चैतुरगढ़ किला छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक है। यह किला भारत के सबसे मज़बूत प्राकृतिक किलों में से एक है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।
छत्तीसगढ़ का “चैतुरगढ़ किला” अपनी वास्तुकला, इतिहास और खूबसूरती के लिए पर्यटकों के बीच विख्यात है। चैतुरगढ़ किले को ‘लाफागढ़ किले’ के नाम से भी जाना जाता है। यह किला छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक है। चैतुरगढ़ किला 5 किलोमीटर वर्ग के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। आपको बता दूं, चैतुरगढ़ किला भारत के सबसे मज़बूत प्राकृतिक किलों में से एक है। साथ ही, यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है।
ये भी देखें – बिहार के “शेरगढ़ किला” में हैं सैकड़ों सुरंगें और तहखानें
3,060 मीटर की ऊंचाई पर है चैतुरगढ़ किला
चैतुरगढ़ किला 3,060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ पर बसा हुआ है। कोरबा जिले से यह 70 किलोमीटर व पाली जिले (राजस्थान) से 19 किलोमीटर की दूरी पर है। वहीं इस किले में महिषासुर मर्दिनी मंदिर है।
इसके साथ ही यह जगह अलग-अलग प्रकार की जड़ी-बूटियों, औषधियों और वन्य जीव-जंतुओं से भरी हुई है। किले का सफर यूँ तो रोमांचमयी होता है पर बरसात के समय किले का सफर करने में अलग ही मज़ा और सनसनाहट महसूस होती है।
चैतुरगढ़ किला किसने बनवाया?
चैतुरगढ़ किले को राजा पृथ्वी देव ने बनवाया था। किले का निर्माण कल्चुरी संवत 821 यानी 1069 ईस्वी में हुआ। किले के अंदर जाने के लिए तीन द्वार यानी रास्ते हैं, मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार।
चैतुरगढ़ किला में हैं प्राकृतिक दीवारें
हैरानी करने वाली बात यह है कि किले के ज़्यादातर भागों की दीवारें प्राकृतिक हैं यानी प्राकृतिक तौर पर निर्मित है। वहीं किले के अंदर कुछ ही दीवारों का निर्माण किया गया है।
ये भी देखें – मध्यप्रदेश : भेड़ाघाट का धुआँधार जलप्रपात है ‘विश्व धरोहर’ का हिस्सा
चैतुरगढ़ किले में हैं 5 तालाब
चैतुरगढ़ किले में पांच तालाब है। यह तालाब किले के ऊपर हैं। पांच तालाबों में से तीन तलाब हमेशा सदाबहार रहते हैं यानी इन तालाबों में हमेशा पानी भरा रहता है। यह किले की खासियत को और भी बढ़ाने का काम करते हैं।
– गर्गज तालाब
– सूखी तालाब
– केकड़ा तालाब
– भूखी डबरी
– सिंघी तालाब
गर्गज तालाब, सूखी तालाब और केकड़ा तालाब, ऐसे तालाब हैं जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है। बता दें, गर्गज तालाब, गर्गज पहाड़ के नीचे बसा हुआ है जहां आप घूम भी सकते हैं।
चैतुरगढ़ पहाड़ों से निकलने वाले झरने
चैतुरगढ़ पहाड़ों से चामादरहा, तिनधारी और श्रंगी झरना बहता है। बता दें, हसदेव नदी की सहायक नदी जटाशंकरी नदी का उद्गम मैकाल पर्वत श्रेणी के चैतुरगढ़ के पहाड़ो से हुआ है। यहां का ये नज़ारा अगर एक बार आँखे देख ले तो वह भी मंत्रमुग्ध हो जाती है।
चैतुरगढ़ किले की वास्तुकला
चैतुरगढ़ किले की दीवारे एक जैसी न होने की वजह से कई जगह छोटी तो कई जगह मोटी दिखाई देती है। किले के प्रवेश द्वार को वास्तुकला की दृष्टि से बड़ी ही बखूबी और तरीके से बनाया गया है। इसमें कई सारे स्तंभ और मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं।
