लोगों की मांग है कि गांव में ही कोटे का चयन हो जिससे लोगों को दूसरे गांव न जाना पड़े। अगर राशन की दुकान होगी तो किसी भी समय लोग जाकर राशन ले सकते हैं और राशन मिलने में भी इतनी दिक्कत नहीं होगी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे आ रहे परिवारों के लिए मुफ्त राशन योजना पिछले कई सालों से चला रखी है। लेकिन आज भी प्रदेश में राशन मिलने को लेकर लोगों को जूझना पड़ता है, कई परिवार तो ऐसे भी जिनके पास अभी भी राशन कार्ड नहीं है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत तो तब आती है जब ग्रामीणों को मुफ्त राशन पाने के लिए मीलों की दूरी तय करनी पड़ती है। गांव में कोटे नहीं होते हैं और अगर होते भी हैं तो वहां सीमित परिवारों के भर का ही राशन मिलता है। मजबूरन लोगों को अनाज पाने के लिए घंटों पैदल सफर तय करके दूसरे कोटों तक पहुंचना पड़ता है।
कुछ ऐसा ही हाल फिलहाल बाँदा और महोबा ज़िले में है। यहाँ कई गांव ऐसे हैं जहाँ सरकारी राशन की दुकानें मौजूद नहीं हैं, जिसके कारण कार्डधारकों को 3-4 किलोमीटर दूर मौजूद दूसरे गांव के कोटे पर राशन लेने जाना पड़ता है। कई बार कोटेदार अन्य ग्रामीणों को राशन देने से मना कर देते हैं या फिर जब तक दूसरे गांव से आए लोगों का नंबर आता है तब तक राशन ख़तम हो जाता है। ऐसे में लोगों को निराश होकर घर लौटना पड़ जाता है।
राशन को लेकर ग्रामीणों को होती परेशानी
बाँदा के नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले रगौली भटपुरा ग्राम पंचायत के मजरा महाराजपुर के मुलायम सिंह बताते हैं कि लगभग 500 वोटर वाले इस गांव में सरकारी राशन की दुकान गांव से 4 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत रगौली में मौजूद है। वहां जाने के लिए जो रास्ता बना है, वो भी पूरी तरह से जर्जर और कीचड़ से भरा हुआ है। बरसात के मौसम में ग्रामीणों के लिए राशन लेने जाना सबसे बड़ा संकट होता है। लोग कीचड़ में फिसल जाते हैं, और कई बार तो दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं। लोगों ने प्रशासन से गांव में ही कोटा खुलवाने की मांग तो करी लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। ग्रामीणों ने प्रशासन के आगे यह प्रस्ताव भी रखा कि अगर गांव में कोटा नहीं खुल सकता तो कोटेदार ही यहाँ आकर राशन वितरण कर दे, पर इस सुझाव पर भी अभी तक प्रशासन की तरह विचार नहीं किया गया है। इस मजरे के लोग इन सभी दिक्कतों के चलते 2-3 महीने में एक ही बार राशन लेने जा पाते हैं।
इसी गांव की रहने वाली सुमन बताती हैं कि जिनके पास साधन है, वो तो किसी तरह कोटे तक पहुँच जाते हैं लेकिन जिन घरों में साइकिल या मोटरसाइकिल भी नहीं है, उनको पैदल ही कीचड़ और पथरीले रास्ते से होकर गुज़रना पड़ता है। गांव के लोग खेती-किसानी करके अपना गुज़ारा करते हैं और अगर एक महीने में भी कोटे पर राशन लेने नहीं गए, तो घर में खाने की किल्लत साफ़ झलकने लग जाती है। सुमन भी दूरी और कच्चे रास्ते के चलते 2 महीने तक राशन लेने कोटे पर नहीं जा पायी थीं। 7-8 लोगों वाले इस घर में उस दौरान पेट पालने के लिए घर के सदस्यों को काफी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जब दो महीने बाद सुमन कोटे तक पहुंची भी तो वहां दिनभर खड़े रहने का बाद भी उनका अंगूठा नहीं लग पाया और वो राशन मिल पाने से वंचित रह गयीं।
नरैनी तहसील के अंतर्गत आने वाले पैगंबरपुर गांव की अनीता बताती हैं कि उनके गांव का कोटा 1 साल से निरस्त चल रहा है। उस कोटे को बड़ोखर बुजुर्ग में जोड़ तो दिया गया है, लेकिन वहां का कोटेदार मायादीन समय पर राशन वितरण नहीं करता। पैगंबरपुर से बड़ोखर खुर्द लगभग 4 किलोमीटर दूर है और यहाँ मौजूद कोटे पर भी कई तरह की धांधली होती है। दो-तीन महीने में एक बार राशन की दूकान खुलती है और तब लोगों को राशन मिल पाता है। ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि कोटेदार राशन ब्लैक में बेचता है, लोगों ने इसकी शिकायत करते हुए निरस्त राशन की दुकान बहाल करवाने की मांग भी की लेकिन इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई।
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क्या कहते हैं नरैनी सप्लाई इंस्पेक्टर?
