बिहार में नशीली दवाओं का कारोबार नया नहीं है, लेकिन शराबबंदी के बाद से अब अन्य नशीले पदार्थो की रफ्तार में पंख लग गए हैं जिसके चलते यहां की युवा पीढ़ी दिन पर दिन बर्बाद होती जा रही है। युवाओं की यह दुर्दशा देख परिवार के लोग भी चैन की सांस नहीं ले पा रहे हैं। पुलिस से शिकायत भी करते हैं तो पुलिस अपने बच्चों को समझाने का फरमान सुना के बातों को टाल देती है लेकिन किस तरह के नशीले पदार्थ तेजी से बिक रहे हैं और उससे आने वाली युवा पीढ़ी पर किस तरह का असर हो रहा है उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
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बिहार में नीतीश सरकार ने शराबबंदी का ऐलान तो 2016 में कर दिया था। शराब तो बंद हो गई, लेकिन नशे के आदि लोगों की नशे की लत नहीं गई। अब युवा पीढ़ी स्मैक,अफीम,गंजा, नींद व नशे की गोली और एंजेक्सन कफ सिरप जैसे कई नए नशीले पदार्थों का शिकार है। जिसके कारण कई लोगों की जानें भी चली जाती है और महिलाओं के साथ हिंसा भी बढ़ गई है।
आंखों में आंसू लिए महिलाओं ने बताया कि बिहार में कोई ऐसा घर नहीं है,कोई ऐसा गांव नहीं है जिनके बच्चे नशा ना करते हो। बच्चे झुंड बना कर नशीले पदार्थ खाते हैं, इंजेक्शन लेते हैं। सरकार ने शराब बंदी कर दी तो उससे कुछ राहत मिली लेकिन जो और नशीली चीजें हैं उनको क्यों नहीं बंद कर रही। कहां से पाते हैं बच्चे इंजेक्शन-अफीम?
बिहार का नशे की लत का एक उदाहरण मेरे सामने भी है। जनवरी 2023 में बिहार गई थी एक सहेली के साथ और हम लोग पटना से दानापुर जा रहे थे। मेरी सहेली हाथ में फोन लिए कुछ काम कर रही थी। इसी बीच नशे के आदि एक युवक ने चलते ऑटो से फोन छीना और भाग खड़ा हुआ। हम लोग भी पीछे दौड़े और पुलिस को इनफॉर्म किया किसी तरह वह पकड़ा गया और हमारा फोन मिल गया। लेकिन जब हमने वहां की पुलिस से बात की तो पुलिस ने कहा यहां इस तरह की घटनाएं हर रोज़ होती हैं क्योंकि यहां नव युवा पीढ़ी अफीम-स्मैक जैसे नशीले पदार्थों में बर्बाद हैं। उनके पास पैसा नहीं होता तो वह लोगों का रास्ते चलते सामान छीन लेते हैं और बेचकर नशे वाली चीजें खरीदते हैं।
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बिहार राज्य में साल 2016 में शराबबंदी लागू की गई थी. बीबीसी के पास मौजूद 21.11.2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक़, बिहार में अब तक शराबबंदी क़ानून तोड़ने के मामले में कुल पांच लाख से ज़्यादा 5,05,951 केस दर्ज हो चुके हैं. बीते छह साल में क़रीब ढाई करोड़ लीटर (24226060) अवैध शराब ज़ब्त भी की गई है। 16 दिसंबर 2022 के दैनिक जागरण में छपी खबर के आंकड़े के अनुसार शराबबंदी के बाद से 2022 तक में बिहार में जहरीली शराब से ही 53 मौतें हो चुकी हैं।
सवाल यह उठता है कि अगर शराबबंदी के बाद भी शराब से इतनी ज़्यादा मौतें बताई जा रही है आंकड़ों में इसके अलावा इतने सारे नशीले पदार्थ चलते हैं, तो आखिरकार आने वाला भविष्य युवाओं के लिए कैसा होगा? क्यों वहां की सरकार जिस तरह से शराबबंदी कर चुकी है अन्य नशीली पदार्थों के रोक लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही?
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