बिरसा मुंडा द्वारा किये गए योगदान की वजह से उनकी तस्वीर भारतीय संसद के संग्रहालय में भी लगी हुई है। ये सम्मान जनजातीय समुदाय में सिर्फ बिरसा मुंडा को ही अब तक मिल सका है।
बिरसा मुंडा (Birsa Munda) स्वतंत्र युवा सेनानी होने के साथ-साथ आदिवासी समाज के एक ऐसे नेता थे जिन्हें जनजातीय लोग आज भी गर्व से याद करते हैं। आज 9 जून 2023 को उनकी पुण्यतिथि मनाई जा रही है। 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशक्त विद्रोह छेड़ने के लिए उन्हें याद किया जाता है।
इसके साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन पर उनके प्रभाव की मान्यता को देखते हुए साल 2000 में उनकी जन्मतिथि के दिन झारखंड राज्य का गठन किया गया था।
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भारतीय संसद के संग्रहालय में बिरसा मुंडा की तस्वीर
बिरसा मुंडा द्वारा किये गए योगदान की वजह से उनकी तस्वीर भारतीय संसद के संग्रहालय में भी लगी हुई है। ये सम्मान जनजातीय समुदाय में सिर्फ बिरसा मुंडा को ही अब तक मिल सका है।
बीबीसी की रिपोर्ट कहती है कि मुंडा का जन्म झारखंड के खूंटी ज़िले में हुआ था। उनका जन्म किस साल और किस तारीख को हुआ, इसकी जानकारी हर जगह अलग-अलग है लेकिन कई जगहों पर उनकी जन्म तिथि 15 नवंबर, 1875 बताई गई है।
जानकारी के अनुसार, वह छोटानागपुर पठार क्षेत्र में मुंडा जनजाति के थे। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा अपने शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में सलगा में प्राप्त की थी। जयपाल नाग की सिफारिश पर, जर्मन मिशन स्कूल में शामिल होने के लिए बिरसा ने ईसाई धर्म अपना लिया। हालांकि, कुछ सालों बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया।
‘बिरसाइत’ धर्म की शुरुआत
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासक और आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए मिशनरियों के प्रयासों के बारे में जागरूकता मिलने के बाद, बिरसा ने ‘बिरसाइत’ (Birsait) की आस्था शुरुआत की। जल्द ही मुंडा और उरांव समुदाय (Oraon community) के सदस्य बिरसाइत समुदाय में शामिल होने लगे
और यह ब्रिटिश धर्म-परिवर्तन गतिविधियों के लिए एक चुनौती बन गया।
1886 से 1890 की अवधि के दौरान, बिरसा मुंडा ने चाईबासा (Chaibasa) में काफी समय बिताया जो सरदारों के आंदोलन के केंद्र के बेहद करीब था। सरदारों की गतिविधियों का युवा बिरसा के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जो जल्द ही मिशनरी विरोधी और सरकार विरोधी कार्यक्रम का हिस्सा बन गए। 1890 में जब उन्होंने चाईबासा छोड़ा, तब वह आदिवासी समुदायों के ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन में मज़बूती से शामिल हो गए थे।
मौत के साथ आंदोलन हुआ खत्म
3 मार्च, 1900 को, बिरसा मुंडा को ब्रिटिश पुलिस ने चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से गिरफ्तार कर लिया था जब वह अपनी गोरिल्ला सेना (guerilla army) के साथ सो रहे थे। 9 जून, 1900 को 25 साल की उम्र में उनकी रांची की जेल में मौत हो गई। उन्होंने अपने जीवन का एक छोटा-सा हिस्सा ही जीया और तथ्य की बात यह है कि उनकी मौत के तुरंत बाद ही आंदोलन भी खत्म हो गया। उनके चलाए आंदोलन का प्रभाव आज तक देशभर के तमाम आदिवासियों पर देखा जा सकता है।
बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर कई नेताओं ने किया नमन
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा, “महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी समाज के श्रद्धेय जननायक, भगवान बिरसा मुंडा जी को उनकी पुण्यतिथि पर नमन। उनका साहस और त्याग पूरे देश को अन्याय के विरूद्ध डट कर लड़ने की प्रेरणा देता रहेगा।”
दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल लिखते हैं, “आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्वीट करते हुए लिखते हैं,
भगवान बिरसा मुंडा जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। उन्होंने विदेशी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए उनके समर्पण और सेवाभाव को कृतज्ञ राष्ट्र सदैव याद रखेगा।
— Narendra Modi (@narendramodi) June 9, 2023
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