सनीश चंद्र ने स्टेटमेंट जारी किया है जिसके तहत कुसमुंडा क्षेत्र में कुछ परियोजना प्रभावित लोग निर्धारित नियमों के अलावा रोजगार और मुआवजे की मांग कर रहे हैं। प्रबंधन हमेशा बातचीत के लिए तैयार हैं और हम सभी से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं।
महिलाओं का कहना है कि कई बार स्थानीय प्रशासन और एसईसीएल अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई जिस कारण महिलाओं को अर्धनगन होकर प्रदर्शन करने पर मजबूर होना पड़ा। महिलाएं अपने छोटे बच्चों को लेकर प्रदर्शन करती रहीं। महिलाओं का यह भी कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं हो जाती तब तक वे अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे।
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