साथ ही यहां पर एक बहुत बड़ी गुंबद है जो मज़बूत स्तंभों पर बनायी गयी हैं। इस गुंबद को पांच खंभों के सहारे बनाया गया है।
ये भी देखें – बिहार का तेलहर कुंड, यहाँ हरियाली भी है और सुकून भी
‘कश्मीर’ की तरह महिषासुर मर्दिनी मंदिर में होती है ठंड
महिषासुर मर्दिनी मंदिर समुद्र तल से 3,060 फ़ीट ( लगभग 1,100 मीटर) की ऊंचाई पर है। महिषासुर मर्दिनी मंदिर की ख़ास बात यह है कि भीषण गर्मी में यहां का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस रहता है। इस वजह से इस जगह को कश्मीर से कम नहीं समझा जाता।
चैतुरगढ़ किले में सबसे ज़्यादा महिषासुर मर्दिनी मंदिर ही मशहूर है। पुरातत्वविद (archaeologists) के अनुसार, इस मंदिर को कल्चुरी शासन काल के दौरान राजा पृथ्वीदेव द्वारा सन् 1069 ईस्वीं में बनवाया गया था।
नागर शैली में बना है महिषासुर मर्दिनी मंदिर
महिषासुर मर्दिनी माता मंदिर को नागर शैली में बनाया गया है। नागर शैली की दो सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे विशिष्ट योजना और विमान की तरह बनाया जाता है। इसकी मुख्य भूमि आयताकार (square) होती है जिसमें बीच के दोनों ओर क्रमिक विमान होते हैं। इस वजह से इसका पूरा आकार तिकोना हो जाता है। बता दें, मंदिर के सबसे ऊपर शिखर होता है जिसे रेखा शिखर भी कहते हैं।
नागर शैली में बने महिषासुर मर्दनी माता मंदिर के गर्भ ग्रह में माता की 12 हाथों वाली मूर्ति रखी हुई है। वहीं इस मंदिर के आस-पास हनुमान, कालभैरव और शनिदेव आदि की मूर्तियां भी रखी हुई हैं।
चैत्र और कुंवार के नवरात्री में इन मंदिर में बेहद ही भव्य मेले का आयोजन होता है। मेले को देखने हज़ारों की संख्या में लोग भी आते हैं।
महिषासुर मर्दिनी मंदिर की एक और ख़ास बात यह है कि मंदिर के पास बेहद ही सुंदर शंकर गुफा है जो लगभग 25 फीट लंबी है। गुफा का प्रवेश द्वार छोटा है।
ये भी देखें – बिहार की सोन भंडार गुफा के पीछे क्या है रहस्यमयी कहानी? आइए जानते हैं
चैतुरगढ़ किला इस तरह पहुंचे
हवाई जहाज द्वारा : आप स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचकर किले तक आ सकते हैं। राज्य की राजधानी रायपुर से किले की दूरी 200 किलोमीटर है।
ट्रेन द्वारा : चैतुरगढ़ कोरबा रेलवे स्टेशन से लगभग 50 किलोमीटर और बिलासपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर है।
सड़क द्वारा : चैतुरगढ़ कोरबा बस स्टैंड से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर और बिलासपुर बस स्टैंड से करीबन 55 किमी की दूरी पर स्थित है।
कुछ प्रमुख शहरों से चैतुरगढ़ किले की दूरी :-
– बिलासपुर – 73 Km
– कोरबा – 80 Km
– रतनपुर – 48 Km
– कटघोरा – 56 Km
– रायपुर – 191 Km
जो व्यक्ति रोमांच, इतिहास, वास्तुकला और रहस्य में रुचि रखते हैं उनके लिए चैतुरगढ़ किले के पास जानकारी देने के लिए बहुत कुछ है। प्राकृतिक खूबसूरती, पहाड़ों के बीच बसा किला, उसके बगल से बहते झरने और उनके छिपे रहस्य, अब और क्या चाहिए? तो निकल पड़ें, इस किले के सफ़र पर।
ये भी देखें – जानिये ग्वालियर के किले के बारे में
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’