केंद्र सरकार पर तीन करोड़ राशन कार्ड आधार से लिंक ना होने की वजह से रद्द करने का आरोप है। जिसकी वजह से कई लोगों की भूख से मौत के मामले भी सामने आये हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 17 मार्च को केंद्र और राज्य सरकार से राशन कार्ड के मामले में जवाब माँगा है। अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा तीन करोड़ राशन कार्ड को रद्द करने को बेहद ‘गंभीर समस्या’ बताया। आपको बता दें, क्यूंकि बहुत से लोगों के राशन कार्ड आधार कार्ड से लिंक (जुड़े) नहीं थे। तो केंद्र ने बने हुए राशन कार्डों को ही अमान्य करार कर दिया।
मुख्य न्यायधीशों की पीठ जिसमें एसए बोबडे,न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन शामिल थे। उन्होंने कहा कि इस मामले को प्रतिकूल नहीं माना जाना चाहिए। यह बहुत ही गंभीर मामला है।
पीठ ने कहा कि मामले को अंतिम सुनवाई के लिए रखा जाएगा।
राशन कार्ड को लेकर इस महिला ने दायर की याचिका
शुरुआत में संबंधित मामले की याचिका कोइली देवी द्वारा की गयी थी। याचिकाकर्ता की तरफ से लड़ रहे वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि याचिका बड़े मुद्दे से जुड़ी हुई है।
मुख्य न्यायधीश ने कहा,“मैं इस तरह के मामलो से बॉम्बे हाई कोर्ट में भी निपट चुका हूँ। मुझे लगता है कि इस मामले को पहले हाई कोर्ट के सामने रखना चाहिए।”
पीठ ने कहा, मामले पर किसी और दिन होगी बात
कोइली देवी के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा तीन करोड़ लोगों के राशन कार्ड को रद्द कर देना, एक बड़ा मुद्दा है। मुख्य न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर किसी और दिन चर्चा करेंगे। गोंसाल्वेस को लगता है कि केंद्र द्वारा ही राशन कार्ड को खारिज किया गया है- मुख्य न्यायधीश।
वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा,गोंसाल्वेस द्वारा गलत बयान दिया गया है। कि केंद्र सरकार ने राशन कार्ड रद्द किया है। वह कहते हैं कि केंद्र से प्रतिक्रिया और रिकॉर्ड के लिए पहले ही नोटिस ज़ारी किया जा चुका है।
वहीं लेखी की इस बात का जवाब देते हुए गोंसाल्वेस ने कहा, मुख्य याचिका को लेकर नोटिस नहीं जारी किया गया। बल्कि वैकल्पिक शिकायत के हल को लेकर नोटिस दिया गया है। वह आगे कहते हैं कि मुख्य मुद्दा तीन करोड़ राशन कार्डों को रद्द करना और भुखमरी से मौत का है।
पहले भी मामले को लेकर अदालत ने माँगा था जवाब
9 दिसम्बर 2019 को भी उच्च अदालत ने सभी राज्यों से भुखमरी से हुई मौत के आरोपों को लेकर प्रतिक्रिया मांगी थी। जिनके वैध आधार कार्ड ना होने की वजह से उन्हें राशन आपूर्ति की सुविधा से वंचित रखा गया था।
साथ ही साल 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 14, 15 और 16 के तहत नोटिस ज़ारी करने की बात भी पीठ द्वारा कही गयी थी।
केंद्र ने कहा, भोजन से किसी को नहीं रखा वंचित
केंद्र द्वारा पहले यह कहा गया था कि उनके अनुसार रिपोर्टों से यही पता चलता है कि मौतें भुखमरी की वजह से नहीं हुई है। साथ ही आधार कार्ड वैध ना होने की वजह से किसी को भी भोजन से वंचित नहीं रखा गया है।
बेटी की मौत के बाद दायर की याचिका
जनहित याचिका दायर करने वाली कोइली, झारखंड के सिमडेगा जिले की करीमती गाँव की रहने वाली है। 28 सितम्बर 2018 को भूख की वजह से उनकी 11 साल की बेटी संतोषी की मौत हो गयी थी। अपनी याचिका में कोइली ने यह दावा किया था कि वह दलित परिवार से संबंध रखती है। उनकी बेटी की मृत्यु इसलिए हुई क्यूंकि स्थानीय अधिकारीयों ने उनका राशन कार्ड रद्द कर दिया था। वह भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि वह आधार कार्ड को राशन कार्ड से लिंक नहीं करवा पाईं थीं।
