खबर लहरिया Blog वाराणसी : अदालतों में महिलाएं सालों से लड़ रहीं हक़ की लड़ाई

वाराणसी : अदालतों में महिलाएं सालों से लड़ रहीं हक़ की लड़ाई

सरकार महिलाओं से जुड़े मामलों को प्राथमिकता देने की बात करती है लेकिन बलात्कार जैसे मामलों में भी महिलाएं सालों से सुनवाई का इंतज़ार कर रही हैं।

 

 

varanasi district court

 

न्याय की चौखट पर इंतज़ार पहले और इंसाफ़ बाद में आता है। इस बात से शायद आप भी इंकार नहीं करेंगे क्यूंकि न्याय में आमतौर पर देरी ही देखी गयी है। सिर्फ कुछ ही मामले होंगे जहां कुछ महीनों में लोगों को न्याय मिल गया होगा। ऐसे में हमेशा यह सवाल रहता है कि क्या देरी से मिले न्याय को पूरी तरह से इंसाफ़ कहना सही रहेगा या नहीं?

निर्भया मामले में 8 सालों बाद दोषियों को सज़ा मिली। उन्नाव मामले में तकरीबन तीन सालों बाद दोषियों को सज़ा मिल पायी। ये तो वह मामले थे जो बड़े स्तर पर लोगों की निगाह अपनी तरफ़ खींच पाए। इसके बावजूद भी न्याय पाने में इन्हें सालों लग गए।

महिलाओं से जुड़े न जाने कितने ही मसले रोज़ थानों में दर्ज़ होते हैं। मेरे खयाल से मुझे यह कहना चाहिए कि जो थाने तक पहुँच पाते हैं और फिर उसके बाद अदालत तक जाने में न जाने उन्हें कितनी ही मशक्क्त करनी पड़ती है। अदालत तक पहुँच पाने के बाद भी जब इंसाफ़ न मिल पाये तो आगे क्या? यह बात तो किसी से भी छिपी नहीं है कि अदालतों में लाखों केस आज भी अधूरे पड़े हुए हैं। अब ज़रा सोचिये कि लोकल अदालतों का क्या हाल होगा? स्थानीय और ग्रामीण मामलों के केसों की क्या सुनवाई हो पाती होगी?

यह सवाल है और इसके जवाब के लिए खबर लहरिया ने वाराणसी जिले की अदालत में दायर कुछ मामलों के बारें में जाना। जिन लोगों के केस अभी भी अदालत की तारीख़ और सुनवाई का इंतज़ार कर रहें हैं, उन लोगों से बात की।

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8 सालों से अपनी बेटी के हक़ के लिए लड़ रही महिला

 

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प्रियंका साल 2018 से अपनी और अपनी बेटी के हक़ के लिए लड़ रही है। रोहनिया थाने के अंतर्गत जयपुर की रहने वाले प्रियंका की शादी साल 2013, 13 मई को नक्खीघाट में रहने वाले रामदुलार के साथ हुई थी।

प्रियंका की मानें तो रामदुलार ने उसके साथ इसलिए शादी की ताकि उसकी सारी संपत्ति उसे मिल जाए। उसकी तीन बहने हैं यह सोचकर रामदुलार ने प्रियंका से शादी कर ली। शादी के 2 सालों बाद उसके पिता ने ज़मीन बेच दी। जब यह बात ससुराल में पता लगी तो वहां सब उसे प्रताड़ित करने लगे। वह फिर अपने मायके चली गयी। उसकी एक बेटी भी हो गयी थी।

जब वह मायके गयी तो उसी दौरान रामदुलार ने दूसरी शादी कर ली। पति से जब भी वह फोन पर कहती कि वह उसे आकर ले जाए तो वह आज, कल, परसो कहकर बात टाल देता। 2 महीने बाद उसे पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। अब वह उसे और अपनी बेटी को लेकर नहीं जाना चाहता।

कहती, “क्या हम लड़कियों के जीवन में शादी करना या छोड़ देना यही है।”

