जिला छतरपुर। मिट्टी की पारंपरिक कलाकृतियां धीरे-धीरे अब लुप्त हो रही है। मिट्टी की कमी और बाजार में सामानों की सही कीमत नहीं मिलने से तंगहाली की मार झेल रहे कारीगर अब मिट्टी की कारीगरी का काम अधिकतर कम कर रहे हैं। ऐसे में पारंपरिक कला को आधुनिकता का रूप देकर छतरपुर जिले के एक गांव के कुम्हार ने अपने पुश्तैनी काम को ऐतिहासिक चीजों से जोड़कर एक नई पहचान देकर विलुप्त होने से बचाया है।
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कुम्हार ने बताया कि घर हो या ऑफिस, सजावट के लिए लोग तरह-तरह के जतन करते हैं। कभी-कभी आलीशान आवासों की बैठक में सजावट की ऐसी वस्तु देखने को मिल जाती है, जो इतिहास से जुड़ी होती है। जो आम कलाकृतियों से हट कर होती है। कुछ इसी तरही की कारीगारी से वह मिट्टी को संजोकर तैयार करते है। मिट्टी कि कारीगरी को नया रूप देने के पीछे उनका अपने पुश्तैनी काम को जीवित रखना है। उनका कहना है कि बाजार की आधुनिकता से जूझने के लिए हमें अपनी कलाकृति में बदलाव लाना बहुत ज़रूरी था। इससे न केवल उनका परिवार चलता, बल्कि वह ये भी चाहते हैं कि युवा वर्ग इस कारीगरी और अपने पुश्तैनी काम के प्रति आकर्षित हो।
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पहले उनके पिताजी यही काम करते थे और तरह-तरह की चीज़ बनाते थे अब वह यह काम करते हैं। उन्होंने अपने बेटों को भी यही काम सिखाया है। उनका पूरा परिवार इस काम में लगा रहता है। जब कहीं प्रदर्शनी वगैरह लगती है, तो उनको बुलाया जाता है। इसके अलावा उनकी इतनी पहचान हो गई है कि घरों से भी लोग आकर सजावट का सामना ले जाते हैं। पन्ना जिला छतरपुर का एक पर्यटक क्षेत्र है। यहां देश-विदेश से लोग आते हैं जो सामान वह बनाते हैं उसमें बहुत-ही मेहनत लगती है। समय लगता है, महंगा होता है इसलिए लोकल के लोग तो कम खरीद पाते हैं। यह इतिहास से जुड़ी हुई कलाकृतियां हैं जो विदेशी लोगों को बहुत पसंद आती है। इसलिए विदेशी लोग इस समाज के सामान को बहुत महत्व देते हैं और खरीदते हैं। इस कारीगरी के लिए उनको कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है।
वह मगरमच्छ, मूर्ति, लालटेन, कछुआ, दीये, झूमर, चिड़िया, मोर जैसी कई चीज़ें बनाते हैं। एक छोटे से सामान को बनाने के लिए भी कड़ी मेहनत करते हैं और एक दिन का पूरा समय लगता है, तब जाकर सुंदर रूप दे पाते हैं। मिट्टी के लिए उनको भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है तब जाकर मिलती है।
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