नरैनी सप्लाई इंस्पेक्टर का कहना है कि 1 ग्राम पंचायत में एक ही सरकारी राशन की दुकान होती है अब अगर उसमें चार मजरे जुड़े हैं तो उसके लिए क्या किया जा सकता है। रही बात पैगंबरपुर के निरस्त दुकान की तो उसके लिए लोगों की मांग आई है और जांच की जाएगी देखा जाएगा कि कौन वहां पर दूसरा कोटेदार बनने लायक है। जिस जगह पर भी कोटेदारों की मनमानी की शिकायत आती है उसके लिए भी जांच की जाएगी। फिलहाल ऐसी कोई शिकायत उनके पास नहीं आई है।
वादे के बाद भी नहीं मिला गाँव में कोटा
महोबा जिले के पनवाड़ी ब्लॉक के कुलपहाड़ तहसील अन्तर्गत आने वाले उमरई गांव में भी राशन की दुकान मौजूद नहीं है। लोगों ने कई बार गांव के प्रधान से गांव में कोटा खुलवाने की मांग तो की, लेकिन प्रधान ने ग्रामीणों की बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया।
लोगों ने बताया कि गांव में राशन की दुकान थी लेकिन पिछले साल जब पंचायत राज चुनाव हुए तो जो कोटेदार था उसकी पत्नी प्रधान बन गई इसलिए उसका कोटा निरस्त कर दिया गया है और अब लोगों को दूसरे गांव जाना पड़ता है। जब जब लोग कोटे पर राशन लेने जाते हैं उन्हें अपना पूरा दिन सिर्फ इसी काम में निवेश करना पड़ता है। क्यूंकि गांव दूर है इसलिए सुबह ही लोग पैदल जाते हैं। कुछ लोगों को उस दिन अपनी मज़दूरी छोड़नी पड़ती है, तो कुछ लोग खेत छोड़ कर जाते हैं।
लोगों की मांग है कि गांव में ही कोटे का चयन हो जिससे लोगों को दूसरे गांव न जाना पड़े। अगर राशन की दुकान होगी तो किसी भी समय लोग जाकर राशन ले सकते हैं और राशन मिलने में भी इतनी दिक्कत नहीं होगी। इसी गांव की रहने वाली अनीता और मन्नू दोनों ही दिव्यांग हैं। ये भी ढाई किलोमीटर की दूरी तय करके चमर्रा गांव राशन लेने जाती हैं। कई बार तो उन्हें साइकिल वालों को या मोटरसाइकिल वालों को रोक कर सवारी मांगनी पड़ती है।
कई बार लोग आसानी से बैठा लेते हैं लेकिन अगर कोई सवारी देने कको तैयार नहीं होता तो उन्हें पैदल ही कोटे तक पहुंचना पड़ता है। अनीता बताती हैं कि पैर से चलने में दिक्कत के चलते वापसी में कई बार उनके हाँथ से राशन गिर भी गया है और सारा अनाज कीचड़ में गिर गया है। वे बताती हैं कि जब गांव में राशन की दुकान थी तब किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है।
स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष संतोषी प्रेणना का कहना है कि उन्होंने सरकारी राशन कि दुकान के समूह के तहत आवेदन भी किया है, ताकि उसके नाम से राशन की दुकान स्वीकृत हो जाए। लेकिन अधिकारियों द्वारा बोला जा रहा है कि उन्हें सरकारी राशन की दुकान चयनित नहीं की जाएगी। गांव के कई लोग इसके लिए मांग भी कर रहे हैं पर अबतक प्रशासन की तरफ से कोई जवाबदेही नहीं मिली है।
चमर्रा गांव के कोटेदार आत्माराम बताते है कि उमराई गांव के लोग राशन लेने के लिए आते हैं और जब-जब राशन आता है उस गांव में सूचना दी जाती है। उनके यहां 19 अंत्योदय राशन कार्ड धारक हैं, 300 पात्र गृहस्थी के राशन कार्ड हैं। कोटेदार का कहना है कि वो अपनी तरफ से सभी को राशन दे रहे हैं।
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क्या कहती हैं प्रधान?
प्रधान कलावती का कहना है उनके गांव में हर महीने खुली मीटिंग कराई जाती है। राशन की दुकान को लेकर गांव के कुछ लोग चाहते हैं कि समूह को कोटा न दिया जाए, गांव के किसी व्यक्ति को कोटा दिया जाए और प्रधान भी यही चाहती हैं कि कोटेदार गांव के ही किसी व्यक्ति को बनाया जाए।
उन्होंने बताया कि 29 अगस्त को खुली मीटिंग भी हुई थी जिसमें गांव के दो समूह की महिलाओं ने आवेदन पत्र भरे थे, जिसमें एक समूह की महिला को दूसरी महिला से ज़्यादा वोट मिले थे जिसके बाद ग्रमीणों ने आपस में लड़ाई करना शुरू कर दिया था और वो प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई थी।अब जिले और तहसील के अधिकारी ही इस गांव में कोटे को लेकर कोई निर्णय लेंगे।
राशन की दुकान का होगा चयन – पनवाड़ी एडीओ
पनवाड़ी एडीओ पंचायत दयाशंकर जैसवाल ने बताया है कि हर बार मीटिंग होती है और गांव के लोग झगड़ा मचा देते हैं। कोटे को लेकर दो बार बैठक हो चुकी है। और अब अगली मीटिंग में भले किसी की सहमति हो या ना हो राशन की दुकान का चयन किया जाएगा।
कुलपहाड़ एसडीएम पियूष जयसवाल का कहना है कि उनके पास लगभग 40 लोग आए थे कोटे से संबंधित ज्ञापन लेकर, जिसके बाद उन्होंने पूर्ति विभाग को एप्लीकेशन लिख कर भेज दिया है।
कुलपहाड़ खाद्यान्नपूर्ति निरीक्षक राजेश कुमार वर्मा ने बताया है कि ग्राम सभा की मीटिंग में प्रस्ताव होता है और ग्राम सभा ही इसमें चयनित करते हैं। उनके पास जब भी प्रस्ताव बनकर आता है, तब देखा जाता है कि क्या वह पात्रता की श्रेणी में आता है या नहीं, उसका चरित्र प्रमाण पत्र कैसा है, अगर उसका चरित्र प्रमाण पत्र सही है तो उसी के नाम राशन कि दुकान आवंटित कर दी जाती है।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता और श्यामकली द्वारा की गयी है।
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