संतोषी की बहन गुड़िया देवी भी याचिका में संयुक्त याचिकाकर्ता हैं।
दायर याचिका में यह भी सामने आया कि साल 2017 से परिवार को राशन मिलना बंद हो गया था। जिसकी वजह से पूरा परिवार भूख से ग्रसित था। जिस दिन संतोषी की मौत हुई। उस दिन उसकी माँ उसे चाय के साथ सिर्फ नमक ही दे पायी थी। सिर्फ एक यही चीज़ उनकी रसोई में मौजूद थी। जिसके बाद संतोषी ने भूख से अपना दम तोड़ दिया।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत का स्थान
भूख से भारत में किसी की जान चले जाना बेहद साधारण-सा हो गया है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2020 के अनुसार भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा था।
भारत भुखमरी सूचकांक में 27.2 के अंक के साथ ‘गंभीर’ श्रेणी में है।
भूख से हुई मौत के मामले
तकरीबन दो साल पहले, साल 2019 में कर्नाटका में भूख से जुड़ी मौत का मामला सामना आया था। कर्नाटका के गोकर्णा के बेलेहित्तला में रहने वाले तीन दलित भाई नारायण,वेंकटरमम्मा और सुब्बू मारू मुखरी को राशन से वंचित कर दिया था। उनके आधार कार्ड राशन कार्ड से जुड़े हुए नहीं थे। जिससे की लगभग 45 लोगों की मौत भूख से हुई थी। 25 लोग ऐसे थे जिनकी मौत आधार कार्ड से जुड़ी समस्याओं की वजह से हुई थी।
न्यूज़क्लिक की 20 अक्टूबर 2020 की रिपोर्ट में भूख से हुई मौत की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के बोकारो से दूर एक गाँव करमा में रहने वाले व्यक्ति भूखल पासी नाम की मौत सुर्ख़ियों में रही थी। मुद्दे से जुड़े कार्यकर्ताओं के अनुसार, भूखल बेरोज़गार था। उसके पास राशन कार्ड भी नहीं था और भूख से उसकी मृत्यु हो गयी।
लगभग 75 साल पहले 1943 में जब बंगाल राज्य में अकाल पड़ा। उस समय तकरीबन 2.1 से 3 मिलियन लोग मारे गए थे। उस समय प्रसिद्ध वामपंथी सांस्कृतिक समूह इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन के सदस्यों ने देश में राष्ट्रव्यापी कैंपेन चलाया था। “बंगाल भूखा है।”
लेकिन आज हमें ऐसा कोई भी अभियान देखने को नहीं मिलता। 21 वीं सदी, जिसे की आधुनिकता का युग कहा जा रहा है। भारत का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी भूख और कुपोषण जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है। लेकिन इसे लेकर कोई भी जागरूकता पैदा करने वाली चीज़ें दिखाई नहीं दे रही। कई सवाल तो बस कौन गरीब है? किसे गरीब कहा जा सकता है? जैसे सवालों में ही दम तोड़ देते हैं। सरकार द्वारा यूँ तो गरीबों के लिए मुफ्त राशन कार्ड की शुरुआत की गयी। लेकिन यह योजना लोगों की भूख और उससे होने वाली मौतों को कम ना कर सकीं। ना ही सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका या कार्य होती मौतें में कोई असर ला पाए। आखिर इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाए? किसी का भूख से मर जाना कितना दर्दनाक हो सकता है। यह कौन बता सकता है? हालाँकि, उच्च अदालत मामले को लेकर क्या सुनवाई करती है। यह कहा नहीं जा सकता।
शायद ये कविता भूख और उससे जुड़ी उम्मीदों को और बेहतर बता पाए:-
“भूख और उम्मीद”
आँखों से गिरते ख्वाब देखे
ज़मी से लिपटते हाथ देखे
ज़ुबा से टपकती भूख देखी
साँसों में बिखरती नींद देखी
नाम से बिछड़ती ज़िंदगी देखी
वो है या भी नहीं
बस इन बयानों में हमने
उनकी टूटती उम्मीद देखी।
– संध्या