आज उसे लड़ते हुए 4 साल बीत चुके हैं। सुनवाई के लिए कितनी तारीखें पड़ी, न जाने कितनी ही दौड़ लगाई लेकिन न्याय नहीं मिला। वह इतनी लंबी लड़ाई सिर्फ इसलिए लड़ रही है ताकि उसकी बेटी का जीवन संवर जाए। वह बस अपनी बेटी के लिए अपने पति रामदुलार से खर्चा चाहती है, जो उसका हक़ भी है।

आखिर में उसने कहा, “मैं तब तक लड़ती रहूंगी जब तक मेरी बेटी को न्याय न मिल जाये।”

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बेटियों के साथ हुए बलात्कार को लेकर सालों से चल रहा मुकदमा

रेप के मुकदमे को लेकर राजातालाब थाने की रहने वाली तारा देवी 2020 से इंसाफ़ की राह देख रही हैं। घर में अकेला पाकर उनकी दो बेटियों के साथ बलात्कार किया गया जिसके बाद उनकी हालत काफ़ी नाज़ुक हो गयी थी।

8 अप्रैल 2022 को आरोपियों के साथ उनके मुकदमे की तारीख थी। जहां आरोपियों के परिवार द्वारा उन पर मामले को छोड़ने को दबाव बनाया गया। जान से मारने की भी धमकी दी गयी। कई बार उन्हें जान से मारने तक की कोशश की जा चुकी है।

तारा देवी चाहती हैं कि दोषियों पर जल्द कार्यवाही हो और उन्हें जेल भेजा जाए। साथ ही जब अदालत में मुकदमा चल रहा है तो उन पर दबाव क्यों बनाया जा रहा है? गरीबों को क्यों सताया जाता है? जब भी कोई गरीब इंसाफ के लिए अदालत आता है तो आज फ़ाइल जायेगी, कल फ़ाइल जायेगी में फ़ाइल कभी आगे ही नहीं जाती और इंसाफ़ की मांग धरी की धरी रह जाती है।

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अधूरे पड़े मामलों को लेकर जाने क्या है अधिवक्ता का कहना

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अधिवक्ता विजय बहादुर

वाराणसी जिले के अदालत के अधिवक्ता विजय बहादुर से हमने सुनवाई का इंतज़ार कर रहे मामलों के बारे में बात की। उनकी मानें तो केस कोई भी हो, यह लोगों के ऊपर होता है कि बयान कब होगा, हाज़िरी कब होगी और किस तरह से प्रक्रिया चलेगी। किसी भी केस में कुछ भी निर्धारित नहीं होता। कोर्ट में वैसे भी एक दिन में इतने ज़्यादा मामले होते हैं कि समय ही खत्म हो जाता है।

कभी-कभी हाज़िरी ही नहीं हो पाती। कई बार नोटिस ही नहीं पहुँच पाता। कोई भी केस ऐसा नहीं होता कि जल्दी खत्म हो जाये। कई बार पीड़ित व्यक्ति लड़ते-लड़ते थक जाते हैं। कई बार दोनों मिलकर ही केस को खत्म कर देते हैं। वहीं जब दोनों पक्ष की बातें नहीं होती तो मामला बस यूँही चलते रहता है।

जैसा की एडवोकेट ने कहा, लोग कई बार लड़ते-लड़ते थक जाते हैं और थके भी क्यों न, जब यह भी नहीं पता कि लड़ाई और कितनी लंबी है? यूँ तो यूपी सरकार ने कहा है कि महिलाओं के मामलों को प्राथमिकता देते हुए सबसे पहले उनके मसलों को हल किया जाएगा पर इन मामलों को देखकर ऐसा लगता तो नहीं है।

विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने बताया कि देश में कुल 4.70 करोड़ मामले बिना किसी सुनवाई के पड़े हुए हैं। (द इकोनॉमिक टाइम्स की 25 मार्च 2022 की रिपोर्ट) यह आंकड़े तो सिर्फ हाई कोर्ट के हैं जिनमें अभी लोकल अदालतों में पड़े हुए केसों को नहीं जोड़ा गया है। ऐसे में किसी व्यक्ति के केस की सुनवाई का नंबर कितने सालों बाद आएगा, यह बता पाना भी मुश्किल है।

इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गयी है। 

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