खबर लहरिया Blog Maha Kumbh 2025: महाकुम्भ में नाव बनी कमाने का जरिया, नाविक पिंटू महरा जैसी कहानी शिवकरन की

Maha Kumbh 2025: महाकुम्भ में नाव बनी कमाने का जरिया, नाविक पिंटू महरा जैसी कहानी शिवकरन की

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुम्भ से नाविक पिंटू महरा के परिवार ने 45 दिनों में 30 करोड़ रुपए कमाने की बात कही थी। यह बात उन्होंने 4 मार्च 2025 को बजट सत्र में बताई। ऐसी ही कहानी महाकुम्भ में आए नाविक शिवकरन की है जिन्होंने नाव से काफी कमाई की।

नाविक पिंटू महरा के परिवार की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

रिपोर्ट – शिव देवी, लेखन – सुचित्रा 

यूपी के प्रयागराज महाकुम्भ से कई लोगों को कमाई का जरिया मिला। किसी ने यहां लाखों कमाए तो कोई यहां जितनी कमाई की उम्मीद लेकर आया था वो पूरी न हो सकी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 66 करोड़ लोग इस महाकुम्भ का हिस्सा बने। कथित रूप से 12 साल बाद आए इस महाकुम्भ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को हुई और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को हुआ।

महाकुम्भ में नाविक पिंटू महरा ने कमाए 30 करोड़ रुपए

इस महाकुम्भ के दौरान 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक एक नाविक ने 30 करोड़ रुपए की कमाई कर ली। यूपी के योगी आदित्यनाथ ने 4 मार्च 2025 को बजट सत्र के दौरान विधानसभा में महरा परिवार जोकि एक नाविक है उनकी कहानी साझा की। विपक्ष का कड़ा जवाब देते हुए उन्होंने ये कहानी बताई। उन्होंने कहा जो लोग कहते हैं इस महाकुम्भ में नाविकों का शोषण हुआ है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। उन्होंने बताया कि महाकुम्भ में नाविक पिंटू महरा के पास 130 नाव थी। इसकी मदद से हर दिन प्रति नाव 50,000 से 52,000 रुपये उसने कमाए। प्रत्येक नाव से लगभग 2.3 लाख रुपये की कमाई उस नाविक ने की। आप वीडियो में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह कहते सुनते व देख सकते हैं।

शिवकरन की कहानी भी कुछ ऐसी ही

खबर लहरिया की रिपोर्ट के मुताबिक शिवकरन भी महाकुम्भ में नाव चलाते थे। वे बताते हैं कि इस नाव में सवारी ढोने से हमारा घर परिवार चलता है। इसी के जरिए हमने गंगा घाट का नज़ारा दिखाया और स्नान करवाया। इस नाव की मदद से एक दिन उन्होंने एक दिन में 10000 रुपए की कमाई की थी। जहाँ वे एक दिन में मुश्किल से 500 कमा पाते होंगे महाकुम्भ की भीड़ ने उन्हें एक दिन में इतना कमाने का मौका दे दिया।

नाविक शिवकरन की तस्वीर (फोटो साभार: शिव देवी)

संगम में नाव चलाना कठिन 

शिवकरन ने बताया उनकी यह लकड़ी की नाव है। तस्वीर में आप देख सकते हैं लोग नाव में बैठने की तैयारी कर रहे हैं। एक नाव में 20 से 25 सवारी बैठ सकते हैं। जब हम नाव को हाथ से चलाते हैं, तो पानी में नाव का चलना काफी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि गंगा-यमुना का बहाव काफी तेज होता है। 

नाव में बैठने के लिए जाते हुए लोगों की तस्वीर (फोटो साभार: शिव देवी)

तीसरी फोटो में शिवकरन ने बताया कि यह अभी खाली नाव है, जिसे हम हाथ से घसीटकर किनारे लाते हैं और बांध देते हैं ताकि नाव पानी में बह न जाए। इसके बाद नाव को घाट पर बांध दिया जाता है।

खाली नाव की तस्वीर (फोटो साभार: शिव देवी)

लकड़ी की नाव और पतवार

इस तस्वीर में जो शिवकरन के हाथ में लड़की का डंडा है उसे पतवार कहा जाता है। इसकी मदद से नाव को पानी में चलाया जाता है। वे अब नाव मैं नाव चलाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने बताया एक नाव में दो लोग होते हैं, जो नाव को चलाने में मदद करते हैं जिससे यह आसान हो जाता है। मैं आगे बहते पानी को लकड़ी के पतवार से काटता हूं और इसी तरह से पीछे वाला भी पानी को काटता चला जाता है और नाव इधर-उधर नहीं जाती।

नाविक शिवकरन की हाथ में लकड़ी का पतवार लिए हुए तस्वीर (फोटो साभार: शिव देवी)

शिवकरन ने यह भी बताया कि जैसे ही लोग नाव में बैठते हैं, वे बहुत डरते हैं। जब उन्हें डर लगता है तो हमें भी लगता है और उन्हें भी समझना चाहिए कि हम अपनी जान हथेली में लेकर नाव चलाते हैं यह एक चुनौतीपूर्ण काम होता है।

जब नाव बीच धारा में जाती है तब हमारा दिल दहल जाता है, क्योंकि अब हमारी नाव बीच धारा में है। उन्होंने बताया उनके समुदाय के लोग अधिकतर नाव ही चलाते हैं। वे कहते हैं, “हमने नाव चलाना तब सीखा था, जब मैं 12 साल का था। नाव चलाना मेरे पिता ने अपने हाथ से मुझे सिखाया है।”

नाव से हुई अच्छी कमाई 

शिवकरन ने बताया कि इस साल के महाकुंभ में हमारी अच्छी कमाई हुई है। जो सरकारी रेट था, उसके हिसाब से एक व्यक्ति से 75 रुपए लिया जाता था जबकि लोग अपनी ओर से 2000 रुपए देते थे। इसकी वजह से हमें लेने में कोई परेशानी नहीं होती थी। हम लोग उन्हें गंगा स्नान कराते थे। 

महाकुम्भ खत्म होने पर खाली पड़ी नाव 

शिवकरन बताते हैं कि महाकुंभ खत्म हो गया है और सारी नावें गंगा किनारे खाली पड़ी हुई हैं, जिससे हमारी कमाई नहीं हो रही है। नाव चलाने के अलावा हम और कुछ काम नहीं करते हैं। मछली पकड़ने का काम होता है, जिससे सारा दिन मछली पकड़कर हमारा खर्च चलता रहता है।

महाकुम्भ ख़त्म होने के बाद खाली पड़ी नाव की तस्वीर (फोटो साभार: शिव देवी)

महाकुम्भ की वजह से जहां से कुछ लोगों की कमाई तो हुई लेकिन अब उनका क्या जिनका रोजगार ही नाव पर निर्भर हो? महाकुम्भ के साथ उनकी उम्मीद भी खत्म हो गई क्योंकि महाकुम्भ के चले जाने से उनके कमाने की रफ़्तार भी धीमी पड़ जाएगी। अब उनकी नाव घाट किनारे खाली पड़ी है फिर से महाकुम्भ के इंतजार में। अब न जाने कब उन्हें ऐसा फिर से मौका मिलेगा जहां वह फिर से इतनी कमाई कर सकेंगे?

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