खबर लहरिया Blog Bihar elections 2025: गडरिया समाज की राजनीतिक हिस्सेदारी की तलाश: वोट तो है, पर टिकट कहाँ?

Bihar elections 2025: गडरिया समाज की राजनीतिक हिस्सेदारी की तलाश: वोट तो है, पर टिकट कहाँ?

गडरिया समाज की राजनीतिक हिस्सेदारी की लड़ाई अब भी जारी है। RJD का पारंपरिक वोट बैंक रहा ये समुदाय अब कह रहा है—अगर टिकट नहीं मिलेगा, तो वोट भी नहीं मिलेगा।

Gadariya community symbolic picture

गडरिया समाज सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

लेखन-हिंदुजा

हाल ही में बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पटना में पाल समुदाय द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में पहुँचे। वहां मौजूद लोगों और कैमरों की मौजूदगी का पूरा राजनीतिक फायदा उठाया गया और उठाया भी क्यों न जाए, आखिर चुनावी राजनीति का असली रंग ही यही है। मंच पर तेजस्वी के साथ RJD के संभावित प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल और राज्यसभा सांसद संजय यादव भी मौजूद थे। पाल समाज के कई कार्यकर्ता और नेता भी इस सम्मेलन में शामिल थे। 

सम्मेलन का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें तेजस्वी यादव को पाल समुदाय की ओर से एक भेड़ भेंट की जा रही है। भेड़ इसलिए, क्योंकि भेड़ पालना इस समुदाय का पारंपरिक पेशा रहा है और वही उनकी असली पूंजी भी है। तेजस्वी ने भेड़ की रस्सी पकड़ी और उसे मंच पर घुमाया। यह एक साफ़-सुथरा राजनीतिक संदेश था कि गडरिया समाज 2025 के विधानसभा चुनाव में RJD के साथ खड़ा है।

लेकिन बिहार गडरिया मोर्चा संगठन के अध्यक्ष संतोष पाल का कहना है कि, “भेड़ RJD के की पाल समुदाय के किसी कार्यकर्ता ने दी थी।”

हालाँकि वे यह भी मानते हैं कि गडरिया समाज पारंपरिक रूप से लालू प्रसाद यादव का समर्थक रहा है, लेकिन इस बार ये समाज वोट उसी पार्टी को देंगे जो उनके समुदाय के व्यक्ति को चुनावी टिकट देगी।

बिहार में करीब 11-12 लाख गडरिया समुदाय के लोग रहते हैं। यह एक व्यापक जातीय श्रेणी है, जिसमें पाल, मंडल, महतो, राउत, भगत, चौधरी, राय आदि लगाने वाले शामिल हैं। गडरिया समाज ‘अति पिछड़ा वर्ग’ (EBC) में आता है, लेकिन इनकी माँग है कि बिहार में उन्हें अनुसूचित जाति (SC) में शामिल किया जाए।

इनका पारंपरिक पेशा भेड़ और बकरी पालन है। यही इनके रोज़गार और आजीविका का मुख्य साधन है। आज भी बिहार के कैमूर, औरंगाबाद, रोहतास और मगध क्षेत्र के ज़िलों में यह समुदाय इसी पेशे से जुड़ा हुआ है।

राजनीतिक भागीदारी की लड़ाई

2020 में शुरू हुए बिहार गडरिया मोर्चा संगठन जिसके अभी फेसबुक पर करीब 21 हज़ार समर्थक हैं। इसके अध्यक्ष संतोष पाल बताते हैं कि 2024 में उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी से मुलाकात कर टिकट की माँग की थी, लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो उन्होंने पार्टी से दूरी बना ली।

संतोष कहते हैं, “आज़ादी के बाद से अब तक बिहार में पाल समुदाय के किसी व्यक्ति को विधानसभा का टिकट नहीं मिला है। चुनाव करीब आने पर सब पार्टियाँ हमे पार्टी में जोड़- जोड़ कर वोट लेने का काम करते हैं, दरी बिछवाने का काम करते हैं, पानी पिलवाने का काम करते हैं, झंडा उठवाने का काम करते हैं, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो हमसे मुँह मोड़ लेती हैं।” 

इस बार का नारा है—“टिकट नहीं, तो वोट नहीं।” संतोष पाल कहते हैं, “ये इसका ही नतीजा है कि RJD से जुड़े एक पाल समुदाय के कार्यकर्ता ने तेजस्वी यादव को भेड़ भेंट की।” यानी यह प्रतीकात्मक रूप से पार्टी और समाज के रिश्ते को मज़बूत दिखाने की कोशिश थी। 

 

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